आज बस स्टैंड से ऑफिस की तरफ बढा तो एनडीएमसी का एक चमकदार कूड़ा वाहन सायरन बजाता हुआ रोड पर घूम रहा था. सायरन की आवाज़ सुनकर लोग बाहर आ रहे थे और घर का कूड़ा उस गाड़ी के हवाले कर रहे थे. ये सीन देखकर मुंह से अनायास ही निकल पड़ा- वाह! वाट ए चेंज.
कॉमन वेल्थ खेलों के दिन नज़दीक आते जा रहे हैं. दिल्ली अपना चेहरा सुधारने में कोई कमी नहीं छोड़ रही है. कहीं विदेशी मेहमानों पर कोई बुरा असर ना पड़ जाये. पूरी तरह से फेशियल, ब्लीच कराकर दिल्ली का चेहरा चमकदार बना दिया गया है. जिन-जिन इलाकों में खेल होने हैं वहां से दरिद्रता तो कतई नहीं झलकनी चाहिए. करोड़ों इधर से उधर हो गए चेहरे को सुधारने में, लेकिन अभी भी दिल्ली सरकार के हाथ-पाँव फूले हुए हैं. फूलें भी क्यों ना करोड़ों खर्च करके जो छदम आवरण दिल्ली को उढ़ाया गया है अगर वो ऐन मौके पे गिर पड़ा तो सारी पोल खुल जाएगी.
लोहे-लंगड़ के बने बस स्टैंड आज स्टेनलेस स्टील में ऐसे चमक रहे हैं कि आप अपना चेहरा देख लो. पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर बनाने की दिशा में तो अभूतपूर्व प्रयास किये गए हैं. सड़कों की हालत भी बेहतर हुयी है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये इन्तेज़ामात इसी तरह चलते रहेंगे या फिर खेल ख़तम होने के बाद दिल्ली उसी ढर्रे पे आ जाएगी. मोटे तौर पर देखने में तो ये इन्तेज़ामात फौरी ही लगते हैं. गैर मुमकिन है कि आगे भी दिल्ली का सौंदर्य बरक़रार रहे. रही बार विदेशी खिलाडियों के सामने खूबसूरत चेहरा पेश करने की, तो ऐसा तो है नहीं कि खिलाडी भारत आयें और केवल दिल्ली तक ही सिमट कर रह जाएँ. वो भारत को नज़दीक से देखने के लिए दिल्ली से बाहर भी जरूर जायेंगे. और एक बार उन्होंने बाहर कदम रखा नहीं कि हकीकत चिल्ला चिल्ला के खुद अपनी दास्ताँ बयान करेगी.
दरअसल जब जरुरत जड़ों को पानी देने की है तो केवल पत्तियों को धोकर काम चलाने की कोशिश की जा रही है. ऐसे काम चलने वाला नहीं है, ऐसे तो स्थितियां सुधारने के बजाये और बिगड़ेंगी.
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