शनिवार, 31 मई 2014

नई सरकार और भारत के गांव

भारतीय शहर और गांव में इतना बड़ा अंतर है कि उन्हें देखकर ये लगता ही नहीं कि वे एक ही देश के हिस्सा हैं। भारतीय गांव की असली तस्वीर किसी पेंटिग में बनी गांव की सुंदर सी तस्वीर से बिल्कुल विपरीत है। गांवों और शहर के विकास के लिए केंद्र सरकार ने  अलग-अलग मंत्रालय खड़े किये- शहरी विकास और ग्रामीण विकास मंत्रालय। जहां तक शहरी विकास का मामला है तो वह तो खुली आंखों से स्पष्ट नजर आता है, लेकिन अगर गांव के विकास की बात करें तो वह केवल किसानों की जमीन अधिग्रहण तक ही नजर आता है। जब भी सरकार कोई भी नया काॅलेज या अस्पताल खोलने की घोषणा करती है तो वह शहर के लिए ही होती है, यानि हर काम के लिए गांव वाले ही शहर आएं। इसका विपरीत कभी होते नहीं देखा। यहां तक कि देश के नेताओं को भी अगर चुनावी रैली करनी है तो वह शहर में ही होगी, गांव में जाकर रैली करना केवल किसी विशेष अवसर पर ही होता है। 67 साल की आजादी में गांवों को मुख्य धारा से जोड़ने के दावे और वादे तो बहुत हुए पर गांव अभी भी बहुत उपेक्षित हैं। अब अच्छे दिन देने का वादा करके देश में नई सरकार आई है। लोगों में उत्साह है और उनकी नए प्रधानमंत्री से ‘महा‘ अपेक्षाएं हैं। ऐसे में गांव के कुछ मुद्दों को उठाने का प्रयास-

गांव की राजनीतिः राजनीति जब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो तो अच्छी होती है, लेकिन अगर वही राजनीति गांव और घर में होने लगे तो बेहद घातक सिद्ध होती है। इसके दुष्परिणाम सामने आने भी लगे हैं। पंचायती राज व्यवस्था बनाई तो गई थी गांवों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, लेकिन इस व्यवस्था ने कितना वीभत्स रूप अख्तियार किया है, ये उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों में जाकर देखें। आपसी प्रेम, सौहार्द और सहयोग पर टिका गांव का समाज गांव की राजनीति के कारण पूरी तरह बिखर चुका है। आपसी सहयोग की भावना पैसे की दौड़ में खत्म होती चली जा रही है। ऐसे में गांवों में होने वाले प्रधानी के चुनावों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। महात्मा गांधी ने जिस ग्राम स्वराज की अवधारणा देश को दी थी वो वर्तमान पंचायती राज व्यवस्था कभी नहीं दे सकती। सही मायने में गांधी के ग्राम स्वराज को वास्तविकता में उतारने का प्रयोग अगर किसी ने किया है तो वह अन्ना हजारे ने रालेगण सिद्धि और उसके आसपास के गांव में कर के दिखाया है। नई सरकार को ग्रामीण भारत के उत्थान के लिए पंचायती राज व्यवस्था पर नये सिरे से सोचना चाहिए। गैर सरकारी संगठन और सीएसआर ग्रामीण उत्थान में बड़ा सहयोग कर सकते हैं। बस जरूरत यही है कि जो भी योजना या कदम उठाए जाएं उनमें गंभीरता हो, सिर्फ पैसे कमाने और नेतागीरी के उद्देश्य से काम न हो।

किसान और खेती को सम्मानः ग्लैमरस नौकरियों के इस दौर में ग्रामीण युवा के बीच खेती के प्रति तेजी से अरुचि पैदा हो रही है। गांव का युवा अब हल चलाना नहीं चाहता, उसको भी शहर में अच्छी नौकरी की दरकार है। बड़ी तादाद में ग्रामीण युवा इस दिशा में सफल भी हो रहे हैं, सरकारी और निजि क्षेत्र दोनों में अपना परचम लहराया है। इनमें अधिकांश मामले उन युवाओं के हैं, जिनके परिवारों की माली हालत पहले से ठीक-ठाक होती है। इधर जिन युवाओं का शहर में नौकरी का सपना पूरा नहीं हो पाता वो भी खेती-किसानी से कतराता है। भले ही पूरे देश को किसान की उपजाई फसल के कारण दो वक्त की रोटी नसीब होती हो, लेकिन खेती करना समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। इसलिए नई सरकार को खेती को प्रोमोट करने की दिशा में ध्यान देना चाहिए। गांव से तेजी से हो रहा पलायन रोकने के लिए उनके आसपास ही रोजगार हों। खेती के साथ-साथ उनके हाथ में जो हुनर है उसको नजदीक में ही बाजार मिले। ऐसे तमाम उदाहरण इसी देश में उपलब्ध हैं जहां बड़ी-बड़ी नौकरियां छोड़कर लोगों ने खेती करना बेहतर समझा। खबरें आ रही हैं कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश पी. सताशिवम् रिटायरमेंट के बाद दिल्ली में रहने के बजाय तमिलनाडु स्थित अपने गांव जाकर खेती करेंगे।

