शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

आखिर कैसी आज़ादी चाहते हैं कश्मीरी?

कश्मीर जल रहा है. लोग मरने पर आमादा हैं. वो आजादी चाहते हैं. केंद्र सरकार हैरान है, राज्य सरकार हैरान है, लेकिन इस बार शायद हैरान हैं अलगाववादी संगठन भी. आखिर कश्मीरियों के दिलों में उनके द्वारा भरे गए जहर ने इतना हिंसक रूप अचानक कैसे ले लिया. जिस खोखली आज़ादी के झूठे सपने अलगाववादियों ने उनको दिखाए थे वो सपने एक न एक दिन फूटेंगे ये तो उनको पता था, लेकिन ये नहीं पता था कि ऐसे भयंकर रूप में सामने आएंगे कि नौजवान अपनी जान की परवाह किये बगैर "भारत" के खिलाफ आग उगलेंगे. सच्चाई ये भी है कि ऊपरी तौर पर अलगाववादी संगठन भले ही हैरानी जता रहे हों, मन ही मन वे खुश हैं और भयभीत भी. खुश इसलिए कि इस बार की हिंसा से राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही घुटनों पर आ गयी हैं. दोनों ही सरकारों की समझ नहीं आ रहा है कि इस बार की परिस्थिति से कैसे निबटा जाये. बयानबाजी के अलावा ज्यादा कुछ कर नहीं पा रही हैं. वैसे इससे ज्यादा भारतीय सरकारें कुछ कर भी नहीं पाती हैं. चाहे मामला नक्सलियों का हो या फिर कश्मीर का, हार्ड स्टैंड लेने में भारतीय सरकारें हमेशा से डरती रही हैं. यह रीढ़विहीन रवैया भारत के लिए सबसे नुकसानदायक साबित हुआ है.

कश्मीर में जो युवा आज जान देने पर आमादा हैं उन्होंने बचपन से लेकर जवानी तक का सफ़र हिंसा और केवल हिंसा के बीच बिताया है. उनके जेहन में बचपन से ही भरा जाता रहा कि कश्मीर भारत का गुलाम है. इसे आजाद कराना होगा. इन कोशिशों के विरुद्ध केंद्र और राज्य सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया. राज्य सरकार ने तो अन्दर खाने मदद ही की. फारूक अब्दुल्लाह तो स्वायत्ता की मांग हमेशा उठाते भी रहे. कश्मीरी जनता बुरी तरह कन्फ्यूज रही. चंद लोगों के प्रोपैगैंडा के चलते कश्मीरियों को पूरी तरह भ्रम हो गया कि आखिर उनका भला किसमें है. भारत के साथ रहने में, पाकिस्तान के साथ रहने में या फिर अलग देश के रूप में. इस बीच कश्मीरी पंडितों का सूपड़ा साफ़ करने का अभियान भी जारी रहा. दिन दहाड़े चुन चुन कर उनकी हत्याएं की गयीं. बस्तियों की बस्तियां साफ़ कर दी गयीं. बचेकुचे लोग जान बचाकर वहां से पलायन कर गए और अब भी देश की सरकारें चुप रहीं. पहले कश्मीरियों के जेहन में भरा गया कि पंडितों की वजह से वहां सारी प्रॉब्लम है. अब तो वहां पंडित भी नहीं, लेकिन अब वहां फ़ौज की वजह से प्रॉब्लम बताई जा रही है. थोड़े दिनों बाद वहां जम्मू और लद्दाख के लोगों की वजह से प्रॉब्लम होने लगेगी. पाकिस्तान की शह पर वहां घटिया खेल खेला जा रहा है. हूबहू पंजाब जैसा. 

आखिर जिस आज़ादी की बात वहां के लोग कर रहे हैं अगर वो आज़ादी उन्हें मिल भी गयी तो क्या कश्मीर की सूरत बदल जाएगी. जी नहीं. वो तथाकथित आज़ादी मिलने के बाद कश्मीर की हालत क्या होगी इस बात का अंदाज़ा शायद वहां किसी को नहीं है. बुनियादी सुविधाओं के लिए भी लोग तरस जायेंगे. जो पाकिस्तान उनका बड़ा हिमायती बन रहा है उसने यहाँ से गए मुसलमानों के साथ कैसा व्यव्हार किया ये सबके सामने है. आज भी उन लोगों को मुजाहिर कहकर बुलाया जाता है. पाक अधिकृत कश्मीर में वहां की अवाम को पाकिस्तान क्या मुहैया करा पा रहा है. कोई विकास कराने से तो गया वहां आतंकी कैंप चलवा रहा है. वहां के नौजवानों को रोजगार देने के बजाय उनको बरगलाकर आतंकी बना रहा है. क्या कश्मीरी लोग अपने बच्चों के लिए ऐसे ही भविष्य की खातिर आज़ादी की मांग कर रहे हैं. वास्तविकता ये है कि भारत से अलग होते ही कश्मीर भरभरा जायेगा. उसकी हालत बद से बदतर हो जाएगी. जो ऊँचाइयाँ कश्मीर आज भारत के साथ रहकर छू सकता है वो किसी और तरह से संभव नहीं है. बस जरूरत सोच को बदलने की है.

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