
गृह मंत्री एक और भाषण के साथ तैयार हैं. ममता और बुद्धदेव को राजनैतिक रोटी सकने का मौका मिल गया है. बयान बाजी शुरू हो गयी है. और ये बयानबाजी केवल बयानबाजी ही रहेगी. नक्सलियों के गिरेबान पर हाथ डालने की हिम्मत सरकार में नहीं. अपने ७८ जवान मरवाकर जिस सरकार के माथे पे शिकन नहीं आई वह सरकार इस हादसे पे कैसे कोई कदम उठा सकती है.
वैसे भी अरुंधती रॉय जैसे तथाकथित बुद्धिजीवी लोग तो पहले से ही नक्सलियों की हिम्मत बंधाने में अगुआ हैं. तमाम संस्थानों में ऊंचे ऊंचे पदों पर आसीन कितने ही पत्रकार अपनी सैलरी में से नक्सलियों के वास्ते लेवी कटवाते ही हैं. जब तक ऐसे हिम्मत बंधाने वाले लोग बैठे हैं तब तक नक्सलियों की हिम्मत तोडना बे सर पैर की बात है.
हैरत तो इस बात पे होती है जो सरकार देश के अंदरूनी खतरों का मुकाबला नहीं कर सकती वो बाहरी देश के हमलों को कैसे झेल पायेगी. बार बार बयान देकर सरकारी तंत्र शांति प्रियता की आड़ में अपनी कायरता का परिचय दे रहा है. बार बार गाल पर तमाचा मारा जा रहा है और हमको शांति सूझ रही है. इन ताज़ा हादसों के बाद देश के एक एक नागरिक को ये भरोसा हो चला है कि हम अगर जिंदा हैं तो ये आतताइयों की दरियादिली है. क्योंकि वो जब चाहे जहाँ चाहे हमारा खून बहा सकते हैं. सरकार हमसे टैक्स वसूलने में तो खूब चौकस है लेकिन हमें सुरक्षा प्रदान करने में उसकी पतलून गीली है.
जब तक गोली का जवाब गोली से नहीं दिया जायेगा तब तक ये हमले जारी रहेंगे. क्योंकि वो जानते हैं की भारत में रीढ़ विहीन सरकारों का राज है. कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. उनका ये विश्वास दिन बा दिन मजबूत हो रहा है. सरकार इन आतंकियों के हमलों को कायराना कदम कहती है, लेकिन अपने गिरेबान में झांक के देखे कायर ये हमलावर हैं या खुद सरकार में बैठे लोग कायरता की मूर्ती हैं. कायराना हरकत नक्सली और आतंकी नहीं बल्कि भारत सरकार कर रही है.