Friday, May 4, 2012

आओ चुनें राष्ट्र का पति!



राष्ट्र बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है। वैसे कोई दौर ऐसा नहीं होता, जब हमारा राष्ट्र नाजुक दौर में नहीं होता। हमारे राष्ट्र के लिए हर दौर नाजुक रहा है। खैर, नाजुकता के तमाम आर्थिक, सामाजिक, सामरिक, भौगोलिक, प्राकृतिक, मानसिक, शारीरिक कारणों के साथ इस समय एक नाजुक कारण ये भी है कि राष्ट्र को अपना नया पति चुनना है। देश के भविष्य के लिए सतत चिंतनशील रहने वाले नेताओं और उनकी पार्टियों को अब ये चिंता सता रही है कि वो राष्ट्र का हाथ किसके हाथ में सौंपे। नेतागण इतने चिंतित हैं कि कुछ सोच नहीं पा रहे हैं कि इस नाजुक दौर में राष्ट्र का पति किसे बनाया जाए। दरअसल ज्यादा सोचते-सोचते सोच भी काम करना बंद कर देती है। इसलिए पार्टियों के बीच से विरोधाभासी बयान निकल-निकल कर आ रहे हैं। ये बयान आ रहे हैं या निकलवाए जा रहे हैं ये तो मीडिया ही बता सकता है। क्योंकि कोई राष्ट्रीय विषय हो और मीडिया उसमें टांग न अड़ाए तो वो विषय ही कैसा। अब संविधान ने मीडिया को लोकतंत्र के चैथे स्तंभ के रूप में कोई लिखित स्थान तो दिया नहीं है। वो तो भला हो हमारे समाजशास्त्रियों, राजनीतिक विज्ञानियों और नेताओं का कि वे खुलकर ये मानते हैं कि मीडिया चैथा स्तंभ है। लेकिन मीडिया के कलेजे को केवल मानने से ठंडक नहीं मिलती। इसलिए मीडिया कर चीज में समय से पहले और जरूरत से ज्यादा टांग घुसेड़ता है, केवल ये जताने के लिए कि भई हम भी हैं। या यूं कहें कि लोकतंत्र के बाकी के तीन स्तंभों से मीडिया चुन-चुन कर बदला लेने की कोशिश करता है कि तुमको संविधान के अंदर लिखित में जगह मिली और हमें मौखिक-मौखिक बहला दिए।

सो, राष्ट्र के पति को चुनना है अगस्त में, मीडिया भौंपू बजा रहा अप्रैल में। राष्ट्र का पति तो हमारे नेतागण आम सहमति से, सबके सम्मान का ख्याल रखते हुए तब भी चुनते थे जब मीडिया के नाम पर एक दो सरकारी भौंपू और 20-25 निजी समाचार पत्र होते थे। हमारे नेताओं को अपने कर्तव्यों का अच्छी तरह भान था, है और रहेगा। आपस में कित्ता भी लड़-झगड़ लें लेकिन एक दिन के लिए भी राष्ट्र को बिना पति के नहीं रहने देंगे। उचित समय आने पर आम सहमति भी बन जाएगी और नाम की घोषणा भी हो जाएगी। लेकिन अब मीडिया का दौर है हर काम को ग्रैंड बनाना जरूरी है। तो जी हर रोज टीवी चैनलों पर नए नाम को लेकर बहस। नेताओं का आपस में मिलना जुलना, चाय पीना, हाथ मिलाना, फोन करना दूभर हो गया है। जबरदस्त नाम उछाले जा रहे हैं। जो न तीन में न तेरह में। सबसे तेज दिखने की होड़ में हर रोज जमकर पतंगबाजी देखिए। पिछली बार भी ऐसे ही कर रहे थे। न जाने किस-किस के नाम उछाल रहे थे। पर चुप्पै से प्रतिभा पाटिल आईं और बन गईं; और मीडिया रह गया पतंग उड़ाता। भारतीय नेताओं के दिमाग को पढ़ने वाली मशीन बनाना मुश्किल है। उनके दिमाग में कब, कहां और क्या चल रहा है ये जानना अगर इत्ता आसान होता तो मीडिया को लिखित में जगह न मिल गई होती। मौखिक जगह देकर ही थोड़े फुसला देते। पर जो हार मान ले वो मीडिया कैसा? वो भी इसी मिट्टी का बना है। पंगे पर पंगे लेता रहेगा, लेता रहेगा। 

अच्छा, पहले राष्ट्रपति चुनाव को इत्ती तवज्जो नहीं मिलती थी, कि भई राष्ट्रपति तो रबर स्टैंप होता है, असली काम तो प्रधानमंत्री करता है। लेकिन अब जब देश में प्रधानमंत्री भी रबर स्टैंप की तरह काम कर रहे हैं तो ऐसे में मीडिया ने सोचा होगा कि जब उन वाले रबर स्टैंप को चुनते वक्त इत्ती स्याही खर्च की थी, तो इन वाले रबर स्टैंप को चुनने में अगर स्याही खर्च नहीं की तो दोनों रबर स्टैंपों के बीच पक्षपात कहलाएगा।

6 comments:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
    चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
    टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
    मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
    उद्गारों के साथ में, अंकित करना भाव।।

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  2. बेहतरीन और पैनी शैली में लिखी गई पोस्ट , काफ़ी प्रभावित करती है । बहुत बढिया धार बनाए रखिए

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  3. सुना है कि आज की मुलाक़ात मे ममता दी ने मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनने की सलाह दी है ... उनके अनुसार खाली मकान और पद ही तो बदलेगा ... करना तो वहाँ भी कुछ नहीं है आपको ... यहाँ की ही तरह !

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  4. मीडिया ऐसे मुद्दे उछालता है जिसमें हींग लगे ना फिटकरी और रंग चोखा आए, वाली कहावत चरितार्थ हो। मेहनत कुछ नहीं करनी और राजनेताओं के आगे-पीछे घूम लिए और तैयार हो गये समाचार। विज्ञापन भी मिल गए और जनता भी खुश कि हमें नए सीरियल देखने का अवसर मिल गया।

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  5. आप एक गंभीर बात कह रहे थे, मगर पटरी से उतर गए। अपने अच्छे लेख की खुद ही ऐसी तैसी कर दी।

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  6. प्रणव दा को सक्रिय राजनीति में रहना चाहिये। मनमोहन पी एम के सक्रियता वाले पद पर निष्क्रिय रहे अत उन्हें राष्ट्रपति बनाना देश के लिये कम दुर्भाग्य की बात रहेगी।

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