शनिवार, 17 दिसंबर 2011

आ रहा है 2012!



वर्ष 2012 आ रहा है। टीवी चैनल वालों ने जमकर तैयारी कर रखी है। बार और पब वाले भी चांदी कूटने के लिए तैयार बैठे हैं। केक कटेगा, सबको बंटेगा, गुब्बारे फूटेंगे, डांस, पार्टी, मस्ती वगैराह, वगैराह। लेकिन 2012 के बारे में कई भविष्यवाणियां भी जुड़ी हैं। इस साल की भीषणता को लेकर काफी भविष्यवाणियां हुई और उन पर काफी बहस भी। किसी ने कहा कि पानी वाली प्रलय होगी तो किसी ने कहा कि आसमान से शोले बरसेंगे। 2011 की अंतिम कुछ घटनाओं को देखा जाए तो अगले साल भीषण युद्ध के समीकरण जरूर बन रहे हैं, वो भी सबसे ज्यादा आबादी वाले दक्षिण एशिया में। लक्ष्य बनेंगे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, अमेरिका, चीन और भारत। 2011 में भले ही अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मारने में सफलता प्राप्त कर ली हो, लेकिन अभी भी अलकायदा के कई बड़े खिलाड़ी आतंक का कारखाना चला रहे हैं, जिनकी अमेरिका को तलाश है। इस तलाश में अमेरिका ने पाकिस्तान के तमाम नागरिकों की भी बलि ले ली, लेकिन बात तब और भी ज्यादा बिगड़ गई जब अमेरिकी हमले में 28 पाकिस्तानी सैनिक काल के गाल में समा गए। अमेरिका कहता है कि गलती से हुआ, लेकिन उससे इतना भी नहीं हुआ कि साॅरी बोल दे। ओबामा को दुख तो हुआ, लेकिन साॅरी कहने में उनकी जुबान पथरा गई। बुरी तरह तिलमिलाए पाकिस्तान ने अमेरिका से एयरबेस खाली करने का फरमान जारी कर दिया और खूब खरी-खोटी सुनाई। पाकिस्तान के फौजी आका ने तो एक कदम आगे बढ़कर अपने सैनिकों को खुली आजादी दे दी कि अमेरिकी सैनिकों को मारने के लिए आदेश का इंतजार भी न करें। पाकिस्तानी कट्टरपंथ और आईएसआई तो पहले से ही अमेरिका से खार खाए बैठी थी, उनके लिए तो अब हालात असहनीय हो चुके हैं। संबंध खराब होते देख अमेरिका ने भी अपने टुकड़े डालने बंद कर दिए और 70 करोड़ डाॅलर की मदद रोक दी है। अब पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति तो किसी से छिपी नहीं है। अमेरिकी मदद के बिना कितने दिन कमर सीधी रख पाएगा कहा नहीं जा सकता। उस पर अपना ही बोया आतंक का बीज खुद उसको ही निगलने को तैयार बैठा है।

अमेरिकी-पाक रिश्ते सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। अमेरिका को ओसामा के बाद अब जावाहिरी की खोज है, उसको पाए बिना वो मैदान छोड़ेगा नहीं। पाक को केवल अब चीन का ही सहारा है और चीन अमेरिका और भारत की आंखों की किरकिरी है। मोटे तौर पर देखा जाए तो युद्ध के लिए माकूल प्लेटफाॅर्म तैयार हो गया है। अगर ये युद्ध होता है तो अमेरिका के लिए ये अफगानिस्तान और इराक के बाद तीसरा युद्ध होगा। उधर ईरान भी अमेरिका पर आंखें तरेर रहा है। माना की अमेरिका बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन इतने सारे देशों से एक साथ पंगा लेकर उसने आफत मोल ले ली है। इराक और अफगानिस्तान में खरबों डाॅलर लुटाने के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था तीसरे युद्ध को किस हद तक झेल पाएगी कहा नहीं जा सकता। उधर आईएमएफ की ताजा चेतावनी में कहा गया है कि पूरा विश्व एक और आर्थिक महामंदी की ओर बढ़ रहा है, जिससे कोई भी देश अछूता नहीं रह पाएगा। लीबिया, सीरिया और मिस्र की अशांति भी कुछ कम घातक सिद्ध नहीं हुई। कुल मिलाकर 2012 की शुरुआत में विश्व के खतरनाक मोड़ पर खड़ा हुआ है।

भारतीय उपमहाद्वीप में अगर युद्ध छिड़ता है तो भारत भी अछूता नहीं रहेगा। परोक्ष या अपरोक्ष किसी न किसी रूप से भारत को इसमें भागीदारी करनी होगी। पड़ोसी देश पाकिस्तान में आजादी के बाद से लोकतंत्र मजबूत रह ही नहीं पाया। लोकशाही पर फौज और कट्टरपंथ का वर्चस्व हमेशा रहा। वहां की राजनीति कश्मीर से ऊपर उठकर सोच ही नहीं पाई और हमेशा फौज और आईएसआई के दबाव में रही। खुदा न खास्ता अगर अमेरिका ने पाकिस्तान के खिलाफ सीधा युद्ध छेड़ दिया तो फिर पाकिस्तान जैसी कोई चीज नक्शे पर बचनी मुश्किल होगी, क्योंकि वहां लोकतंत्र टिक ही नहीं सकता। केवल फौज शासन कर सकती है, जिसे अमेरिका बर्दाश्त नहीं करेगा। तो 2012 में जिस बड़े उठा-पटक की बात कहीं जाती रही थी, उसके संकेत अभी से मिल रहे हैं। आगे आगे देखिए होता है क्या?

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