
देश के महापुरुषों से प्रेरणा लेकर परिपक्व उम्र में परवान चढ़ती राजनीतिक लालसा में सज्जन रूपी नेता की हालत बेहद दयनीय होती है। उसके मन-मस्तिष्क में सत्ता को पाने की इतनी तीव्र उत्कंठा घर कर जाती है कि जनता की वोट उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य बन जाती है और वो मनसा, वाचा कर्मणा सत्ता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा उठाकर सोता, जागता और विचरता नजर आता है। उसके हृदय की वीणा से निरंतर ऐसे स्वर फूटते हैं जो प्रतिपल आम जनता को आकर्षित कर उसे मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इस अवस्था में नेता अपनी प्रिय जनता के लिए हर वो कर्म करने के लिए तत्पर रहता है, जिससे जनता प्रसन्न हो। वो जनता के साथ तमाम सपने देखता और दिखाता है। वादों का ऐसा पहाड़ खड़ा करता है कि जनता उसकी वादियों में खो जाती है। और एक दिन ऐसा आता है जब नेता अपनी प्रिय जनता का पूरा विश्वास जीत लेता है और जनता उसे वोट देने के लिए तैयार हो जाती है। पूरे जोश के साथ चुनाव संपन्न होता है। सालों से हिलोरे ले रहे नेता के हृदय में सत्ता के ख्याल आते ही हजारों मयूर नृत्य करने लगते हैं। एक खूबसूरत कार्यक्रम में शपथ ग्रहण करके आखिरकार नेता उन पलों का अनुभव करता है जिसका उसे न जाने कब से इंतजार था। जनता खुद को अपने नेता के समक्ष समर्पण कर चुकी होती है। कुछ समय नेता और जनता परिवर्तन का सुखद अनुभव करते हैं। फिर शनैः शनैः समय बीतता है और नेता का जनता के प्रति आकर्षण कम होने लगता है। नेता के अंदर आ रहे बदलाव जनता को विचलित करते हैं। वो रह-रह कर नेता को पुरानी बातें पुराने वादे याद दिलाती है, लेकिन नेता हर बार हंस कर टाल देता है। और थोड़े समय में ही वो वक्त आ जाता है जब जनता को अपने नेता से कहना पड़ता है- ‘‘सारे नेता एक जैसे होते हैं’’!
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