छोटी सी जिंदगी में हम बार-बार आउट-डेटेड हो रहे हैं। कभी मोबाइल के बहाने, कभी टीवी के बहाने, कभी कपड़ों के बहाने, कभी खानपान के बहाने तो कभी अपनी सोच के बहाने। पिछली पीढ़ी को ये सुविधा उपलब्ध नहीं थी, जब उनको आउट-डेटेड कहा जाता था तब तक वे 60 के पार पहुंच जाते थे, पर अब आप टीन एज में भी आउटडेटेड कहलाए जा सकते हैं। हालत ये है कि आप आउट-डेटेड होने से बच नहीं सकते क्योंकि बाजार और टेक्नोलाॅजी आप से दस कदम आगे चल रहा है। बाजार के साथ कदमताल करने के लिए आपकी जेब में दम होना चाहिए। जेब में दम नहीं तो आप बाजार से पीछे तो रहेंगे, लेकिन खुद को सही साबित करने के लिए थोड़ा ज्ञान भी बांचेंगे और आपका ये ज्ञान फिर आपकी आउट-डेटेड सोच का परिचायक बन जाएगा।

तो जी, फिर से बताएं कि खुद को आउट-डेटेड होने से बचाने के लिए आपके बटुए में दम होना जरूरी है। खानपान से लेकर बोलचाल तक, शाॅपिंग से लेकर बैंकिंग तक, मोबाइल से लेकर टीवी, फिल्मों से लेकर सीरियल्स, नेता से लेकर अभिनेता, लाइफस्टाइल से लेकर लविंगस्टाइल तक सब बहुत तेजी से बदल रहे हैं। इस तीव्र गति बदलाव के साथ कदमताल करना एक काॅमन मैन के बस की बात नहीं, इसके लिए सुपर मैन होना जरूरी है। दूसरा फाॅर्मूला ये है कि ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना’ वाले सिद्धांत को आत्मसात करते हुए आप अपनी गति से चलते जाएं और लोगों को अपनी जुबानी खुजली मिटाने का मौका देते रहे।

हमारे ऋषि-मुनि तो बहुत पहले ही कह गए हैं कि बाबू ये संसार सब माया है ज्यादा चक्कर में मत पड़ना अगर संसार के ज्यादा चक्कर में पड़ोगे तो इह लोक तो खराब होगा ही परलोक भी बिगड़ जाएगा, इसलिए जिंदगी की डेट्स का ध्यान रखना और जितना वक्त इस दुनिया में आए हो प्रभु का भजन करते हुए सत्कर्मों में लगा देना। लेकिन हमारी सरकार और बाजारू ताकतें यही चाहती हैं कि आप खुद को बाजार के हिसाब से अपडेटेड रखें, इसी में देश और विश्व की अर्थव्यवस्था की भलाई है। यदि हर कोई अपनी जरूरतों को कम करके हरि भजन करने लग गया तो संसार की आर्थिक कश्ती डूब सकती है। बीच-बीच में कुछ धर्म धुरंधर बढ़ते उपभोक्तावाद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद तो करते हैं, लेकिन ध्यान से देखने पर धर्म भी खुद बाजार की गिरफ्त में खड़ा मिलता है।
सो, अंत में गौतम बुद्ध के मध्यम मार्ग का ही सहारा लेना पड़ता है, के भैया इतना भी मत जुटाओ की बाजार के हिसाब से चलकर ईएमआई भरते-भरते कमरिया टूट जाए और इतने भी सिद्धांतों पर अडिग मत रहो कि दीन-हीन की श्रेणी में आ जाओ।
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