गुरुवार, 11 नवंबर 2010

ओबामा का जय हिंद

ओबामा आये और चले गए. अपने पीछे छोड़ गए हैं वादे, इरादे और यादें. वैसे तो उनकी यात्रा से जुड़ा हर पक्ष हर कोई जान चुका है. मीडिया ने ओबामा की यात्रा का ऐसा चित्रण किया कि हर कोई यही महसूस कर रहा था मानो ओबामा उसके बगल में है खड़े हैं. वैसे तो ओबामा ने पूरी यात्रा के दौरान एक गुड बॉय की तरह सब गुडी-गुडी बातें कीं, लेकिन मैं एक बात पर अटका. संसद के संयुक्त सदन को संबोधित करने के बाद ओबामा ने जब 'जय हिंद' कहा तो संसद का पूरा सदन तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा. वैसे ओबामा के पूरे भाषण के दौरान सांसदों ने ३२ बार तालियाँ बजायीं. जाहिर है तालियाँ उनकी ख़ुशी का इजहार करती हैं. कहा भी यही गया कि ओबामा ने भारतियों का दिल जीत लिया.


मैं पूरी चीज़ में केवल 'जय हिंद' पर फोकस करना चाहता हूँ. जय हिंद भारत के गौरव का प्रतीक है, इन दो शब्दों में हिंद की जय छिपी है. वही हिंद की जय जिसका सपना नेताजी सुभाष ने देखा और जो हर एक भारतीय चाहता है. भारत की आन, मान और शान से जुड़ा है 'जय हिंद'. ओबामा ने भी 'जय हिंद' बोलकर भारत का मान बढ़ा दिया. लेकिन अब ज़रा इसी चीज़ को घुमा कर देखिये. अगर कोई भारत का राष्ट्राध्यक्ष किसी दूसरे देश की यात्रा पर गया होता और उसने इस तरह की कोई बात कर दी होती तो इस भारत में बवाल मच गया होता. ज्यादा दूर जाने की जरुरत नहीं है अतीत में ऐसे कई उदाहरण मिल भी जायेंगे. बड़ी सहजता से ओबामा ने 'जय हिंद' बोला और उसके बाद भी सब कुछ सहज है, यहाँ भी और अमेरिका में भी. लेकिन भारतीय राजनीति अपने नेताओं को ये छूट नहीं देती. हमारा कोई नेता अगर इस तरह की सोच का प्रदर्शन करने की कोशिश करे तो उसका इस्तीफ़ा ही मांग लिया जाए. बीजेपी नेता एलके अडवाणी का पाकिस्तान में जिन्नाह पर दिया गया वक्तव्य और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का इंग्लैंड में अंग्रेजों द्वारा भारत में किये गए विकास की प्रशंसा वाले वक्तव्य पर कितना बवाल हुआ था ये सबको याद ही होगा. वो कुछ नहीं था केवल अपने मेजबानों का थोडा सम्मान मात्र था. लेकिन भारत में उस पर इतनी तीखी प्रतिक्रिया हुई कि पूछो मत. अंतर केवल हमारी सोच में है. अमरीकी राष्ट्रपति हमारे देश में हमारी तारीफ करे तो चलेगा लेकिन हमारे नेता किसी दूसरे देश में उसकी तारीफ करे तो नहीं चलेगा. आखिर ये हम किस तरह की सोच है का परिचय दे रहे हैं. जिस तरह ओबामा ने भारत में आकर भारतियों का दिल जीता है उसी तरह भारतीय नेताओं को भी खुलकर खेलने का मौका दिया जाना चाहिए. खुद को महान कह देने भर से काम नहीं चलने वाला है, कुछ कर के भी दिखाना होगा. अपनी सोच को थोड़े पंख देने होंगे, इतना संकुचित होकर चलेंगे तो दिक्कत होगी.

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