शुक्रवार, 5 जून 2015

गोलगप्पों में मिलावट!

गोलगप्पे में टट्टी की मिलावट वाली खबर ने तो दिल ही तोड़ दिया। सच्ची! भला ये भी कोई चीज हुई मिलावट करने के लिए। शुक्ला जी को तो जिस दिन से इस खबर का पता चला है सन्नाटे में आ गए हैं। अजीब सा मौन पसरा हुआ है उनके चेहरे पर। जीवन में उन्होंने कोई ऐब या शौक नहीं पाला, शुद्ध शाकाहारी एवं ऐबरहित। बस गोलगप्पा ही उनका सबसे बड़ा ऐब और कमजोरी था। थकते नहीं थे, गोलगप्पों का बखान करते हुए। दिल्ली के कोने-कोने के गोलगप्पों का रसपान कर चुके थे। कहां-कहां कितने प्रकार के पानी के साथ गोलगप्पे खिलाए जाते हैं, सबकी फेहरिस्त उन्हें जुबानी याद थी। इसमें भी लाजपतनगर के गोलगप्पों के तो वो दीवाने थे। वैसे भी चाट के नाम पर गोलगप्पे ही उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर नहीं डालते थे, सुपाच्य पानी के साथ वसारहित भोज। चाट की दुकान पर ये जो टिक्की होती है न, बहुत नामुराद चीज होती है। एक तो आलू और वो भी सर से पांव तक घी में तला हुआ। घी मिलावटी हुआ फिर तो गई सेहत पानी में। सो, शुक्ला जी ने चाट की दुकान पर केवल गोलगप्पे के साथ ही अपना नाता जोड़ा था। बाकी किसी भी चाट की ओर वह आंख उठाकर भी नहीं देखते थे। अब जब एक गोलगप्पा ही खाना है, तो भला चार-पांच की संख्या में क्या खाया जाए, 15-20 से कम में शुक्ला जी का काम नहीं चलता था। जी भर के खाने के बाद जो जलजीरे वाली डकार आती, अहो! क्या कहने उसके। सचमुच दिव्य अनुभूति। अलौकिक। शुक्ला जी का वश चलता तो गोलगप्पों को ‘राष्ट्रीय खाद्य पदार्थ’ घोषित करवा देते।

गोलगप्पों के बिना अपने समाज की परिकल्पना अधूरी है। न जाने कितनी ही फिल्मों में गोलगप्पों का सीन फिल्माकर उनके महत्व का बखान किया गया है। कंगना की ‘क्वीन’ फिल्म गोलगप्पे वाले सीन के बिना अधूरी है। रब ने बना दी जोड़ी में भी शाहरुख और अनुष्का गोलगप्पे खाते हुए कितने अच्छे लगे हैं। पर गोलगप्पे में भी मिलावट हो सकती है, ये तो शुक्ला जी ने कभी सोचा ही नहीं था। मिलावट का स्कोप ही कहां है। आखिर इनमें होता ही क्या है, पानी के सिवा। लेकिन अखबारों की कतरनें चिल्ला-चिल्ला कर कह रही हैं, गोलगप्पों में मिलावट है, और वह भी ऐसी चीज की कि पूछो मत। मन घिनिया गया है उनका। पहले शुक्ला जी गोलगप्पे खाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते थे। आॅफिस से घर वापस लौटते वक्त दो-चार पत्तों पर हाथ साफ करना उनको दिन भर की थकान से आराम देता। पर जिस दिन से मिलावट वाली मनहूस खबर पढ़ी है, उस दिन से उनकी आंखें सिर्फ दूर से गोल-गोल गोलगप्पों को देखकर मन ही मन उनका स्वाद ले लेती हैं। उनके और गोलगगप्पों के बीच उनका दिमाग दीवार बनकर खड़ा हो जाता है। हालांकि, उनके दिल का एक कोना अब भी ये मानने को तैयार नहीं कि गोलगप्पे में टट्टी जैसी निकृष्ट चीज की मिलावट है।

आजकल अकेले में शुक्ला जी यही सोचकर अपने आपको समझाते हैं- ‘‘हो न हो ये झूठी खबर है, जो अखबारों के माध्यम से अपने समाज में फैलाई गई है। दिल्ली में सड़क किनारे चाट बेचने वालों पर कराया गया ये सर्वे हो न हो एक पेड सर्वे है। ये बड़े-बड़े रेस्तरां वाले छोटे दुकानदारों की रोजी खाना चाहते हैं। ठेले वालों ने सस्ते दाम में लजीज चाट परोसकर इन बड़े-बड़े रेस्तरां वालों के सामने खतरा पैदा कर दिया होगा। तभी ऐसा सर्वे कराने की नौबत आई होगी। ताकि सारी भीड़ सड़क पर खाना बंद कर दे और रेस्तरां चल निकलें। अरे हां! रेस्तरां के बिलों पर सर्विस टैक्स भी तो बढ़कर 14 परसेंट हो गया है, इससे तो उनके यहां भीड़ और कम हो जानी है। तभी ससुरों ने ये चाल चली है। अब भला जो मजा 10 रुपये के पांच खाने में है, वो 50 रुपये में पांच खाने में कैसे आ सकता है। उस पर 14 परसेंट सर्विस टैक्स भी दो। भाड़ में जाएं ये रेस्तरां वाले। वैसे तो मल विसर्जन के बिना दिन की शुरुआत हो ही नहीं सकती, जीवन का सबसे बड़ा सत्य है मल। पर गोलगप्पों में मिलावट ही दिखानी थी, तो किसी और चीज की भी दिखा सकते थे, टट्टी की मिलावट क्यों दिखाई। छिः छिः छिः। औक!’’

कर्म फल

बहुत खुश हो रहा वो, यूरिया वाला दूध तैयार कर कम लागत से बना माल बेचेगा ऊंचे दाम में जेब भर बहुत संतुष्ट है वो, कि उसके बच्चों को यह नहीं पीन...