Thursday, March 6, 2008

हमको शमशान ने बताया है जिंदगी मौत की सहेली है


मौत कितनी शांत होती है। बेहद शांत और गंभीर। मेरठ में सैंट जोन्स सिमेंट्री के बारे में काफी सुना था। इस सिमेंट्री में १८५७ के ग़दर में मारे गए ९ अंग्रेज सिपाहियों की भी कब्र हैं। मेरठ अंग्रेजी शासन का केन्द्र रहा था। आज़ादी की पहली लड़ाई के वक्त मेरठ का बड़ा योगदान रहा। मेरठ कैंट में स्थित इस सिमेंट्री में सबसे पुरानी कब्र १८१० में बनी है।

राहुल पाण्डेय के साथ एक दिन रिपोर्टिंग के लिए निकला तो मन हुआ की चलो सिमेंट्री देख ली जाए। राहुल भी बड़ा करामाती रिपोर्टर है। साथ में कैमरा भी रखता है। बस दिनों से भूतों के बारे में हम दोनों है खोज कर रहे हैं। लेकिन कोई भूत हाथ नही आया। उसी की तलाश में सिमेंट्री पहुच गए। दरवाजा बंद था। खटखटाया तो अन्दर से एक व्यक्ति प्रकट हुआ। हमने कहा कि भाई सिमेंट्री देखनी है। बोला बंद है नही देख सकते। हमने कहा भाई अख़बार से हैं। पत्रकार हैं। सुनकर वो दबाब में आया और गेट खोल दिया। मैंने मोटर साइकिल अन्दर लगा ली। अन्दर का माहौल देखकर राहुल पाण्डेय तो चहक है पड़ा। वास्तव में एक अजीब सी शान्ति थी और अजीब सी सुन्दरता। सैकड़ों अंग्रेज चैन कि नींद सो रहे थे। कोई अकेला कोई परिवार के साथ।

काफी देर तक राहुल ने फोटोग्राफी की। तरह तरह के फोटो खीचे। मैंने कहा कि ज्यादा कब्रों पर मत कूदो। कोई भूत चिपक जाएगा। पर माना नहीं। कूद कूद कर फोटो खीचता रहा। लेकिन कब्रिस्तान में डर जैसी कोई चीज़ नहीं थी। उससे ज्यादा डरावना जिंदा शहर लगता है। जो पैसे कि भूख में कहीं खोता जा रहा है। खैर कब्रिस्तान में जाकर अजब शान्ति मिली। शायद भगवन शंकर इसीलिए शमशान में रहते हैं। चलते हुए कब्रिस्तान के केयर टेकर रोबिन सिंह से बात की। भइया तुमको डर नही लगता। कोई भूत तो नहीं आता रात को। बोला जिंदा आदमी से ज्यादा बड़ा भूत कोई नहीं। फिर राहुल ने अपनी बुद्धि लगाई। बोला अरे भाई जब भगवानहै तो भूत भी तो होगा। रोबिन बोला न भगवान है और न भूत। मैंने न भगवान को देखा है और न भूत को। बहरहाल आधा घंटे तक मुर्दों के बीच रहकर हम फिर शहर कि भीड़ मैंलौट आए थे।

1 comment:

  1. hi sachin .
    jindagi or maout ne fecinate kiya.
    lage raho.
    take caer
    Manvinder

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