उपजाऊ जमीन और विकासः ये भी अजीब विडंबना है कि भारत में सिमेंटीकरण की प्रक्रिया को ही विकास का मापदंड समझा जाता है। जिस इलाके में जितना ज्यादा सीमेंट ठुका है यानि वो उतना ही विकसित है। कच्चे छप्पर वाले घर पिछड़ेपन की निशानी बन गए हैं। सिमेंटीकरण को बढ़ाकर शुरू हुआ विकास का दौर इस कदर फैल रहा है कि गांव की खेतीहर भूमि को भी कब्जे में लेता जा रहा है। रीयल एस्टेट की छतरी के नीचे फैल रहा हाई राइज अपार्टमेंट कल्चर दिल्ली से निकल कर एनसीआर, फिर एनसीआर से निकल कर वृहद एनसीआर और वृहद एनसीआर से निकल कर छोटे-छोटे शहरों की उपजाऊ जमीन कब्जाता जा रहा है। आलम ये है कि मेरठ जैसे उपजाऊ जिले के किसानों ने भी थोड़े से लाभ के लिए बड़े पैमाने पर अपनी खेती की जमीन रीयल एस्टेट के हाथों बेच दी और बेच रहे हैं। इसी तरह 160 किलोमीटर लंबे नवनिर्मित यमुना एक्सप्रेस वे के दोनों तरफ हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन को भी अर्बन जोन में तब्दील करने की भी महायोजना है। इतनी बड़े स्तर पर उपजाऊ जमीन का सीमेंटीकरण करना न केवल पर्यावरण की दृष्टि से बल्कि कृषि उत्पादन की दृष्टि से भी नुकसान दायक साबित होगा। जबकि जरूरत इस बात की है कि देश में ऐसी भूमि को चिन्हित किया जाए जो अनउपजाऊ और बेकार पड़ी हैं। नए टाउनशिप, इंडस्ट्रियल एरिया डेवलप करने से पहले इलाके का सर्वे कराकर बेकार और बंजर जमीन को प्राथमिकता दी जाए। हालांकि ये थोड़ा जटिल कार्य होगा, पर अगर ध्यान नहीं दिया गया तो परिणाम आगे लिखे हैं।

काॅस्मेटिक फूड-काॅस्मेटिक जेनरेशनः मेरठ में पत्रकारिता के दौरान एक बार सेंट्रल पटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीपीआरआई) के एक वैज्ञानिक का इंटरव्यू लेने का मौका मिला। बातचीत करते-करते हाइब्रिड बीज और जीएम बीज तक पहुंची। मैंने उनसे पूछा कि आजकल के अनाज में वो पहले वाली खुशबू क्यों नहीं है। गेहूं की रोटी, अरहड़ की दाल और बासमती चावल में वो पहले जैसी बात कहां चली गई? क्या ये हाइब्रिड बीजों का नतीजा है। उन्होंने न लिखने की शर्त पर बताया कि ‘देश की जनसंख्या लगातार तेजी से बढ़ रही है और उपजाऊ जमीन उतनी ही तेजी से घट रही है। ऐसे में सरकार की पहली प्राथमिकता है इतनी बड़ी जनसंख्या का पेट भरना। इसलिए सरकार का मुख्य ध्यान पैदावार पर है, गुणवत्ता पर नहीं। यानि क्वांटिटी प्राथमिकता है क्वालिटी नहीं। हाइब्रिड और जीएम बीजों की मदद से पैदावार में जबरदस्त इजाफा देखने को मिला है‘। पर्यावरणविद् समय-समय पर जीएम फूड के नुकसानों की ओर ध्यान खींचते रहे हैं। एक और नुकसानदायक प्रत्यक्ष उदाहरण पंजाब में देखने को मिलता है जहां अच्छी पैदावार के चक्कर में केमिकल फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड्स के प्रयोग से वहां कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस तरह का अन्न खाकर देश की आने वाली पीढ़ी कैसी होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। नए पर्यावरण मंत्री ने बयान तो दे दिया कि विकास और पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं, लेकिन असलियत तो यही है कि विकास पर्यावरण की कीमत चुकाकर ही होता है। अब ये नई सरकार को तय करना है कि वो सिमेंटीकरण के विकास का अनुसरण करे या फिर विकास के नए अर्थ गढ़े। 

गोधन और जैविक खादः खेती और गौपालन को समाज में सम्मान दिलाना बहुत जरूरी है। व्हाइट काॅलर जाॅब का आकर्षण गांव के युवाओं को खेती और गौपालन से खींच रहा है। अच्छी खेती के लिए गायों का बड़े स्तर पर पालन होना चाहिए उनका कटान नहीं। गायों का पालन हर दृष्टि से लाभदायक है, इसे बार-बार बताया गया है। बच्चों के लिए दूध से लेकर किसान को जैविक खाद प्रदान करने तक गायें हर तरह से अर्थव्यवस्था में लाभदायक है। जरूरत इस बात की है कि गौपालन का काम भी समाज में सम्मान से देखा जाए। अन्यथा सिंथेटिक दूध, दही और पनीर खाकर बढ़ रही पीढ़ी कितनी मजबूत होगी ये कहना मुश्किल है। सरकार चाहे तो शहरों में घरों से निकलने वाला कचरा और नदियों की सफाई में निकलने वाले कचरे को भी जैविक खाद् में तब्दील कर किसानों को मुहैया करा सकती है।

