Friday, August 1, 2014

रफ्ता-रफ्ता आउट-डेटेड होती जिंदगी

छोटी सी जिंदगी में हम बार-बार आउट-डेटेड हो रहे हैं। कभी मोबाइल के बहाने, कभी टीवी के बहाने, कभी कपड़ों के बहाने, कभी खानपान के बहाने तो कभी अपनी सोच के बहाने। पिछली पीढ़ी को ये सुविधा उपलब्ध नहीं थी, जब उनको आउट-डेटेड कहा जाता था तब तक वे 60 के पार पहुंच जाते थे, पर अब आप टीन एज में भी आउटडेटेड कहलाए जा सकते हैं। हालत ये है कि आप आउट-डेटेड होने से बच नहीं सकते क्योंकि बाजार और टेक्नोलाॅजी आप से दस कदम आगे चल रहा है। बाजार के साथ कदमताल करने के लिए आपकी जेब में दम होना चाहिए। जेब में दम नहीं तो आप बाजार से पीछे तो रहेंगे, लेकिन खुद को सही साबित करने के लिए थोड़ा ज्ञान भी बांचेंगे और आपका ये ज्ञान फिर आपकी आउट-डेटेड सोच का परिचायक बन जाएगा।

नरेंद्र मोदी के प्रचार तंत्र के सामने कांग्रेस का प्रचार तंत्र एकदम आउट-डेटेड साबित हुआ, जैसे स्मार्ट फोन के सामने साधारण मोबाइल फोन आउट-डेटेड होते जा रहे हैं। अब तक शाहरुख खान की डीडीएलजे सबकी जुबान पर थी लेकिन ज्यों ही आलिया भट्ट अभिनीत ‘हम्प्टी शर्मा की दुलहनिया’ आई तो पता चला कि हमारे जमाने का प्यार करने का स्टाइल भी अब आउट-डेटेड हो गया है। शहर के व्यस्ततम चौक पर अपनी पुश्तैनी दुकान को एक शोरूम में तब्दील करके दुकानदारी पर बैठे लालाजी से अगर आप आॅनलाइन शाॅपिंग की बात छेड़ दो तो बुरी तरह फनफना जा रहे हैं और फ्लिपकार्ट, अमेजन, स्नैपडील जैसी साइट्स को जमकर गरियाकर उनका सामान फर्जी बता रहे हैं। पर वो ये स्वीकार करने को कतई तैयार नहीं कि वो और उनका शोरूम अब आउट-डेटेड हो गया है।

तो जी, फिर से बताएं कि खुद को आउट-डेटेड होने से बचाने के लिए आपके बटुए में दम होना जरूरी है। खानपान से लेकर बोलचाल तक, शाॅपिंग से लेकर बैंकिंग तक, मोबाइल से लेकर टीवी, फिल्मों से लेकर सीरियल्स, नेता से लेकर अभिनेता, लाइफस्टाइल से लेकर लविंगस्टाइल तक सब बहुत तेजी से बदल रहे हैं। इस तीव्र गति बदलाव के साथ कदमताल करना एक काॅमन मैन के बस की बात नहीं, इसके लिए सुपर मैन होना जरूरी है। दूसरा फाॅर्मूला ये है कि ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना’ वाले सिद्धांत को आत्मसात करते हुए आप अपनी गति से चलते जाएं और लोगों को अपनी जुबानी खुजली मिटाने का मौका देते रहे।

वैसे तो आपकी जिंदगी की डेट हर रोज आपके हाथ से निकल रही है, लेकिन उससे ज्यादा मतलब नहीं है। असली मतलब इस बात से है कि आप बाजार और टेक्नोलाॅजी के हिसाब से आउट-डेटेड न हो जाएं। वैसे भारतीय संस्कृति की बात की जाए तो हम भारतीयों की प्राथमिकता पर जिंदगी की डेट्स होनी चाहिए, पर एक विकासशील देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था की मजबूरियों और अंतर्राष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखा जाए तो राष्ट्र का हित इसी में है कि उसके नागरिक अपना ज्यादा से ज्यादा ध्यान बाजार और टेक्नोलाॅजी के हिसाब से खुद को अपडेट करने पर लगाएं।

हमारे ऋषि-मुनि तो बहुत पहले ही कह गए हैं कि बाबू ये संसार सब माया है ज्यादा चक्कर में मत पड़ना अगर संसार के ज्यादा चक्कर में पड़ोगे तो इह लोक तो खराब होगा ही परलोक भी बिगड़ जाएगा, इसलिए जिंदगी की डेट्स का ध्यान रखना और जितना वक्त इस दुनिया में आए हो प्रभु का भजन करते हुए सत्कर्मों में लगा देना। लेकिन हमारी सरकार और बाजारू ताकतें यही चाहती हैं कि आप खुद को बाजार के हिसाब से अपडेटेड रखें, इसी में देश और विश्व की अर्थव्यवस्था की भलाई है। यदि हर कोई अपनी जरूरतों को कम करके हरि भजन करने लग गया तो संसार की आर्थिक कश्ती डूब सकती है। बीच-बीच में कुछ धर्म धुरंधर बढ़ते उपभोक्तावाद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद तो करते हैं, लेकिन ध्यान से देखने पर धर्म भी खुद बाजार की गिरफ्त में खड़ा मिलता है।

सो, अंत में गौतम बुद्ध के मध्यम मार्ग का ही सहारा लेना पड़ता है, के भैया इतना भी मत जुटाओ की बाजार के हिसाब से चलकर ईएमआई भरते-भरते कमरिया टूट जाए और इतने भी सिद्धांतों पर अडिग मत रहो कि दीन-हीन की श्रेणी में आ जाओ।

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