बुधवार, 14 मई 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं!

जब मैंने सितंबर 2013 में भाजपा को 210 से 249 सीटें मिलने का दावा किया था तो आॅफिस में अधिकांश लोगों ने हंसी में उड़ा दिया था। लेकिन आज अधिकांश एग्जिट पोल यही बता रहे हैं कि भाजपा अकेले अपने दम पर 250 तक जा सकती है। वैसे मोदी के आने की आहट मात्र से ही तमाम लोगों के सुर बदले-बदले लग रहे हैं। कल तक जो खबरिया चैनल मोदी के विरोध में एक सेट एजेंडे के तहत लंबे-लंबे कार्यक्रम प्रसारित करते थे, आज उनके गुण गाते नहीं थक रहे। खैर, कांग्रेस के खिलाफ लंबे समय से पनप रहा लोगों का जबरदस्त गुस्सा 16 मई के परिणामों के तौर पर सामने आएगा। परिणाम थोड़े इधर-उधर हो सकते हैं, पर भाजपा की सरकार बननी तय लग रही है। पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस कहीं भी मुकाबले में नजर नहीं आई। मोदी ने तकरीबन हर मोर्चे पर अपने विरोधियों से बाजी मारी। मोदी ने प्रचार के दौरान जन-जन को छुआ हर पहलू हो छुआ। हर चीज के पीछे जबरदस्त होमवर्क दिखा। भाषण, चाय पे चर्चा, थ्री डी हाॅलोग्राम, विशाल रैलियां, डेªसिंग सेंस, विस्फोटों के बीच हौसला, गर्म पानी पी-पी कांग्रेस को कोसना, वराणसी का चुनाव, ये सब लोगों को खूब भाया। एक सीनियर सिटीजन नरेंद्र मोदी ने तीन लाख किलोमीटर की यात्रा करके देश भर में 440 रैलियों को संबोधित किया। एक-एक दिन में छह-छह रैलियों को संबोधित किया, इतनी ऊर्जा अच्छे-अच्छे नौजवानों में भी देखने को नहीं मिलती।

सही समय पर सही चुनाव

सही समय पर भाजपा द्वारा मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना पार्टी के लिए सबसे फायदेमंद सिद्ध हुआ। यदि ये निर्णय सही वक्त पर न लिया गया होता तो शायद तस्वीर कुछ दूसरी होती। इसके अलावा मोदी द्वारा उत्तर प्रदेश में अमित शाह को प्रभारी बनाकर भेजना सटीक फैसला रहा। अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में तकरीबन मृत पड़े कैडर में नई जान फूंकने का काम किया। वरना सपा और बसपा के क्षेत्रीय मकड़जाल में फंसी भाजपा के फिर से खड़े होने के आसार कम थे। इसके अलावा मोदी के लिए वाराणसी सीट का चुनाव भी एक सोचा-समझा फैसला रहा। मोदी का उत्तर प्रदेश आ जाने से कार्यकर्ताओं का मनोबल सातवें आसमान पर पहुंच गया। जिसका असर परिणामों में साफ नजर आएगा।

डबल बेस का तवा

बाजार में जब आप बर्तन लेने जाते हैं तो दुकानदार अक्सर बर्तन दिखाते हुए बताता है कि साहब ये डबल बेस का तवा है, या कढ़ाई है या भगौना है। इसी तरह भाजपा भी एक डबल बेस की पार्टी है। एक इसका अपना बेस है और दूसरा संघ का। वैसे तो संघ के कार्यकर्ता हर चुनाव में भाजपा के समर्थन में अपना योगदान देते हैं, लेकिन इस चुनाव में जीत दर्ज कराने के लिए संघ ने अपनी जबरदस्त रणनीति और संगठनात्मक ताकत लगाई। अर्थ ये हुआ कि अगर दोनों संगठनों के कार्यकर्ता पूरी ताकत के साथ जुटे हैं तक इस मुकाम तक पहुंच पाए हैं कि जीत निश्चित लग रही है। भविष्य के चुनावों के लिए इस केमिस्ट्री को और ज्यादा शक्तिशाली बनाया जा सकता है। लेकिन वाजपेयी सरकार के दौरान दोनों संगठनों के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रह पाए थे, इस बार क्या होगा ये वक्त बताएगा।

मोदी के समक्ष चुनौतियां

खराब अर्थव्यवस्थाः भारत के खराब आर्थिक हालातों को सुधारना मोदी सरकार के लिए सबसे पहली चुनौती होगा। आर्थिक सशक्तिकरण की अपेक्षा कुछ इस तरह की जाएगी कि उससे महंगाई की मार पहले से झेल रही जनता पर कोई असर न पड़े। हालांकि शेयर बाजार ने तो मोदी को आने से पहले ही सलामी देनी शुरू कर दी है।