गांव की संस्कृतिः इसे बाॅलीवुड का असर ही कह सकते हैं कि गांव का नाम सुनकर जो पहली तस्वीर बनती है वो है एक हरा-भरा, साफ-सुथरा स्थान जहां सीधे-सरल लोग रहते हैं। जबकि सच्चाई इसके उलट है। न तो गांव उतने हरे-भरे रहे और न साफ-सुथरे। गांव की राजनीति ने वहां के लोगों को भी सीधा और सरल नहीं रहने दिया है। वो तो भला हो पाॅपुलर के पेड़ों से मिलने वाले आर्थिक लाभ का कि कई गांवों में इन पेड़ों की वजह से हरियाली फिर लौट आई है। फिर भी हर गांव की अपनी एक संस्कृति होती है, जो शहरीकरण की होड़ और दौड़ में खोती जा रही है। वहां की बोलचाल, भाषा, वेशभूषा तथाकथित माॅडर्न कल्चर की भेंट चढ़ती जा रही है। इसे घर-घर लगे टेलीविजन का ही असर कहें या आधुनिक दिखने की होड़ कि गांव की अपनी बोली का स्थान एक सभ्य खड़ी हिंदी लेती जा रही है, वहां का खानपान बदल रहा है, पहनावा बदल रहा है। हालांकि बदलाव अवश्यंभावी है और उसको स्वीकार किया जाना चाहिए, लेकिन किस हद तक ये सोचना होगा!

रविवार, 18 मई 2014

भारत में बदलाव की बयार

एक दौर था जब भारत एक गरीब देश था, और उसके नेताओं के पास लोगों को देने के लिए सिर्फ आश्वासन और वादे थे। भाषण देते वक्त वे खुद भी जानते थे कि वादों को पूरा कर पाना संभव नहीं। लेकिन अब देश की स्थिति इतनी कमजोर नहीं है। देश के आर्थिक हालातों में बेहद सुधार आया है। इन्हीं सुधारों के आधार पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना संजोया था। मगर बीच में यूपीए के दस सालों में ये सपना कहीं खो सा गया। इतनी बेहतरीन परिस्थितियों में भी अगर आज नेता अपने वादों को पूरा नहीं करते हैं तो इसका मतलब है कमजोर इच्छाशक्ति और खराब नियत। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की तूफानी जीत ने पूरे देश में एक नया आत्मविश्वास भरा है, एक नई उम्मीद जगाई है। स्वयं मोदी ने अपने भाषणों में जो विजन पेश किया है उनसे सुधार आने की संभावना जगी है। जिस तरह मोदी की जीत सुनिश्चित करने के लिए तमाम संगठनों ने एकजुटता के साथ काम किया उसी तरह अगर भारत को सचमुच विश्वगुरू बनाना है तो उसके लिए समाज के हर वर्ग को एकजुटता के साथ काम करना होगा और सबसे पहले खुद को बदलना होगा।

बदलाव का समय, राह नहीं आसानः स्वामी विवेकानंद से लेकर श्री राम शर्मा आचार्य तक कई मनीषियों ने इस बात की घोषणा की थी कि 2011 के बाद भारत में बड़े परिवर्तन आएंगे और भारत विश्व गुरू बनकर उभरेगा। 2010 से भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए तमाम आंदोलनों के साथ इन बदलावों की शुरुआत हुई। भाजपा की जीत होगी इस बात को लेकर सब आश्वस्त थे, लेकिन इतना प्रचंड जनादेश मिलेगा इसका अनुमान भाजपा को भी नहीं था। इस जबरदस्त जीत के पीछे मोदी की मेहनत के साथ-साथ ईश्वर की कृपा भी दिखती है। अच्छी बात ये है कि मोदी अब तक देश के अन्य प्रधानमंत्रियों की तरह बड़ी-बड़ी बातें करने के बजाय छोटी-छोटी बातें लोगों को समझा रहे हैं, जो लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी हैं। उन्होंने लोगों से साफ-सफाई पर ध्यान देने का आह्वान किया है, उन्होंने सरकारी कर्मचारियों से मन लगाकर काम करने की बात कही है, उन्होंने गंगा में गंदगी न फेंकने की अपील की है। अमूमन एक प्रधानमंत्री स्तर का व्यक्ति इस तरह की बातें नहीं करता था। मोदी को इस चुनाव में केवल जनसमर्थन ही नहीं मिला जनश्रद्धा भी मिली है। अपने जुझारू व्यक्तित्व के चलते वो लोगों के बीच श्रद्धा का पात्र बनते जा रहे हैं। जितने आरोप मोदी पर लगे, जितनी उंगलियां उन पर उठाई गईं, जितना द्वेष उनके प्रति फैलाया गया यदि किसी दूसरे के खिलाफ फैलाया गया होता तो वो कब का खत्म हो जाता। लेकिन मोदी खुद को मजबूत और मजबूत करते गए। आज उनके विरोधियों के मुंह पर ताले जड़ गए हैं। उन्हें ये समझ नहीं आ रहा है कि अब कौनसा हथियार चलाएं। बहरहाल, मोदी ने अब तक जिस तरह लोगों से सीधा संवाद स्थापित किया है, उसको प्रधानमंत्री के तौर पर भी जारी रखने की जरूरत है। किसी ऊंचे पद पर बैठकर लोगों से कट जाना सबसे बड़ी भूल होती है। दूसरी ओर मोदी को पार्टी के भीतर भी सादगी और जनसेवा का भाव जगाना होगा। फाइव स्टार कल्चर एक बार पहले भी भाजपा को भारी पड़ चुका है। देश की मिडिल क्लास जनता को ये कतई गले नहीं उतरता कि उनका जनप्रतिनिधि हाई प्रोफाइल जिंदगी में मस्त रहे।

