ये जो देश का सिस्टम है न। बड़ा अजीब है। यहाँ जितने भी कायदे कानून हैं वो आम आदमी के लिए हैं। खास लोगों को कानूनों से ज्यादा सरोकार नहीं हैं। अभी पिछले दिनों मेरठ में बिजली की काफी किल्लत रही (वैसे आज भी है)। फिर क्या था पॉवर कॉर्पोरेशन पर तोहमत लगे जाने लगी। पॉवर कॉर्पोरेशन के एक उच्च अधिकारी ने अखबार में बयान दे दिया कि शहर में कोई हीटर नहीं जलाएगा। न ही दुकानों पर बेचा जाएगा। बात अजीब सी थी। सर्दियों के दिन थे। हीटर लोगों की जरूरत बन गए थे। मैंने मालूमात की, तो अधिकारी जी ने कहा किरूम हीतेर्स पर प्रतिबन्ध नहीं है, प्लेट वाले हीटर पर रोक लगे है।
मैं उनके ऑफिस से निकल ही रहा था कि ऑफिस के बाहर वाले रूम में ही पॉवर कॉर्पोरेशन के कर्मचारी हीटर पर चाय बना रहे थे। बड़ा अजीब लगा। जिस चीज़ के लिए आम लोगों पर रोक लगी है, ख़ुद पॉवर कॉर्पोरेशन के लोग उसे इस्तेमाल कर रहे हैं। थोडी और तफ्तीश करी तो पता चला कि पॉवर कॉर्पोरेशन के ज्यादातर कार्यालयों में हीटर इस्तेमाल हो रहे हैं। बहाई ये चीज़ तो बर्दाश्त से बाहर थी। मैंने सुनील जी को साथ लिया और पॉवर कॉर्पोरेशन के दो बड़े अधिकारियों के जलते हीटरों के फोटो कर लिए। फिर पंहुचा उन अधिकारी जी के पास जिन्होंने आदेश दिए थे। वो अब भी अपने बयान पर अडिग थे। फिर मैंने उनको, उनके ही ऑफिस में जल रहे हीटर के बारे में बताया। अब वो थोड़े सकपका गए। फिर बोले हाँ नैतिकता कि दृष्टि से देखा जाए तो ये ग़लत है। उन्होंने तुरंत अपना हीटर बंद कराया और अपनी गाड़ी में रखवा लिया। साथ हे आदेश जारी किए कि कॉर्पोरेशन के किसी भी ऑफिस में हीटर न जलाये जायें। बाद में मुझे पता चला कि इसमे गलती उनकी नहीं थी। उनके मातहत बिना पूछे हीटर जला रहे थे। खैर बड़ी बात ये थे उन्होंने बात को मान लिया और चीजों को समझा।
ख़बर तो मुझे लिखनी थी। मैंने लिख दी । लेकिन भाषा का बहुत संयम बरता। क्योकि अधिकारी जी ने बात मानी। लेकिन उनसे छोटे अधिकारी ख़बर से कुछ ज्यादा ही भड़क गए। जब मैं मिलने गया तो बोले हम आपको अब कोई ख़बर नही बताएँगे। ये कोई तरीका नहीं होता। मैं सब पत्रकारों को जनता हूँ। सबके बहुत काम कराये हैं। और चाय कोई मैं थोडी पीता हूँ। यहाँ आने वाले लोगों को चाय देनी पड़ती है। वैसे मैंने भी अपने यहाँ हीटर बंद करवा दिया है।
खैर उनकी नाराज़गी से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने अपना काम कर दिया था.
मैं उनके ऑफिस से निकल ही रहा था कि ऑफिस के बाहर वाले रूम में ही पॉवर कॉर्पोरेशन के कर्मचारी हीटर पर चाय बना रहे थे। बड़ा अजीब लगा। जिस चीज़ के लिए आम लोगों पर रोक लगी है, ख़ुद पॉवर कॉर्पोरेशन के लोग उसे इस्तेमाल कर रहे हैं। थोडी और तफ्तीश करी तो पता चला कि पॉवर कॉर्पोरेशन के ज्यादातर कार्यालयों में हीटर इस्तेमाल हो रहे हैं। बहाई ये चीज़ तो बर्दाश्त से बाहर थी। मैंने सुनील जी को साथ लिया और पॉवर कॉर्पोरेशन के दो बड़े अधिकारियों के जलते हीटरों के फोटो कर लिए। फिर पंहुचा उन अधिकारी जी के पास जिन्होंने आदेश दिए थे। वो अब भी अपने बयान पर अडिग थे। फिर मैंने उनको, उनके ही ऑफिस में जल रहे हीटर के बारे में बताया। अब वो थोड़े सकपका गए। फिर बोले हाँ नैतिकता कि दृष्टि से देखा जाए तो ये ग़लत है। उन्होंने तुरंत अपना हीटर बंद कराया और अपनी गाड़ी में रखवा लिया। साथ हे आदेश जारी किए कि कॉर्पोरेशन के किसी भी ऑफिस में हीटर न जलाये जायें। बाद में मुझे पता चला कि इसमे गलती उनकी नहीं थी। उनके मातहत बिना पूछे हीटर जला रहे थे। खैर बड़ी बात ये थे उन्होंने बात को मान लिया और चीजों को समझा।
ख़बर तो मुझे लिखनी थी। मैंने लिख दी । लेकिन भाषा का बहुत संयम बरता। क्योकि अधिकारी जी ने बात मानी। लेकिन उनसे छोटे अधिकारी ख़बर से कुछ ज्यादा ही भड़क गए। जब मैं मिलने गया तो बोले हम आपको अब कोई ख़बर नही बताएँगे। ये कोई तरीका नहीं होता। मैं सब पत्रकारों को जनता हूँ। सबके बहुत काम कराये हैं। और चाय कोई मैं थोडी पीता हूँ। यहाँ आने वाले लोगों को चाय देनी पड़ती है। वैसे मैंने भी अपने यहाँ हीटर बंद करवा दिया है।
खैर उनकी नाराज़गी से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने अपना काम कर दिया था.
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