Saturday, January 18, 2014

एक था आम आदमी!

एक बार एक आम आदमी था। एक दम आम, खास होने के दूर-दूर तक कोई लक्षण नहीं। सादगी से जीवन जीता, दिन भर मेहनत करता, दो वक्त की रोटी कमाता और रात को चैन की नींद सोता। मनोरंजन के लिए उसके पास ज्यादा कुछ नहीं था, अपने तीज-त्योहार और कुछ लोक गीत। कभी-कभार सिनेमा भी देख आता था। उसकी दाल-रोटी आराम से चल रही थी। उसकी जरूरतें भी ज्यादा नहीं थीं।

फिर अचानक उसकी भेंट रेडियो नामक यंत्र से हुई। देश दुनिया की खबरें और फिल्मी गाने सुनने के लिए ये यंत्र उसको बढि़या लगा। थोड़े पैसे जोड़कर वो इस यंत्र को अपने घर ले आया। शाम को जब ये आम आदमी काम के बाद लौटता तो रेडियो पर खबरें सुनकर अपनी जानकारी बढ़ाता। रेडियो की खबरें सुनकर उसकी अपनी भी राय बनने लगी। उस पर प्रसारित होने वाले फिल्मी गानों की गीतमाला की उसे आदत सी पड़ गई। जिंदगी में छोटी-मोटी परेशानियां तो थीं, लेकिन आम आदमी टेंशन में कभी नहीं आता था। साधारण दाल-रोटी खाकर भी उसका स्वास्थ्य ठीक था।

समय बीता और आम आदमी को पता चला कि टीवी नामक यंत्र भी देश के शहरों में पांव पसारने लगा है। इस यंत्र पर आप गाने सुनने के साथ-साथ देख भी सकते हो। नाायक और नायिका टीवी पर नाचते हुए दिखते हैं। घर के घर में बैठे सिनेमा भी देख लो। यंत्र थोड़ा महंगा था, फिर भी आम आदमी पैसे जोड़-जोड़ कर जैसे-तैसे एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी घर में ले ही आया। बच्चों और पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पूरा परिवार बड़ी खुशी से टीवी पर रामायण, महाभारत सीरियल, चित्रहार और फिल्म देखता। आम आदमी को समाचार देखने का भी शौक था। समाचार से ही उसको पता चलता कि हमारी सरकार देश के प्रति कितनी चिंतित है। वो रोज दूरदर्शन पर प्रधानमंत्री के बयान सुनता। टीवी पर दिखने वाले तमाम नेताओं का आभामंडल उसको खासा आकर्षित करता। उसका भी मन होता कि काश वो भी उन्हीें की तरह बड़ा आदमी होता। 

खैर, टीवी देखकर ही उसको पता चला कि वो दुनिया से कितना पीछे चल रहा है। वो अभी तक घड़े का पानी पीता है, जबकि बाजार में फ्रिज आ चुका है। वो मंजन करता है जबकि दांतों को मोतियों की तरह चमकाने वाला पेस्ट बाजार में मौजूद है। पत्नी रद्दी से साबुन से कपड़े धोती है जबकि बाजार में साबुन की ऐसी नीली टिकिया आ चुकी है जो उसकी साड़ी को पड़ोसन की साड़ी से ज्यादा सफेद बना देती है। पत्नी का रंग इसलिए सांवला है क्योंकि वो गोरापन बढ़ाने वाली क्रीम नहीं लगाता। बच्चों को भी पता चल गया कि दूध ऐसे ही नहीं पीना चाहिए इसमें लंबाई बढ़ाने वाला पाउडर डालना चाहिए उससे दूध का स्वाद भी अच्छा लगता है। आम आदमी को लगने लगा कि बेहतर जीवन जीने के लिए घर में ये सब सामान होने जरूरी हैं। पत्नी और बच्चों की भी यही इच्छा थी। इसके लिए आम आदमी ने अपनी आमदनी बढ़ाने की सोची। छोटी सी सरकारी नौकरी में ये सब जुटा पाना मुश्किल था। सो, आम आदमी ने वही राह पकड़ी जिस पर उसके कुछ साथी चल रहे थे। आम आदमी अपनी तनख्वाह के अलावा मेज के नीचे से भी कमाना शुरू कर दिया।

आम आदमी के घर में धीरे-धीरे संसाधन जुटने लगे। आम आदमी अब अपने सपनों को जी रहा था। जिंदगी काफी आरामदायक लग रही थी। लेकिन उसके मन का चैन कहीं जाता रहा। पर आम आदमी ने उस चैन की परवाह किए बगैर अपना अभियान जारी रखा। आम आदमी को अभी भी वो नेताओं वाला आभा मंडल आकर्षित कर रहा था। लाल बत्ती, सलाम ठोकते अर्दली, बड़ा बंगला, दौलत, शौहरत। आम आदमी ने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाया। उनको एक से एक बेहतर सुविधा देने की कोशिश की। तब तक बाजार में नए-नए कोर्स भी आ गए थे। सो, एक बेटे को एमबीए कराया और दूसरे को बीटेक।

आज आम आदमी के पास गाड़ी है, बंगला है सब सुख सुविधाएं हैं। एक बेटा विदेश में है, दूसरा मुंबई में सेटल है। आम आदमी अपने बच्चों के साथ रोज वीडियो चैटिंग करता है। उसको ये सब बच्चों न ही सिखाया। बच्चे इतने व्यस्त हैं कि माता-पिता के पास कम ही आ पाते हैं। फिर काम का इतना दबाव है कि उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती। आम आदमी को अपने बच्चों की याद तो आती है, लेकिन ये सुकून होता है कि उसके बच्चे भले ही उसके पास नहीं हैं पर अपनी मेहनत के दम पर अपने पांव पर खड़े हैं और सारी सुख सुविधाएं जुटा ली हैं।

लेकिन जब से ये आम आदमी पार्टी आई है तब से आम आदमी के मन में उथल-पुथल सी है। आम आदमी को लग रहा है कि जिन सुविधाओं के पीछे वो पिछले 30 सालों से दौड़ता रहा, ये नई पार्टी उन सुविधाओं को दरकिनार करके काम कर रही है। आम आदमी का मन बदल रहा है, पर उसको लगता है कि थोड़ी देर हो चुकी है क्योंकि उसने अपने जीवन का सबसे खूबसूरत दौर सुख-सुविधाओं के पीछे दौड़ने में बिता दिया।