महाभारत में कर्ण और अर्जुन के भयंकर युद्ध पर बड़े-बड़े महारथियों की नजर थी। समस्त योद्धा इन दो महारथियों को भिड़ता देखना चाहते थे। नियत समय पर इन दोनों का युद्ध हुआ। अर्जुन और कर्ण दोनों एक से बढ़कर एक थे। एक गुरु द्रोण का शिष्य तो एक भगवान परशुराम का। युद्ध के दौरान अर्जुन के बाणों के प्रहार से कर्ण का रथ कई गज पीछे खिसक जाता और कर्ण के बाण से अर्जुन का रथ हथेली भर ही पीछे खिसकता। लेकिन भगवान कृष्ण कर्ण की प्रशंसा करते। इस पर अर्जुन ने हैरान होकर प्रशंसा का कारण पूछा तो भगवान कृष्ण ने बताया कि कर्ण के रथ पर तो केवल कर्ण और उसके सारथी शल्य का ही भार है, लेकिन तुम्हारे रथ पर स्वयं हनुमान जी विराजमान है, इसके अलावा मेरे अंदर तीन लोक का भार और तुम्हारे रथ के पहियों पर शेषनाग भी लिपटे हुए हैं। फिर भी कर्ण के बाण द्वारा रथ को हथेली भर खिसका देना प्रशंसनीय है। यह जानकर अर्जुन ने भी मन ही मन कर्ण की प्रशंसा की।
आज के राजनीतिक महाभारत में नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के बीच भी कर्ण और अर्जुन जैसी स्थिति बनी हुई है। एक गोलवलकर का शिष्य है तो एक अन्ना हजारे का। मोदी और केजरीवाल दोनों अपने-अपने क्षेत्र में महारथी हैं। लेकिन जहां नरेंद्र मोदी के पीछे एक मजबूत आधार वाली भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी, आरएसएस और पूरा काॅरपोरेट जगत खड़ा है। उनकी रैलियों में जो हुजूम उमड़ रहा है उस सफलता के पीछे बहुत बड़ा धन और जन का तंत्र काम कर रहा है। तब कहीं जाकर मोदी की सफलता नजर आती है। इस सबकी तुलना में केजरीवाल की सफलता को देखा जाए तो वह प्रशंसनीय लगती है। एक बिना कैडर की पार्टी ने दिल्ली के जन-जन तक अपनी पहुंच बनाई। उनका विश्वास जीता। आप के किसी भी नेता के पास अच्छी भाषण शैली नहीं थी, फिर भी लोगों को उनकी बात सच्ची लगी। केजरीवाल के पीछे मोदी की तरह न तो उतना बड़ा जनबल है और न धनबल। फिर भी उन्होंने दिल्ली में बहुत बड़ी सफलता हासिल की।
लेकिन महाभारत में अंतिम विजय अर्जुन को मिली। कर्ण को उसके गुरु ने श्राप दिया था कि उसकी विद्या तब उसके काम नहीं आएगी जब उसे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी। युद्ध के दौरान वही हुआ और कर्ण की हार हुई। अब 2014 के महाभारत में अंतिम विजय किसको मिलेगी ये देखना होगा। वैसे दिल तो अरविंद केजरीवाल ने भी अपने गुरु (अन्ना हजारे) का दुखाया है!!!