Tuesday, December 28, 2010

वीआईपी क्रियाकर्म


वीआईपी  ट्रीटमेंट की बीमार लालसा इन्सान के अन्दर आखिर किस हद तक हो सकती है. जीते जी तो इन्सान चाहता ही है कि वो जहाँ भी जाए उसे वीआईपी ट्रीटमेंट मिले. जो जीवन में कभी वीआईपी ट्रीटमेंट का लुत्फ़ नहीं उठा पाते वो भी कम से कम एक बार जरूर उठाते हैं- अपनी शादी के दिन. और अगर ज्यादा ही भूख वाला इन्सान हुआ तो अपने नखरे और तेवर दिखाकर जिंदगी भर के लिए ससुराल में भी वीआईपी ट्रीटमेंट का जुगाड़ कर लेता है.

लेकिन दिल्ली में तो गज़ब ही स्थिति है. लोगों को मरने के बाद भी वीआईपी  ट्रीटमेंट चाहिए. खबर है कि दिल्ली के निगम बोध घाट पर क्रियाकर्म की तीन व्यवस्थाएं हैं- वीआईपी, सेमी वीआईपी और साधारण. मरते-मरते भी मृतक की आत्मा को ये अहसास दिलाना है कि तुम एक साधारण इन्सान थे और साधारण तरीके से मर गए. तुमने इस जीवन में कुछ भी ऐसा असाधारण नहीं किया जो तुम्हारा वीआईपी तरीके से अंतिम संस्कार किया जाए.

संविधान में 'समानता' की तथाकथित व्यवस्था वाले देश में इस तरह का भेद-भाव मनुष्य को पूरे जीवन भुगतना पड़ता है. लेकिन मरने के बाद भी भुगतना पड़े तो ये ज़रा हद की बात है. जन्म के समय अस्पताल में वार्डों का भेद-भाव, स्कूल में एडमिशन के समय भेद-भाव, सड़क पर चलते समय भेद-भाव, सरकारी दफ्तरों में तो चिर-स्थायी भेद-भाव, नौकरी में भेद-भाव और अब मरने के बाद फूंकने में भेद-भाव. धन्य है प्रभो... 

वैसे आरटीआई एक्टिविस्ट एससी अग्रवाल की अर्जी के बाद निगम बोध घाट की सेमी वीआईपी  वाली व्यवस्था अब तोड़ी जा रही है. खबर है कि घाट की व्यवस्था आर्य समाज देखता है और उसी की देखरेख में सेमी वीआईपी  चिता प्लेटफ़ॉर्म बनाये गए थे. जिनको हटाया जायेगा. लेकिन वीआईपी वाली व्यवस्था बनी रहेगी.

5 comments:

  1. मतलब बीच का रास्‍ता भी बन्‍द। केवल वीआईपी या साधारण।

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  2. apne bilkul sahi likha hai hamare desh mein ministers ke liye vvvvvvvip plat forms banne shesh hai

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  3. बस इत्ता और पता चल जाता कि ..क्या तीनों पर ही चित्त करके लिटाया जाता है फ़ूंकने से पहले ..या कहीं कोई नई फ़ैसिलिटी हो .,...मसलन वीवीआईपी लोगों के मुंह में एक बीडी डाल दी जाती हो ..सीएनजी भर के ..बस लाईटर लगाया ..और शूंम्म्म्म्म...

    मेरा नया ठिकाना

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