एमपी नहीं पीएमः मोदी को अपने सभी सांसदों को भी ये अहसास दिलाना होगा कि कि उन्हें एमपी नहीं बल्कि अपने क्षेत्र के पीएम की तरह काम करना है। अधिकांश सांसद जीतने के बाद न्यूनतम जनसंपर्क करते हैं। जिस तरह का जनसंपर्क वो चुनाव के दौरान करते हैं उसका आधा भी अगर वो पांच साल तक करते रहें तो संसदीय क्षेत्र की तस्वीर बदल जाए। हर सांसद अगर अपने क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर वहां की समस्याओं को एक-एक करके सुलझाने का बीड़ा उठाए तो बड़े बदलाव आ सकते हैं। लेकिन होता इसके उलट है, सांसद महोदय बाहर जाने के बजाय घर पर जनता दरबार लगाते हैं, फिर दिन में निमंत्रण निबटाना, कहीं फीता काट दिया, तो कहीं नारियल तोड़ दिया, स्थानीय अखबार में रोज फोटो छप जाए इसका जुगाड़ करना, अमूमन इसी सबको राजनीति समझा जाने लगा है। राजनीति का मतलब लाल बत्ती, अर्दली, गनर, माइक, भाषण, सफेद गाड़ी, खादी का कुर्ता पयजामा ये सब बनकर रह गया है। जबकि देश अब नई किस्म की राजनीति चाहता है।

करियर नहीं सेवाः अधिकांश पार्टियों का ये हाल है कि स्थानीय नेता राजनीति को करियर की तरह लेते हैं। उनको अपने पीछे सत्ता की ताकत चाहिए, थाने कचहरियों में सुनवाई हो सके ऐसी हनक चाहिए, एक सामाजिक सुरक्षा चाहिए। उसी उद्देश्य को लेकर सबसे पहले व्यक्ति किसी पार्टी का कार्यकर्ता बनने की कोशिश करता है, कार्यकर्ता बनते ही टिकट पाने की कोशिश करता है, टिकट मिलते ही मंत्री बनने की जुगत भिड़ाता है और मंत्री बनते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजर टिका देता है। इस सबके बीच जो सामाजिक बदलाव का मूल काम है वह पीछे छूटता चला जाता है। जरूरत इस बात की है कि स्थानीय नेताओं का काम सुनिश्चित करना होगा। सरकार का मुखिया कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर उसकी बनाई योजनाओं का लाभ जिला स्तर तक नहीं पहुंच पा रहा, तो लोगों का रोष लाजमी है। संगठन को जिला स्तर पर मथने की सबसे ज्यादा आवश्यकता है, क्योंकि लोगों से सीधा जुड़ाव वहीं से बनेगा। जिला कार्यकारिणी का विजिनरी होना बेहद जरूरी है। इस दिशा में भाजपा को ही नहीं बाकी पार्टियों को भी काम करना चाहिए।

कांग्रेस को सबकः कांग्रेस को जनता ने इस बार जबरदस्त सबक सिखाया है। कुछ लोग इसे बाबा रामदेव का श्राप भी कह रहे हैं। जिस तरह चाणक्य ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए चंद्रगुप्त के माध्यम से मगध का सिंहासन हिला दिया था, उसी तरह रामलीला मैदान में हुए अपने अपमान के बाद रामदेव ने भी कांग्रेस को सत्ता-विहीन करने का संकल्प ले रखा था। खैर, भाजपा की जबरदस्त जीत के बाद इस तरह के तमाम प्रसंग फेसबुक और लोगों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। लेकिन इतनी बड़ी ऐतिहासिक हार के बाद कांग्रेस का पुनःउत्थान किस प्रकार हो ये पार्टी के समक्ष एक यक्ष प्रश्न है।

योजनाएं हैं योजनाओं का क्या: कांग्रेस के हार के पीछे सबसे बड़ा कारण उसके भ्रष्टाचार, घोटाले, महंगाई और वे तमाम विफलताएं हैं जिनकी वजह से भारत को बदनामी झेलनी पड़ी। आलम ये था कि अगर सुप्रीम कोर्ट, मीडिया और सामाजिक संगठनों ने सक्रिय भूमिका न निभाई होती तो न जाने स्थिति कितनी भयावह होती। इसमें कोई दो राय नहीं सोनिया और राहुल गांधी की पार्टी के अंदर जबरदस्त पकड़ है और उनके शब्द ही अंतिम माने जाते हैं, लेकिन सोनिया और राहुल ने अपनी ये ताकत खुद के मंत्रियों के भ्रष्ट क्रियाकलापों को रोकने में इस्तेमाल नहीं की। अगर राहुल और सोनिया सही सोच के साथ चाह लेते तो मंत्रियों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सकती थी, लेकिन प्रतीत ऐसा हो रहा था मानो उन्होंने पार्टी नेताओं को खुला हाथ दे रखा है। कांग्रेस से ‘खाओ और खाने दो’ की नीति की बू आ रही थी। राहुल गांधी अपनी रैलियों में जिन कानूनों और योजनाओं की बार-बार बात कर रहे थे, वे लोगों के गले नहीं उतर रहे थे। क्योंकि योजनाएं बनाना एक बात है और उनको जमीन पर उतार कर दिखाना दूसरी। लोगों को पता था कि सारी जनकल्याणकारी योजनाएं अंततः भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। देश को व्यवस्था परिवर्तन चाहिए कानून परिवर्तन नहीं। छद्म धर्मनिर्पेक्षता के नाटक ने भी बहुसंख्यक समाज को कांग्रेस से खासा नाराज किया। खुद अल्पसंख्यकों को भी स्पष्ट नजर आने लगा था कि धर्मनिर्पेक्षता का राग अलाप कर कांग्रेस केवल माइनोरिटी कार्ड खेलती है और उसमें सचमुच अल्पसंख्यकों के कल्याण की भावना नहीं है।

