Tuesday, April 6, 2010

क्या आप बोर हो रहे हैं...

अख़बारों में एक विज्ञापन तो सभी ने देखा होगा, अजी वाही वाला जिसमें फ़ोन नंबर दिए हुए होते हैं, साथ में एक कन्या का फोटो ओर बातचीत का खुला निमंत्रण. रसिक मिजाज़ लोग खूब इन नंबरों के झांसे में आते हैं और मोटा बिल भरते हैं. लेकिन अब तक ये अख़बार तक ही सिमित था. जिसकी गर्ज़ थी वही अपनी जेब ठंडी करता था. लेकिन हाय ये पैसे की दौड़, इन्सान को कहाँ ले जाकर पटकेगी पता नहीं. अब मोबाइल कंपनियों ने इन्सान की इस कमजोरी से कमाने का रास्ता अख्तियार कर लिया है. बार-बार फ़ोन करके ग्राहकों को प्रलोभन दिया जा रहा है और नए ग्राहक खोजे जा रहे हैं. उधर से आने वाली एक मादक आवाज आपकी तरफ दोस्ती का हाथ बढा रही है. अगर आप बोर हो रहे हैं तो आपका पूरा मनोरंजन करने का वादा भी कर रही है. और कह रही है कि जब मेरी हंसी इतनी दिलकश है तो मेरी बातें कैसे होंगी. इसके बाद ग्राहक को इस बातचीत के लिए खर्च होने वाली रकम भी बताई जाती है.

दिल्ली आने के बाद मैंने अपना नंबर डीएनडी नहीं कराया था. मेरे आईडिया और वोडा दोनों नंबरों पर दिन में एक-दो बार इस तरह की कॉल आ ही जाती हैं. कॉल तो बहुत आती हैं लेकिन इस कॉल के बारे में लिखना पड़ रहा है. बाज़ार की गिरावट का कोई अंत होता नज़र नहीं आता. पैसे के लिए किसी भी हद तक गिरने की तैयार हैं. कुंठाग्रस्त लोगों के बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन यहाँ बस उन युवाओं के बारे में सोचिये जिनको बहकाना आसान होता है. इस तरह कि कॉल उन को आसानी से पथभ्रष्ट कर सकती है.

कमाई कि ऐसी अंधी दौड़ मची है कि कुछ कहना मुश्किल है. दिल्ली के मार्केट को ओपन माइन्डिड बनाने में अंग्रेजी मीडिया का बड़ा हाथ है. अपना मार्केट ज़माने के लिए हर चीज़ छापी जा रही है. जो कोई ऊँगली उठाये तो उसको रुढ़िवादी, दकियानूसी, आदि आदि शब्दों से अलंकृत कर दिया जाता है. जब कि इस खुलेपन कि जड़ में केवल पैसे कि भूख दबी है, ऊपर से जो भी चाहे प्रदर्शित किया जाये. जब कुछ नहीं मिलता तो सेक्स सर्वे ही छाप दिया जाता है. साथ में कुछ ऐसी तस्वीरें जो किसी का भी ध्यान खीचने का मद्दा रखती हैं. तुर्रा ये कि समाज को ब्रॉड-माइन्डिड बनाया जा रहा है.

इस ब्रॉड-माइन्डिडनेस को फ़ैलाने के पीछे केवल और केवल पैसे की लोलुपता है, जिसे प्रोग्रेसिव सोच का आवरण उढ़ा दिया गया है. 

2 comments:

  1. ha ab yahi baki he


    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  2. ये सब कुछ बाजार वाद का परिणाम है सचिन जी जिसे आधुनिकता का जामा पहनाया जा रहा है । आने वाले समय में देखिए न क्या क्या होता है ...सामयिक मुद्दे पर अच्छा लिखा है आपने
    अजय कुमार झा

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