बाबा रामदेव ने आख़िरकार राजनीती में दखल देने की घोषणा कर ही दी। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वह खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे, ये कदम केवल राजनीती की सफाई के लिए उठाया गया है।
बाबा का ये कदम भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा की तरफ इशारा करता है, जहाँ शासन के पीछे ऋषियों का मार्गदर्शन होता था। हालाँकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा को आगे करके ऐसा ही प्रयोग करने की कोशिश की थी। लेकिन भाजपा के हाथ में जैसे ही सत्ता आई वह न केवल संघ के सिद्धांतों को भूल गयी, बल्कि सत्ता लोलुपता की पराकाष्ठा को लाँघ गयी। पार्टी के इस रूप परिवर्तन से संघ का भाजपा से मोह भंग हो गया। संघ ने अपनी तरफ से भरसक प्रयास कर के देख लिए लेकिन पार्टी में पद का लोभ इस कदर बढ़ चूका है कि उसका उबर पाना मुश्किल लगता है।
अब ऐसा ही कुछ प्रयास बाबा रामदेव करने जा रहे हैं। अपने कार्यकर्ताओं को संसद तक पंहुचा कर वे इंडिया में भारत का निर्माण करने का सपना देख रहे हैं। बाबा का सपना तो अच्छा है, उनके पास दूरदर्शिता भी है, विकास के भारतीय मॉडल का ब्लूप्रिंट भी है, लेकिन देखने वाली बात ये है कि २०१४ में लोग उनके संगठन को कितना स्वीकारते हैं। और अगर स्वीकार भी लिया तो बाबा के कार्यकर्ता संसद पहुचकर कहीं भाजपा की तरह अपना रूप तो नहीं बदल लेंगे।
वैसे बाबा के मैदान में आने की खबर से बाकी पार्टियों का तो पता नहीं, सबसे ज्यादा भाजपा की ही हवा ख़राब है। क्योंकि बाबा ने मोटे तौर पर वही लाइन पकड़ी है, जिसको भाजपा ने सत्ता मिलने पड़ने पर भुला दिया था। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बाबा की पार्टी सबसे ज्यादा भाजपा को ही नुकसान पहुंचाने वाली है।
रामदेव जी का का यह कदम भारत के लिये शुभ होगा।
जवाब देंहटाएंjo bhi ho ek ummid ki kiran to dikhi hai ..
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