मंगलवार, 24 मार्च 2009

पानी रे पानी


रामायण में जिक्र आता है की वनवास को गए भगवान राम ने वाल्मीकि जी से पूछा की ऋषिवर अब मुझे रहने के लिए कौनसी जगह चुननी चाहिए। ऋषि वाल्मीकि हँसे और उन्होंने राम से पूछा की ये बताओ की कौनसी ऐसी जगह है जहाँ तुम नहीं हो। लेकिन बाद में उन्होंने राम को कुछ स्थानों के बारे में विस्तार से बताया की कहाँ रहना चाहिए और कहाँ नहीं।

इसी तरह की चर्चा कुछ दिन पहले किसी के साथ चल रही थी। मेरे मुंह से अचानक निकला की जिन शहरों में पानी बिकता हो, वहां रहना बेकार है। जहाँ का प्रशासन आम लोगों के लिए पीने के पानी का प्रबंध न कर पाये। जहाँ दिलों में इतनी गुंजाईश न बची हो की हम किसी को पानी पिला सकें। जहाँ के सामाजिक संगठन भी इस दिशा में विफल हों, वहन रहकर आप पैसे शायद कम लें, पर खुश नहीं रह पाएंगे। दिल्ली, नॉएडा, गाजियाबाद, गुडगाँव ऐसे ही कुछ शहर हैं जहाँ आपको आठ आने का पानी खरीद कर पीना पड़ता है। वो भी एक गिलास नहीं दो गिलास क्योंकि अट्ठन्नी अब चलती नहीं। बोतल बंद पानी तो पूरे देश में बिकता ही है। वो तो एक एलीट क्लास का पानी है, बात आम लोगों की हो रही है। शुक्र है की अभी मेरठ की सड़कों पर ये नज़ारा नहीं देखने को मिलता। यहाँ के लोग कहते हैं की यहाँ बड़ा मुश्किल है की कभी पानी बिके। मैं भी जब सामाजिक संस्थाओं के लोगों से मिलता हूँ तो ये जरूर कह देता हूँ की भाई अपने शहर में कभी ये नौबत मत आने देना.

2 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा बिन पानी सब सुन , पर पानी भी पैसे से बिकने लगा है और शायद अच्छा है कम से कम आप प्यासे तो नहीं रह जावोगे.

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  2. किसी काल में भी पानी के बिना लोगों का बसना मुश्किल था ... आज तो पानी की सीमित आवश्‍यकता होती है लोगों को ... पर पहले तो मवेशियों , खेती सबकुछ के लिए पानी सर्वाधिक आवश्‍यक था।

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