Tuesday, May 4, 2010

क्या खूब कही...

(एक पत्रकार मित्र ने भेजा मुझे ये लाजवाब मेल....)

परेशान थी पप्पू पत्रकार कि वाइफ
बिलकुल नॉन हैपनिंग थी पप्पू कि लाइफ!
पप्पू को नहीं मिलता था आराम,
सुबह से लेकर रात तक करता था... काम ही काम!

पप्पू के संपादक भी थे बड़े कूल,
प्रोमोशन को हर बार जाते थे भूल,
पर भूलते नहीं थे वो उसको करना टाइट
रोज रोकते थे पप्पू को लेट नाइट!

पप्पू भी बनना चाहता था बेस्ट
इसलिए तो वो नहीं करता था रेस्ट!!
दिन रात करता था वो संपादक की गुलामी
प्रोमोशन की उम्मीद में देता था सलामी!!

दिन गुज़रे और गुज़र गए सालों साल
बुरा होता गया पप्पू का हाल
पप्पू को अब कुछ भी याद ना रहता
गलती से बीवी को बहनजी कहता!!

आखिर एक दिन पप्पू को समझ में आया
और छोड़ दी उसने प्रोमोशन की मोह माया !!
संपादक से बोला- " तुम क्यों सताते हो?
प्रोमोशन के लड्डू से बुद्धू बनाते हो..."

प्रोमोशन दो वर्ना चला जाऊंगा
बोनस देने पर भी वापिस ना आऊंगा"
संपादक हंस के बोला- "नहीं कोई बात
अभी और भी बहुत पप्पू हैं मेरे पास"
ये दुनिया बहुत से पप्पुओं से भारी है
सबको बस पत्रकार बनने कि पड़ी है
तुम ना करोगे तो किसी और से कराऊंगा
तुम्हारी तरह किसी और को पप्पू बनाऊंगा


(जागो पप्पू जागो)

But Pappu cant Resign Sala...............

2 comments:

  1. :D very nice..... Ek patrkar ke jeevan ki sachai....

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  2. bahut khub

    badhai aap ko is jankari ke liye

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