बच्चों के पास खुश होने के कितने सारे कारण होते हैं। बारिश को देखकर खुश, बर्फ को देखकर खुश, नई पेंसिल पाकर खुश, हवा में उड़ता पंख देखकर खुश, ट्रेन की खिड़की से झांककर खुश, पापा से मिली अठन्नी पाकर खुश, छोटी सी कहानी सुनकर खुश, चवन्नी की टाॅफी पाकर खुश, मम्मी के आंचल में छिपकर खुश, बिल्ली को भगाकर खुश, तितली को पकड़कर खुश, काॅक्रोच को छूकर खुश, भूत की कहानी से डरकर भी खुश और आपस में झगड़कर भी खुश, गाड़ी की सवारी करके खुश, चाचा की पीठ पर लटककर भी खुश। कितनी स्वाभाविक होती है उनकी ख़ुशी. रोम रोम से ख़ुशी झलक रही होती है. एक बार सोचने लगा कि भगवान ने बच्चों को खुश होने के कितने सारे कारण दिए हैं, और बड़ों के पास खुशी के कितने कम कारण होते हैं। फिर अगले पल सोचा कि जिन चीजों पर बच्चे खुश होते हैं, उन पर कभी बड़े लोग भी खुश हुआ करते थे। लेकिन अब वे बड़े हो गए हैं, उनको बच्चों की तरह खिलखिलाना शोभा नहीं देता। हर समय मुंह चढ़ाकर रखने की उनकी आदत होती है। वे बड़े हो गए हैं इसलिए वे छोटी-मोटी चीजों पर खुशी का इजहार नहीं करते। वे बड़े हैं तो उनको खुशी भी बड़ी चाहिए। आमतौर पर बड़े लोग जिन चीजों पर खुश होते हैं वे हैं पैसा, पद, शौहरत, सम्मान, अच्छा भोजन, आराम, सुरा और सुंदरी। इसके अलावा और किसी चीज पर बड़े लोगों को अंदरूनी खुशी नहीं मिलती। बाकी एक-दूसरे को देखकर मिलते मुस्कुराते बड़े लोग वास्तव में सिर्फ बनावटी खुशी का इजहार कर रहे होते हैं। जबकि बच्चे दिल खोलकर हंसते हैं और खुशी का इजहार करते हैं। वैसे हम बड़े लोग बच्चों से इतने चिड़ते हैं कि उनकी ख़ुशी छीनने में भी कोई कसार नहीं छोड़ी है. कहीं हमने उनपर अपने सपनों को लाड दिया हैं तो कहीं उनको पैसे कि दौड़ में शामिल कर दिया है. लेकिन वे फिर भी खुश रहते हैं. बच्चों और बड़ों की खुशियों में इतना अंतर क्यों है? क्या इसलिए कि वे ज्यादा पढ़े-लिखे हैं और उनको जिंदगी का ज्यादा तजुर्बा है। या इसलिए कि बनावटी हंसी हंसना आज के समय की जरूरत है। या फिर इसलिए कि सच्ची खुशी केवल बच्चों के लिए होती है। पता नहीं क्यों बड़े लोगों का दिमाग इतना क्यों चलता है कि वो हर चीज को तर्क की धार पर कसने लगते हैं।
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