महात्मा गांधी की शरण में कल्याणः कांग्रेस को वर्तमान परिस्थितियों में केवल एक शख्स बचा सकता है और वह है महात्मा गांधी। कांग्रेस सालों से गांधी का नाम तो इस्तेमाल करती आई है, लेकिन उनका अनुसरण लेशमात्र भी नहीं दिखता। पार्टी कार्यकर्ताओं में सेवा भाव और देश प्रेम से ज्यादा पद प्रेम दिखता है। हाई प्रोफाइल कल्चर और लोगों से दूरी बनाकर रखना भी हार का कारण है। प्रचार के दौरान भी पार्टी के स्टार प्रचारक कार्यकर्ताओं के घर में ठहरने के बजाय होटलों में ठहरना पसंद करते हैं। जबकि महात्मा गांधी की कांग्रेस में कार्यकर्ताओं को संगठन चलाने और लोगों की सेवा करने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाती थी। कांग्रेस सेवा दल के कार्यकर्ता पूरे जोश के साथ लोगों के सुख-दुख में खड़े रहते थे। लेकिन आज की कांग्रेस में सेवा दल को सबसे कम तवज्जो दी जाती है।

अध्ययन अवकाशः राहुल गांधी को कुछ महीने तक केवल महात्मा गांधी के साहित्य का अध्ययन करना चाहिए। महात्मा ने भारत के विकास के लिए जिस तरह का माॅडल दिया था उसको वर्तमान परिस्थिति में किस प्रकार उतारा जाए, गांवों को आत्मनिर्भर बनाने और उनका विकास करने के लिए जिस प्रकार का सपना देखा था उसे कैसे साकार किया जाए ये देखना होगा। गांव पलायन की समस्या से बुरी तरह जूझ रहे हैं, गांव के युवाओं में खेती के प्रति अरुचि तेजी से बढ़ रही है, जो खतरनाक संकेत है। राजीव गांधी ने ग्राम पंचायतों को मजबूत करने की दिशा में जरूर गंभीर कदम उठाए लेकिन वे कदम दिल्ली से गांव तक पहुंचते-पहुंचते कुरूप होते गए। ग्राम पंचायत चुनावों ने गांव के सामाजिक तानेबाने को तोड़कर रख दिया है। गांव की घटिया राजनीति वहां के सौहार्द को खाती जा रही है। दूसरी ओर शराब गांव की पहले से खराब अर्थव्यवस्था को और ज्यादा नष्ट कर रही है। जबकि महात्मा गांधी के माॅडल में शराब के लिए बिल्कुल जगह नहीं थी। इस तरह के तमाम मुद्दे हैं जिन्हें कांग्रेस को महात्मा गांधी के चश्मे से देखने की जरूरत है। 

आम आदमी पार्टी का भविष्यः कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ समाज में जनजागरण लाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह है अन्ना हजारे का आंदोलन और उनका सत्याग्रह। लेकिन इस आंदोलन से जन्मी अरिवंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सत्ता मिलने पर कोई खास करामात नहीं दिखा पाई। दिल्ली के लोगों ने आम आदमी पार्टी के पक्ष में अभूतपूर्व परिणाम दिए। गली-मोहल्लों से निकले मामूली आंदोलनकारियों ने पहले से स्थापित मठाधीशों के सिंहासन हिला दिए। लेकिन अरिवंद केजरीवाल अपने 49 दिनों के शासन में पूरी तरह कंफ्यूज दिखे। उन्होंने मीडिया के कंधों का सहारा लेकर सरकार चलाने की कोशिश की। 49 दिनों में एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब दिल्ली में हंगामा न रहा हो और इन हंगामों में गंभीरता कम और ड्रामा ज्यादा नजर आई। चाहे वह बंग्ले का मुद्दा हो, मेट्रो में सफर का मुद्दा हो, जनता दरबार हो, या फिर उनका मफ्लर। पहले से स्थापित संस्थाओं और परंपराओं को तोड़ने की कोशिश की। कई चीजों पर तो एकदम बचकानी जिद दिखाई। अब जब किसी बिल पर चर्चा करने के लिए असेंबली है तो क्या जरूरी है कि जनलोकपाल बिल कुतुब मीनार की छत पर बैठ कर पास किया जाए। हद तो तब हो गई जब उन्होंने देश के गौरव का प्रतीक गणतंत्र दिवस परेड पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर भी उंगलियां उठाईं। दरअसल नकारात्मक राजनीति करते-करते वो खुद को सच्चाई का मसीहा और बाकी सब को चोर साबित करने में जुटे रहे। जब काम करने का वक्त आया तब भी खुद को आंदोलनकारी दिखाने की कोशिश करते रहे। वो मीडिया के माध्यम से खुद को हीरो दिखाने की कोशिश कर रहे थे और मीडिया उन्हें मसालेदार खबरों के लिए इस्तेमाल कर रही थी। जब मीडिया उन पर टाइट हुई तो कहने लगे मीडिया वाले भी चोर हैं और सबको जेल में डलवा दूंगा। जबकि महोदय खुद पुण्य प्रसून वाजपेयी के साथ भगत सिंह के नाम पर इंटरव्यू फिक्स कर रहे थे।

