मंगलवार, 1 जुलाई 2014

शादी से पहले और चुनाव के बाद!


शादी से पहले
बाॅलीवुड की फिल्मों से प्रेरणा लेकर 16 से लेकर 25 साल की उम्र में परवान चढ़ते प्रेम प्रसंग में प्रेमी रूपी पुरुष की हालत बेहद दयनीय होती है। उसके मन-मस्तिष्क में अपनी प्रियसी को पाने की इतनी तीव्र उत्कंठा घर कर जाती है कि प्रेमिका उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य बन जाती है और वो मनसा, वाचा कर्मणा उसे प्राप्त करने की प्रतिज्ञा उठाकर सोता, जागता और विचरता नजर आता है। उसके हृदय की वीणा से निरंतर ऐसे स्वर फूटते हैं जो प्रतिपल उसकी प्रेमिका को आकर्षित कर उसे मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इस अवस्था में प्रीतम अपनी प्रियसी के लिए हर वो कर्म करने के लिए तत्पर रहता है, जिससे प्रेमिका प्रसन्न हो। वो प्रेमिका के साथ तमाम सपने देखता और दिखाता है। वादों का ऐसा पहाड़ खड़ा करता है कि प्रेमिका उसकी वादियों में खो जाती है। और एक दिन ऐसा आता है जब प्रेमी अपनी प्रेमिका का पूरा विश्वास जीत लेता है और प्रेमिका उसे वरने के लिए तैयार हो जाती है। खुशी-खुशी दोनों का विवाह संपन्न होता है। सालों से हिलोरे ले रहे प्रेमी के हृदय में हनीमून के ख्याल मात्र से हजारों मयूर नृत्य करने लगते हैं। किसी हसीन से पर्यटक स्थल पर आखिरकार प्रेमी उन पलों का अनुभव करता है जिसका उसे न जाने कब से इंतजार था। प्रेमिका अपने प्रेमी के समक्ष संपूर्ण समर्पण कर देती है। कुछ समय दोनों एक हसीन दुनिया का अनुभव करते हैं। फिर शनैः शनैः समय बीतता है और प्रेमी का प्रेमिका के प्रति आकर्षण कम होने लगता है। प्रेमी के अंदर आ रहे बदलाव प्रेमिका को विचलित करते हैं। वो रह-रह कर प्रेमी को पुरानी बातें पुराने वादे याद दिलाती है, लेकिन प्रेमी हर बार हंस कर टाल देता है। और थोड़े समय में ही वो वक्त आ जाता है जब प्रेमिका को अपने पति से कहना पड़ता है- ‘‘सारे मर्द एक जैसे होते हैं’’!

चुनाव के बाद
देश के महापुरुषों से प्रेरणा लेकर परिपक्व उम्र में परवान चढ़ती राजनीतिक लालसा में सज्जन रूपी नेता की हालत बेहद दयनीय होती है। उसके मन-मस्तिष्क में सत्ता को पाने की इतनी तीव्र उत्कंठा घर कर जाती है कि जनता की वोट उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य बन जाती है और वो मनसा, वाचा कर्मणा सत्ता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा उठाकर सोता, जागता और विचरता नजर आता है। उसके हृदय की वीणा से निरंतर ऐसे स्वर फूटते हैं जो प्रतिपल आम जनता को आकर्षित कर उसे मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इस अवस्था में नेता अपनी प्रिय जनता के लिए हर वो कर्म करने के लिए तत्पर रहता है, जिससे जनता प्रसन्न हो। वो जनता के साथ तमाम सपने देखता और दिखाता है। वादों का ऐसा पहाड़ खड़ा करता है कि जनता उसकी वादियों में खो जाती है। और एक दिन ऐसा आता है जब नेता अपनी प्रिय जनता का पूरा विश्वास जीत लेता है और जनता उसे वोट देने के लिए तैयार हो जाती है। पूरे जोश के साथ चुनाव संपन्न होता है। सालों से हिलोरे ले रहे नेता के हृदय में सत्ता के ख्याल आते ही हजारों मयूर नृत्य करने लगते हैं। एक खूबसूरत कार्यक्रम में शपथ ग्रहण करके आखिरकार नेता उन पलों का अनुभव करता है जिसका उसे न जाने कब से इंतजार था। जनता खुद को अपने नेता के समक्ष समर्पण कर चुकी होती है। कुछ समय नेता और जनता परिवर्तन का सुखद अनुभव करते हैं। फिर शनैः शनैः समय बीतता है और नेता का जनता के प्रति आकर्षण कम होने लगता है। नेता के अंदर आ रहे बदलाव जनता को विचलित करते हैं। वो रह-रह कर नेता को पुरानी बातें पुराने वादे याद दिलाती है, लेकिन नेता हर बार हंस कर टाल देता है। और थोड़े समय में ही वो वक्त आ जाता है जब जनता को अपने नेता से कहना पड़ता है- ‘‘सारे नेता एक जैसे होते हैं’’!

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