मंगलवार, 8 जुलाई 2008
कौसानी यात्रा
एका- एक जिंदगी इतनी व्यस्त हो जायेगी सोचा न था। पत्रकारिता से जुड़ने के बाद छोटी छोटी चीज़ों की कमी महसूस हो रही है। इधर कई दिनों से कहीं बहार जाने का मन हो रहा था, किसी ऐसी जगह जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हो। सो कौसानी जाने का मन बनाया। इस जगह के बारे में काफी सुना था। महात्मा गाँधी ने कौसानी को भारत का स्विट्जरलैंड कहा था। जेब में पैसे भरे और बैग में सामान और अकेले ही कूच कर दिया मंजिल की ओर। पहले मेरठ से हल्द्वानी, हल्द्वानी से अल्मोड़ा और अल्मोड़ा से कौसानी। तीन चरण में यात्रा पूरी की। हल्द्वानी से पहाड़ के सर्पीले रास्तों पर भीमताल होते हुए अल्मोड़ा तक का सफर लाज़वाब था। कॉलेज में मनाली के टूर पर जाने के बाद से किसी हिल स्टेशन की यह मेरी पहली यात्रा थी।
महात्मा गाँधी ने कौसानी में अनासक्ति आश्रम की स्थापना की थी, जो आज भी शान से खड़ा है। मेरा मुख्य उद्देश्य इस आश्रम को देखना ही था। इसके अलावा कविवर सुमित्रा नंदन पन्त जी का पुश्तैनी घर भी कौसानी में है। उसके भी दर्शन किए। गाँधी जी का कुछ साहित्य ख़रीदा। आश्रम में होने वाली प्रार्थना में भाग लिया। दो दिन के रेस्ट ने काफी राहत दी।
आश्रम में मिश्रा जी बातचीत हुई। बोले आपका पेशा तो बहुत अच्छा है। पत्रकारिता से समाज का काफी भला हो सकता है। मैंने कहा बस रहने दीजिये अन्दर की असलियत तो हम ही जानते हैं। बोले बुराई तो हर जगह है। बस लगे रहिये, अपना काम इमानदारी से करते रहिये। बाकी के बारे में सोचना छोडिये... ... कहीं न कहीं मिश्रा जी ठीक कह रहे थे।
अच्छा भारत के बारे में कहा जाता है की यहाँ बहुत ईमानदारी थी। लेकिन अब वो देखने को नहीं मिलती। इसको लेकर पुराने लोग दुखी भी होते हैं। लेकिन ईमानदारी का एक नमूना मुझे कौसानी में देखने को मिला। एक गली में होकर गुजरा तो देखा की एक सुनार की दुकान खुली पड़ी थी और दुकानदार गायब था। ऐसा नहीं की दुकान में सोना नहीं था, दुकान भरी पूरी थी। लेकिन फिर भी उसका मालिक दुकान को खुला छोड़ कर चला गया। ये केवल पहाड़ की ईमानदारी को दर्शाता था। मैंने कई मौकों पर अनुभव किया है की पहाड़ में इमानदारी आज भी जीवित है.
बहरहाल यात्रा शानदार रही.... दो दिन बाद फिर खबरों की दुनिया में था....
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