नकारात्मक राजनीति से बचेंः आम आदमी पार्टी को यदि अपना आधार बचाना है तो उसे दूसरों पर कीचड़ उछालने के बजाय कुछ करके दिखाना होगा। उसे विपक्ष के तौर पर अपने लिए एक सकारात्मक भूमिका तलाशनी होगी, जिसमें ड्रामेबाजी कम और गंभीरता ज्यादा दिखे। बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्यों को अपनाना होगा। उन क्षेत्रों में काम करना होगा जिन पर अक्सर सरकार नहीं कर पाती। अगर सचमुच अरविंद केजरीवाल देश और समाज को बदलना चाहते हैं तो उसके लिए प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की कुर्सी की कोई आवश्यकता नहीं है, वो बाहर रहकर भी बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। देश में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देकर बड़े-बड़े बदलाव किए जा सकते हैं। चुनावी राजनीति भी करते रहे अगर जनादेश मिले तो गंभीरता से सरकार चलाकर दिखाएं। इतना तो तय है कि देश करवट ले रहा है, आने वाला समय बहुत बड़े बदलावों का समय होगा, उसमें आम आदमी पार्टी अपने लिए क्या भूमिका तय करती है ये उसी को देखना है।

शनिवार, 17 मई 2014

चुनावी दोहे

अबकी आम चुनाव में अलग-अलग दिन घटी घटनाओं को मैंने फेसबुक पर दोहों के रूप में लिखा। 17 मार्च को शुरू हुआ सफर लिखते-लिखते आज 17 मई को आकर समाप्त हुआ। दोस्तों के कहने पर इन सबको एक जगह इकठ्ठा करके अपने ब्लॉग पर डाल रहा हूँ, उम्मीद है पसंद आएंगे:-

चुनावी दोहा . 1 

दंगों में मेहनत करी, हवा जेल की खाये।
टिकट गया संजीव को, सोम खड़े पछताये।

चुनावी दोहा . 2

अरविंद-मोदी दोउ खड़े, किसको डालें वोट। 
गलती अबकी कर गए, बहुत पड़ेगी चोट।।

चुनावी दोहा . 3 

सत्ता तू बड़भागिनी, मिले बारम्बार। 
तेरे रहते देख लूँ, बढ़िया बंग्ला कार।।

चुनावी दोहा . 4 

बातें बढ़-बढ़ कीजिए, सुनो कोई पीर। 
सबको कुछ-कुछ दीजिए, अस्वासन की खीर।।

चुनावी दोहा . 5 

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा मिला हर कोई। 
'कजरी' जा संसार में, तुझ से भला कोई।।

चुनावी दोहा . 6 

जब तक रहो विपक्ष में, खूब करो हड़ताल। 
कागा चित से बने रहो, चलो हंस की चाल।।

चुनावी दोहा . 7 

मंत्री पद वो चीज़ है, एक बार मिल जाए। 
सात पुश्त परिवार की, बस यूं ही तर जाएं।।

चुनावी दोहा . 8

अस्सी सावन जी चुके, जाए पद को मोह।
चश्मा पहने ले रहे, राजनीति की टोह।।
चुनावी दोहा . 9

