Thursday, April 21, 2011

अनुभव बोलता है!!!


 अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंक तो दिया. जैसा अनुमान था उससे कहीं ज्यादा देश की जनता का रेस्पोंसे मिला. उससे भी हैरत की बात की महज चार दिनों में सरकार घुटनों पे आ गयी. जाहिर है कि ये अन्ना का नहीं बल्कि उनको मिले जनसमर्थन का दबाव था जो सरकार ने आत्मसमर्पण कर दिया. उस समय सरकार ने अपनी आबरू बचाने के लिए भले ही रीढ़ झुका ली थी लेकिन असली खेल तो अब शुरू हुआ है. लोकपाल बिल को पलीता लगाने और अन्ना व उनके समर्थकों पर कींचड उछालने का काम जोर शोर से शुरू कर दिया गया है. कोशिश यही है कि 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' की किसी तरह इमेज ख़राब करके लोकपाल बिल को ठन्डे बसते में डाला दिया जाये या फिर इसमें जो कड़े प्रावधान हैं उनकी हवा निकाल दी जाए. जिस तरह रणनीति बनाकर अन्ना पर हमले किये जा रहे हैं उसको देखते हुए लगता भी है कि सरकार अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगी. अंदरूनी खबर ये भी आ रही है कि इधर के कुछ लोग सरकार से मिल भी गए हैं. दरअसल ये तो होना ही था. भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐलान-ए-जंग घोषित करने से पहले हमें ये पता होना चाहिए कि सत्ताधारियों के पास भ्रष्टाचार में ६३ साल का अनुभव है. अब ये अनुभव यूँ ही बेकार तो नहीं जायेगा. नेता आखिर नेता ही होता है. कितना भी भला बन जाये लेकिन सत्ता के खून का असर नहीं जा सकता.

पहले मुझे अनुभव पर उतना विश्वास नहीं था. लेकिन अब पता चला की जब कम्पनियां अनुभवी लोगों की मांग करती हैं तो यूँ ही नहीं करती, वास्तव में अनुभव काम आता है. अन्ना और सरकार की जंग में तो ये कतई साफ़ हो चुका है. कांग्रेस का ६३ साल का भ्रष्टाचारी अनुभव आज भली भांति उसके काम आ रहा है. उसके तमाम सुसुप्त और भ्रष्ट सिपहसलार एक्टिव हो गए हैं. सबने अपने-अपने ढंग से अन्ना पर हमले शुरू कर दिए हैं. फ़िलहाल उनका एक मात्र मकसद यही है कि अन्ना द्वारा जीता गया लोगों का विश्वास ख़त्म हो जाये, उसके बाद फिर लोकपाल से निपटा जायेगा. वैसे भी भ्रष्ट लोगों में कुछ एक गुण बेहद विशेष होते हैं. एक तो वो हर चीज़ मिल-बांटकर खाते हैं. बुरे समय में वे एक-दूसरे के सबसे बड़े संकट मोचक होते हैं और एक-दूसरे की आबरू ढकने की खातिर वे पार्टी लाइन से ऊपर उठकर काम करते हैं. लेकिन ये जो नॉन-भ्रष्ट लोग हैं ये बड़े अहंकारी होते हैं. इनको अपनी ईमानदारी और सात्विकता का इतना अहम् होता है कि ये दूसरे नॉन-भ्रष्ट को कतई कॉपरेट नहीं करते. बल्कि एक-दूसरे की तरक्की से जलते रहते हैं. दरअसल गलती उनकी भी नहीं है. आज संसार का सारा व्यव्हार फायदे और नुकसान के पैमाने पर टिका है. निस्वार्थ तो कुछ भी नहीं. एक भ्रष्ट जब दूसरे भ्रष्ट की मदद करता है तो उसमें दोनों का फायदा होता है. लेकिन एक नॉन-भ्रष्ट जब दूसरे नॉन-भ्रष्ट की सहायता करता है तो उसमें एक का ज्यादा फायदा होता है जबकि दूसरा पाशर्व में रहता है. जैसे तमाम नॉन-भ्रष्ट लोगों के समर्थन से अन्ना रातों-रात हीरो बन गए. लेकिन अन्ना की ये ख्याति कई नॉन-भ्रष्टों को पच नहीं रही है.

इसी चीज़ का सत्ताधारियों ने फायदा उठाया और अन्ना पर हमला बोल दिया. अन्ना पर इन सरकारी हमलों के पीछे कहीं न कहीं कई नॉन-भ्रष्ट एलिमेंट्स काम कर रहे हैं, जो दरअसल अन्ना के बढ़ते कद से खुश नहीं हैं. तो ये जो नॉन-भ्रष्ट लोगों की ईगो प्रोब्लम है, वही भ्रष्टों के लिए सबसे बड़ा वरदान है. नॉन-भ्रष्ट लोगों की आपसी फूट और ईगो प्रोब्लम की वजह से देश में भ्रष्टाचारियों की बल्ले-बल्ले है. खैर अब जब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी, आगे आगे देखिये अन्ना की ये जंग क्या गुल खिलाएगी....

1 comment:

  1. Priya Bhandari: Nice, appreciate yr write-up!

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