सोमवार, 26 जुलाई 2010

आम के बदले हर्ले-डेविडसन

इंडो-यूएस न्यूक्लियर डील का एक अनोखा पक्ष और पता चला. इस डील के साथ-साथ "मैंगो डिप्लोमेसी" भी खेली गयी थी. भला वो क्या, वो ये कि चचा बुश ने दद्दू मनमोहन से बोला कि भई तुम्हारे देश के आम बहुत मीठे हैं, बड़े लज़ीज़ हैं. दद्दू बोले तो लेते जाओ कुछ पेटियां बंधवा देता हूँ आपके लिए. इस पर चचा बुश बोले कि हम तो इन आमों का लुत्फ़ आपकी कृपा से उठा ही लेंगे लेकिन मेरे अमेरिका के लोग  इस से वंचित ही रहेंगे. तो दद्दू बोले इसमें मैं क्या कर सकता हूँ हमारे आमों के लिए अपने देश का बाज़ार अपने ही बंद कर रखा है. आप उस बाज़ार को खोल दो आपके लोग भी हमारे आमों का मज़ा ले सकेंगे. चचा बुश बोले कि चलो मैं बाज़ार खोल देता हूँ लेकिन बदले में आप क्या करोगे. दद्दू की कुछ समझ नहीं आया, बोले भई आम आपको चाहिए तो बदले में मैं क्या करूँ. चचा बुश बड़े तिकड़मी ठहरे बोले लेन-देन तो बराबरी का अच्छा लगता है. आप ऐसा करो कि हम आपके आम ले लेते हैं आप हमारी मोटर-साइकिल ले लो. दद्दू फिर चक्कर खा गए, बोले ज़रा साफ साफ़ समझाओ बुश बाबू. इस पर चचा बुश ने साफ़ साफ़ करके समझाया कि भई हम देख रहे हैं कि भारत के लोग बड़ी घिसीपिटी मोटर-साइकिलों का इस्तेमाल कर रहे हैं. ज्यादातर जापान से प्रेरित हैं. हम चाहते हैं कि भारत की सड़कों पर हर्ले- डेविडसन दनदनाए. आप अपना बाज़ार हमारी इस आधुनिक बाइक के लिए खोल दीजिये.

इस पर दद्दू मनमोहन कुछ सोच में पड़ गए. उनको लगा कि बुश बाबू चालाकी कर रहे हैं. अपने बाज़ार में हमारे सस्ते  से आमों के लिए जगह देकर हमारे बाज़ार में लाखों कि बाइक के लिए जगह तलाश कर रहे हैं. दद्दू के दिमाग में सारी बातें एक साथ घूम गयीं. आखिर हमारे आम अमेरिका के पर्यारण को कोई नुकसान तो नहीं पहुचाएंगे, लेकिन इनकी बाइक हमारी सड़कों पर जहर उगलेगी. हमारे आमों के बदली अमरीकियों को महज चाँद सिक्के ही खर्च करने होंगे लेकिन इनकी बाइक के लिए हमारे देश के लोग अपनी गाढ़ी कमाई बहा देंगे. देश का यूथ तो वैसे ही इस बाइक का दीवाना है, इसके लिए बाज़ार खुलते ही देश के माँ-बाप आफत में आ जायेंगे. फिर इस देश की सडकें भी तो उस मोटर-साइकिल के लायक नहीं हैं. हमारे वातावरण में वो मोटर-साइकिल बिलकुल फिट नहीं बैठती. कहीं इसका हश्र भी बीएमडव्लू   की तरह तो न होगा. कहीं ये भी भारत की सड़कों पर खून तो न बहाएगी. दद्दू को साफ़ साफ़ समझ आ रहा था कि बुश चालाकी कर रहे हैं हमारे निरीह आमों को अमेरिका भेजकर हमारे किसान को उतना फायदा नहीं होगा जितना अमेरिका अपनी मोटर साइकिल से भारत में कमाएगा. दद्दू ने देखा कि मेज पर सामने परमाणु करार अभी बिना दस्तखत के ही पड़ा था.

इतने में चचा बुश ने मुस्कुराते हुए दद्दू के कंधे पर हाथ रखा अजी सोच क्या रहे हैं. अमेरिका में भारत के आम बिकें इस से बढ़िया आपके लिए क्या होगा. आखिर हमारी इतनी महँगी मोटर साइकिल आपके यहाँ के कितने लोग खरीद सकते हैं. जबकि अमेरिका के लोग आपका हजारों कुंतल आम हज़म कर सकते हैं. देखिये मैं तो आपके ही फेवर की बात कर रहा हूँ. हम तो ठहरे विकसित देश, हम पर इन सब छोटी मोटी चीज़ों का कुछ फर्क नहीं पड़ता. लेकिन आपके देश के लिए यही छोटी छोटी चीज़ें मायने रखती हैं. ज्यादा सोचिये मत ये परमाणु डील भी फ़ाइनल करनी है कि नहीं. बाहर मीडिया वाले इंतज़ार कर रहे हैं.

दद्दू मनमोहन सबकुछ समझ रहे थे. अमेरिका कि सफलता का राज़ यही है. जब वह दूसरों के हित की बात कर रहा होता है, तब भी वह वास्तव में अपने ही हित की बात कर रहा होता है. हमारे सीधे-साधे सस्ते आमों के बदले बुश बाबू अपनी खतरनाक महँगी बाइक भारत में उतार रहे हैं. लेकिन करते भी क्या दद्दू ने एक बार अपने चीफ सेक्रेटरी की तरफ देखा. उनकी आँखों ने भी मौन हामी भर दी. क्योंकि छोटी सी बात के पीछे परमाणु डील को कोई पलीता नहीं लगाना नहीं चाहता था. और दद्दू ने हाँ कर दी, भारत को आमों के बदले हर्ले-डेविडसन मिल गयी. 

1 टिप्पणी:

कर्म फल

बहुत खुश हो रहा वो, यूरिया वाला दूध तैयार कर कम लागत से बना माल बेचेगा ऊंचे दाम में जेब भर बहुत संतुष्ट है वो, कि उसके बच्चों को यह नहीं पीन...