कल तक जो अस्पृश्य थे, और बहुत बदनाम।
सत्ता की खातिर लगें, अब वो बहुत महान।।

चुनावी दोहा . 10 

भाजप का कुनबा बढ़ा, मोदी का गुणगान।
चढ़ते सूरज को सदा, करते लोग प्रणाम।।

चुनावी दोहा . 11

राजनीति के खेल में, कोई शत्रु मित्र।
सत्ता सुख पनपा रहा, अवसरवाद विचित्र।।

चुनावी दोहा . 12 

राजनीति में तय नहीं, कब लेवें संन्यास।
नेता बढ़ती उम्र में, करवाते परिहास।।

चुनावी दोहा . 13 

सत्ता के संघर्ष का, कोई आदि अंत। 
हवा किधर है बह रही, ये समझें जसवंत।।

चुनावी दोहा . 14

जद(यू) का कुनबा घटे, चले कोई जोर। 
कई विभीषण छोड़ कर, चले 'राम' की ओर।।

चुनावी दोहा . 15 

विश्वनाथ दरबार में, भइ नेतन की भीर।
कौन करे काशी विजय, बड़े-बड़े हैं वीर।।

चुनावी दोहा . 16

जनरल सिंह लड़ने चले, नई चुनावी जंग। 
'
गलत' उम्र के फेर में, 'सही' जम गया रंग।।

चुनावी दोहा . 17 

राजनीति ने खा लिया, भाइ-बहन का प्यार।
सारण आकर बिखर गए, राखी के सब तार।।

चुनावी दोहा . 18 

डंडे से अंडे भले, सुनो केजरीवाल।
सिर पर यूँ खाते रहो, मस्त रहेंगे बाल।।

चुनावी दोहा . 19 

पासवान को मिल गया, फिर एक नव जीवन। 
जब से लोजप को मिली, भाजप ऑक्सीजन।।

चुनावी दोहा . 20

राहुल ने दौरा किया, यत्र तत्र सर्वत्र। 
कांग्रेस ने तब किया, जारी घोषणापत्र।।

चुनावी दोहा . 21

जन सेवा हेतू बना, राजनीति का कर्म।
नेता करियर मानते, समझ पाए मर्म।।

चुनावी दोहा . 22

टिकट मांगने को मची, है जूतम पैजार।
अपनों के ही सामने, हर दल है लाचार।।

चुनावी दोहा . 23

मोदी की गोदी चढ़े, साबिर अलि भी आय। 
गठबंधन को तोड़कर, अब नितीश पछताय।।

चुनावी . 24

नकवी ने जारी किया, साबिर पर एतराज़। 
दाउद से तुलना करी, हुए विकट नाराज़।।

चुनावी . 25 

भाजप सत्ता के लिए, सबको गले लगाय।
भानुमती के नाम का, कुनबा बढ़ता जाय।।

चुनावी दोहा 26 

साबिर को अपनाय के, भाजप घिरती जाय।
बढ़ता हल्ला देखकर, रस्ता दिया दिखाय।।

चुनावी दोहा 27 

बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय।
काम बिगाड़े आपना, जग में होत हंसाय।।

(
ये वाला मेरा दोहा नहीं, पर यहाँ भाजपा पर फिट)

चुनावी दोहा . 28

भारी पड़े मसूद को, ऊंचे कड़वे बोल।
गाल बजाने से प्रथम, मन में लेवें तोल।।

चुनावी दोहा . 29 

बूढ़ों के संग भाजपा, रोज फंसावे कोण।
कोइ बना है भीष्मपिता, कोइ बन गया द्रोण।।

चुनावी दोहा . 30 

राहुल, तुलसी और कवि, भिड़े अमेठी आय। 
जनता पर निर्भर करे, किसे कहेगी बाय।।

चुनावी दोहा . 31

टिकट वापसी के लिए, लगी 'आप' में होड़।
'
कजरी' के पद चिन्ह पर, भाग रहे रण छोड़।।

चुनावी दोहा . 32

दल-दल दर-दर घूम लिए, कोई डाले घास।
चले बुखारी हार कर, कांग्रेस के पास।।
चुनावी दोहा . 33

मधुसूदन को जीत की, आस नज़र ना आय। 
लगा पोस्टर फाड़कर, खुजली लीन्ह मिटाय।।

चुनावी दोहा . 34

टीडीपी भी गई, एनडीए के साथ।
सींग लड़ाए तब बनी, गठबंधन पर बात।।

चुनावी . 35

आखिरकर जारी हुआ, भाजप घोषणा पत्र।
शक्ल दिखाने को हुए, नेता सभी एकत्र।।

चुनावी . 36

राम राम रटते रहो, जब तक रहो विपक्ष। 
तुरत राम बिसराइ दो, जइसे आओ पक्ष।।

चुनावी दोहा . 37

राजनीति के गुल खिलें, नित नए नवल प्रवीन।
तीन लोक तारण तरण, संविधान आधीन।।

चुनावी दोहा . 38

अजित सिंह या सत्यपाल, जीत एक की होय।
दो जाटन के बीच में, बाकी बचा कोय।।

चुनावी दोहा न. 39

क्षमा बड़न को चाहिए, 'लड़कन' को उत्पात।
फंसे मुलायम बोलकर, ऐसी घटिया बात।।

चुनावी दोहा . 40

कटू वचन होते सदा, दो-धारी तलवार। 
आज़म-अमित गंवा दिए, सम्बोधन अधिकार।।

चुनावी दोहा न. 41

मनमोहन पीछे पड़ा, बारू पुस्तक भूत।
पन्ना - पन्ना खोलता, यूपीए करतूत।।

चुनावी दोहा न. 42

संजय ने वर्णन किया, यूपीए का हाल।
नई महाभारत छिड़ी, भारत में तत्काल।।

चुनावी दोहा . 43

भाजप गठबंधन चला, नए शिखर की ओर।
जनमत सर्वेक्षण करें, नमो नमो का शोर ।।

चुनावी दोहा . 44 

गर्म हो रहा हर तरफ, दावों का बाजार।
सोलह मइ ही तय करे, पीएम का किरदार।।

चुनावी दोहा . 45

राजदीप-अर्णब गए, राज ठाकरे द्वार।
टीआरपी हेतु सुनी, नेता की फटकार।।

चुनावी दोहा . 46

जीजा जी के नाम पर, मचा चुनावी दंग।
भाषा की सीमाएं सब, नित्य हो रहीं भंग।।

चुनावी दोहा . 47

जहां पहुंच अरविंद का, धरना बन गया ध्यान।
धरती का दिखता असर, काशी बड़ा महान।।

चुनावी दोहा . 48

जिसने चुन चुन कर जहां, पंडित दिए निकाल।
वो फ़ारुक़ कश्मीर से, बजा रहे हैं गाल।।
चुनावी दोहा . 49 

