कॉमनवेल्थ खेलों के लिए जब सब गाने-वाने लिख रहे हैं तो मैंने भी सोचा एक गाना लिख दिया जाए. देश के इस महत्वपूर्ण पर्व में मेरा भी कुछ योगदान होना चाहिए. ऐसा मौका बार-बार थोड़े ही मिलता है. न न मुझे इस गाने के लिए कोई पैसा नहीं चाहिए. एकदम मुफ्त. पैसा तो खेल कमेटी के लिए ही कम पड़ रहा है, बेकार में क्यूँ उनकी वेल्थ में सेंध लगायी जाए. तो पेशे खिदमत है मेरा- "कॉमनवेल्थ सॉन्ग" :
१. सडकें बन गईं स्विमिंग पूल,
कॉमनवेल्थ की हिल गईं चूल,
कैसे खेल करें.
२. बारिश कर रही हाहाकार,
यमुना दे रही है ललकार,
पानी कहाँ रखें.
३. डेंगू फैल रहा विकराल,
कैसे मरेंगे मच्छर यार,
बताओ क्या करें.
४. आतंकी बैठे होशियार,
अयोध्या सुलगन को तैयार,
कैसे शांत करें.
५. उड़ गई कलमाड़ी की धूल
शीला फिर भी दिख रहीं कूल
चिंता कौन करे.
६. पूरी दिल्ली में है जाम,
छुट्टी कर दी सबकी आम,
कैसे जाम खुले.
७. आ रहे भर-भर के त्योहार,
रावण फुकेंगे अपरम्पार,
इज्जत राम रखें.
८. करोड़ों बहा दिए सरकार,
फिर भी लटका कारोबार,
ढीली चाल चलें.
९. प्लेयर बैठे हैं हैरान,
गीले पड़े सभी मैदान,
कैसे पदक मिले.
१०. गाना किये एक रहमान,
कर गए हैं सबको परेशान,
कैसे मूड बने.
११. सीखें सॉरी, थैंक-यू, प्लीज़,
सब अंग्रेजों वाली तमीज,
हिंदी दूर रखें.
१२. बिछा दें सब सड़कों पर फूल,
सब कुछ दिखना चहिये कूल,
सच को साफ़ ढकें.
wah wah! kya baat hai... :D "sab matlab ki baat baki sab bakwaas"
जवाब देंहटाएंआपके अंदर के कवि से आज साक्षात्कार हुआ। आपने कविता के माध्यम से कॉमनवेल्थ गेम्स का सही विश्लेषण किया है।
जवाब देंहटाएं@Deepti & Divyanshu: Bahut Bahut Dhanyawad
जवाब देंहटाएंjabar likha hai sir.......... ek dam jabar.
जवाब देंहटाएंbahut sunder racna hai
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