भ्रष्टाचारः अब जब इस बार के चुनाव में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा रहा और देश में भी भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त हवा बह रही है, ऐसे में मोदी के लिए अपनी सरकार में भ्रष्टाचार को रोकना और एक साफ-सुथरी विकासशील शासन प्रदान करना बड़ी चुनौती होगी। साथ ही पुराने भ्रष्टाचार के मामलों का भी शीघ्र निपटान किया जाए। ध्यान रहे कि जिस आम आदमी पार्टी के लिए भ्रष्टाचार सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, वह भी गाहे-बगाहे सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

विशाल जनअपेक्षाएंः मोदी को जिस तरह की मीडिया कवरेज मिली, उन्होंने जिस तरह का विकास माॅडल लोगों के बीच रखा और अब चैनल जिस तरह से उनको करिश्माई पुरुष की तरह पेश कर रहे हैं, इससे देश में विशाल जन अपेक्षाएं बन गई हैं। इन जन अपेक्षाओं पर खरा उतरना मोदी के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगा। वाजपेयी सरकार ने भी अपने सात साल के शासन में विकास के कई कीर्तिमान स्थापित किए थे, वाजपेयी ने ही देश को विश्वास दिलाया था कि 2020 तक भारत एक विकसित राष्ट्र होगा, लेकिन फिर भी 2004 में वाजपेयी सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा।

भाजपा का कांग्रेसीकरणः भाजपा पर हमेशा ये आरोप लगते रहे हैं कि जब भी भाजपा सत्ता में आती है उसके कामकाज का ढर्रा कांग्रेस के जैसा ही हो जाता है। भाजपा की सरकार नई बोतल में पुरानी शराब सरीखी दिखती है। इसलिए मोदी को कुछ ऐसा करना होगा जिसका असर आम लोगों को जीवन में स्पष्ट नजर आए।

शाही या सादगी भरी सरकारः नए प्रधानमंत्री को ये भी देखना होगा कि सरकार की कार्यशैली में अहंकार और शाही तामझाम कम नजर आए। सरकारी खर्च को कम करके आम लोगों से सीधे जुड़ने का प्रयास किया जाए। भाजपा इससे पहले प्रमोद महाजन के समय में फाइव स्टार कल्चर आजमा कर देख चुकी है, जिसे आम लोगों के बीच बिल्कुल पसंद नहीं किया गया था। आम आदमी पार्टी की कम समय में बड़ी सफलता प्राप्त करने के पीछे यही कारण है कि उसने सादगी अपनाकर सीधी लोगों से जुड़ाव बनाया। संघ भी राजनीति में सादगी का प्रबल समर्थक है।

भाजपा-संघ संबंधः मोदी के लिए भाजपा और संघ के बीच मधुर संबंध बनाए रखना भी एक चुनौती होगा। वैसे प्रधानमंत्री पद के लिए खुद संघ ने ही मोदी को पसंद किया है, लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद इस पसंद को कायम रखना मोदी के हाथ में है। राष्ट्र निर्माण के लिए संघ का अपना एक नजरिया है, लेकिन केंद्र सरकार में बैठी भाजपा की अपनी मजबूरियां। अब देश की भावी सरकार संघ के साथ किस तरह तालमेल बैठाएगी ये देखने वाली बात होगी।

बाबा रामदेवः बाबा रामदेव ने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए न केवल खुलकर समर्थन किया बल्कि अपने भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ताओं की ताकत को भी भाजपा के पीछे खड़ा कर दिया। खुद बाबा ने पूरे देश में घूमकर कांग्रेस के खिलाफ प्रचार किया। रामलीला मैदान में हुए अपने अपमान के खिलाफ बाबा ने चाणक्य की तरह कांग्रेस को खत्म करने का बीड़ा उठाया है। लेकिन बाबा इस जीत में अपना श्रेय अवश्य लेना चाहेंगे। साथ ही सरकार बनने के बाद विदेश में जमा काले धन के मुद्दे पर बार-बार हस्तक्षेप करेंगे।

1 टिप्पणी:

कर्म फल

बहुत खुश हो रहा वो, यूरिया वाला दूध तैयार कर कम लागत से बना माल बेचेगा ऊंचे दाम में जेब भर बहुत संतुष्ट है वो, कि उसके बच्चों को यह नहीं पीन...