थ्री डी, ट्वीटर, फ़ेसबुक, टेकनीक का राज। 
एक बची थी सेल्फ़ी, वो भी कर दी आज।।

चुनावी दोहा . 50 

बहुत सरल है दिग्विजय, गैर पे करना वार।
अब खुद की तस्वीर पर, बोलो बरखुरदार।।

चुनावी दोहा . 51

रिश्तों में दिखने लगे, वोटों के आसार।
मित्र बहन बेटी बुआ, चर्चा बारम्बार।।

चुनावी दोहा . 52

मोदी की शतरंज पर, मोहरा डीडी न्यूज़।
इंटरव्यू लेकर फंसा, कांग्रेस कन्फ्यूज।।

चुनावी दोहा . 53

जदयू के अध्यक्ष जी, बदल रहे हैं बोल।
आगे की रणनीति पर, पोल रहे हैं खोल।।

चुनावी दोहा . 54 

जिसके सुमिरन से सदा, कटें सभी के व्याध।
वही नाम लेना हुआ, भारत में अपराध।।

चुनावी दोहा . 55

'
यादव जी' ने जो किया, पक्षपात का काम।
भाजप को मुद्दा मिला, हुआ बनारस जाम।।

चुनावी दोहा . 56

मोदी को प्रतिबंध से, हुआ दोगुना लाभ।
जिला प्रशासन भीड़ में, बौना दिखा जनाब।।

चुनावी दोहा . 57

अबकी आम चुनाव में, बलवे पड़े दिखाइ।
पिछले हिंसक दौर की, फिर से याद दिलाइ।।

चुनावी दोहा . 58

सबसे बड़े चुनाव में, हालत हुई ख़राब। 
नौ चरणों का फैसला, लंबा रहा जनाब।।

चुनावी दोहा . 59 

सकल चरण मतदान के, आकर हुए समाप्त। 
अब सोलह को देखिए, किसको क्या हो प्राप्त।।

चुनावी दोहा . 60

एग्जिट पोल ने कर दिया, मोदी का अभिषेक।
विजय श्री की राह में, शंका बची शेष।।

चुनावी दोहा . 61

साफ़ इशारा रहे, यूं तो एग्जिट पोल।
फिर भी धुक-धुक हो रही, फंसे कोई झोल।।

चुनावी दोहा . 62 

कांग्रेस का धुआं उड़ा, जदयू चाटे धूल। 
तकरीबन हर राज्य में, खिला नमो फूल।।

चुनावी दोहा . 63 

मोदी-मोदी सब कहें राहुल कहे कोय।
दस सालों के राज पर कांग्रेस अब रोय।।

चुनावी दोहा . 64

चौवालिस पर सिमट गइ, कांग्रेस इस बार।
पूर्ण बहुमत पा गई, मोदी की सरकार।।

चुनावी दोहा . 65

पहली बार चुनाव में, मुद्दा बना विकास। 
सदियां याद दिलाएंगी, चौदह का इतिहास।।

चुनावी दोहा . 66 

उत्सव आम चुनाव का, हुआ सफल संपन्न। 
अंत भला तो सब भला, जनता दिखे प्रसन्न।।

चुनावी दोहा . 67

देते यहां विराम अब, दोहों को भी आज। 
बहुत बधाइ मोदी जी, करें कुशलतम राज।।


चुनावी दोहा . 68 

धन्यवाद सबका करूं, सबने किया पसंद।
बहुत शुक्रिया दोस्तों, जमकर लिया अनंद।।

मित्रों ने शपथ ग्रहण समारोह तक चुनावी दोहों को जारी रखने का आग्रह किया इसलिए कुछ दोहे और लिखे: 

चुनावी दोहा न. 69 

दगा कभी ना कीजिये, लगती मोटी हाय। 
नीतिश रिश्ता तोड़कर, लुटिया दीन्ह डुबाय।।


चुनावी दोहा न. 70

धोखा देकर फल चखा, जदयू ने भरपूर।
कुत्ता बिल्ली पालिए, पले न अहं हुज़ूर।।


चुनावी दोहा न. 71

आज सेंट्रल हॉल में, हुई धीरता भंग।
बही सफलता आंख से, लौह पुरुषों के संग।।

चुनावी दोहा न. 72 

यदि ना होती चार में, भाजप की वो हार।
चौदह में मिलती नहीं, ये मोदी सरकार।।


चुनावी दोहा न. 73 

गलत जगह पंगा लिया, अबकि केजरीवाल।
बिना वजह की बात पर, पहुंच गए ससुराल।।


चुनावी दोहा न. 74 

अब तो ड्रामा मत करो, हे ड्रामा अधिराज। 
गलती से कुछ सीख लो, करो सार्थक काज।।


चुनावी दोहा न. 75

जिसकी देश में कइ जगह, हुई जमानत जब्त। 
उसको डर क्यों ना लगे, कोर्ट में भरते वक़्त।।


चुनावी दोहा न. 76

यूपी में अखिलेश को, मिली करारी हार। 
बिजली काट के ले रहे, हैं बदला सरकार।।


चुनावी दोहा न. 77

मोदी जी का पाक में, न्योता हुआ क़ुबूल।
इधर-उधर कुछ दे रहे, बिना वजह की तूल।।

कर्म फल

बहुत खुश हो रहा वो, यूरिया वाला दूध तैयार कर कम लागत से बना माल बेचेगा ऊंचे दाम में जेब भर बहुत संतुष्ट है वो, कि उसके बच्चों को यह नहीं पीन...