Sunday, September 26, 2010

फिर मिल सकती है ऑस्कार वाली नंगी मूर्ती....



शनीचर का अखबार देख के पेड़ के नीचे बैठे चचा चिल्लाये  "अरे ओ कलुआ! अपने देस की एक और पिच्चर ऑस्कार मै जा रई  है.  अरे वोई वारी जा मै अपने गाम की कहानी ही- "पीपली लाइव", जा मै महंगाई डायन वारो गानो हो."

"हाँ चचा जो खबर तौ है अख़बार मै. पर चचा ऑस्कार तो बड़ी चीज़ होवै है. पिच्चर बनान वारे कौ एक नंगी सी मूर्ती मिलै ईनाम मै. सब खूब ताली पीटैं  और चुम्मा लेवै सब एक दूसरे को. और फिर वो नंगी मूर्ती हाथ मैं लेकै अंग्रेजी में शटाक शटाक बोलैं."

"तोय बड़ी पते हैं जे सब बातें. पूरो सलमान खान है रओ  है." चचा थोड़े तुनके.

"का चचा! तुम भी बस. पिछली दफै टीवी पै देखो हो. अपनी एक और पिच्चर कौ मिलो हो जोई वारो ईनाम.  ऐसो ही कुछ नाम हो.. ऐं... का कैवें वो.. हाँ... स्लमडौग करोडपति.... तौ चचा बड़ो सोर मचो हो. तब मोय पते चली कै जो ऑस्कार बड़ी चीज़ होवै है."

"अच्छा! अच्छा! ज्यादा जानकारी न झाड़, मोय भी पते हैं. मै भी रेडू सुनौ हौं रात कौ. वा मै रहमान को मिलो हो जो ईनाम. वा नै गानो बनाओ हो वो वारो का कैवें- जय हो-जय हो..."

"हाँ चचा! का बात, तुम तौ बड़े छुपे रुस्तम हौ. सब जानौ  हौ इन फिल्मन के बारे मै. और बताओ और का पते हैं ."

"और तो बस जे पते हैं कै अबके भी जो ईनाम हमैं मिलैगो."

"अजी हाँ! अब तुम ज्यादा लम्बी फैंक रये हौ चचा. तुम सै पूछ कैई तो दिंगे. तुम नै तो ऐसै कह दई जैसे तुम्हारे घर की खेती है. पते भी हैं पूरी दुनिया से फिल्में आवैं हैं वहां. सब कौ न मिलै करतो. चचा छोटी फैंक लो."

"हाँ! हाँ! सब जानौ हौं! जे बाल नौई न सफ़ेद है गए. असली बात जे है कै वा करोडपति वारी पिच्चर और जा वारी पिच्चर मै एक चीज़ कतई मिलती जुलती है. वोई देख कै मोय लग रओ है कै अबके भी वो नंगी मूर्ती हमै मिल जागी."

"अच्छा! चचा! सई  मै! तुम तौ बड़े ज्ञानी निकले चचा. जरा जल्दी सै बताओ तौ कौनसी बात मिलती जुलती है." कलुआ ने हैरत में पूछा.

"अरे दोनों पिच्चारों मै अपने देस की गरीबी, भुखमरी, बेकारी, पिछ्ड़ोपन दिखाओ गओ है. मोय एक फेर मास्टर जी बता रे हे, जे अंग्रेज लोग बात बात पै अपने देस को थर्ड ग्रेड को दिखानो चाहवें  हैं. उनै जा चीज़ मै भी अपने देस को पिछ्ड़ोपन दिखाई देवे है, वाई कौ ईनाम दे देवे हैं. तौई जो है पूरे संसार में वो चीज़ प्रिसिद्ध हो जावे है. और सब जोई समझें हैं कै भारत जो है बिलकुल पिछड़ो देस है. कोई पिच्चर हो या फिर कोई किताब हो जा मै भी भारत की बुरी बुरी बातें दिखाई जावें हैं वे अंग्रेजों को बड़ी पसंद आवैं हैं. और हम ईनाम लेकै बड़े खुस हो जावें हैं." चचा ने विस्तार से कलुआ को समझाया.

"अरे चचा. जे बात है. फिर तो तुम सई कह रे हे. अबके भी वो नंगी मूर्ती हमै ही मिलेगी फिर तौ. बताओ जो सुसरे खुद ही नंगे हैं वो हमै का ईनाम दिंगे. पर हम जावे ही क्यों हैं वहां ईनाम लेन कौ."

"जेई तौ बात है कलुआ! ईनाम मिलते ही हम पै विदेसी मोहर लग जावे है. हम जो हैं वहां जे मोहर लगवान को ही जावें हैं."

2 comments:

  1. सचिन जी काफी अच्‍छा व्‍यंग्‍य है। सही बात है जाने हमें हर बात को साबित करने के लिए पश्चिम की ओर ही क्‍यों देखना पड़ता है।

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  2. बिल्‍कुल साची बात। देश की इज्‍जत उखाड़ों और ईनाम पाइ जाओ। बढिया व्‍यंग्‍य।

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