मेरठ शहर में तेंदुआ घुस आया है। उसने कैंट जनरल हाॅस्पिटल को अपना ठिकाना चुना है। मेरठ पुलिस की पूरी फोर्स और आर्मी के जवान अपनी पूरी ताकत झोंकने के बावजूद अभी तक उसे पकड़ने में नाकाम साबित हुए हैं। मीडिया फोटोग्राफरों और कैमरामैनों के लिए ये एक लाइफटाइम फोटो आॅपोच्र्युनिटी है। इसलिए वे अपनी जान पर खेलकर भी इस तेंदुए को अपने कैमरे में कैद करना चाहते हैं। आम लोगों को मजमा लगाने का नया ठिकाना और बातें छौंकने का नया मुद्दा मिल गया है। और बच्चों को स्कूल से छुट्टी मिल गई है। अब तक कई लोग जख्मी हो चुके हैं। सो, अब इस तेंदुए का बचना मुश्किल है। मनुष्य अपने खून का बदला जरूर लेगा। ये खून अगर आपसी लड़ाई में बहा होता तो एक बार को बदला छोड़ भी दिया जाता, लेकिन एक पिद्दी से जानवर की इतनी हिम्मत की इंसान का खून बहाय! इस जानवर को सबक सिखाकर ये बताना जरूरी है कि मनुष्य ने अब बहुत विकास कर लिया है, धरती का कोई भी जानवर अब उससे ज्यादा शक्तिशाली नहीं है।
आखिर क्यों
ऐसी घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं, और हर ऐसे मौके पर उपदेश दिया जाता है कि मनुष्य जब जानवरों के इलाके में घुसेगा तो जानवरों को भी मनुष्य के इलाके में घुसने को मजबूर होना पड़ेगा। इस प्रकार की घटनाओं में या तो मनुष्य खुंखार जानवर को मौत के घाट उतारकर अपनी वीरता और सक्षमता को स्थापित कर देता है या फिर खुद जानवर अपनी जान बचाकर भाग जाता है। अब हो ये रहा है कि जंगली जानवरों द्वारा मनुष्य के क्षेत्र में अतिक्रमण की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। हालांकि जंगली जानवर बिल्कुल नहीं चाहते कि मनुष्य के इलाके में घुसें, उन्हें तो अपने जंगल में ही मजा आता है, लेकिन उनके हरे-भरे जंगलों में अब कंक्रीट के जंगल खड़े होते जा रहे हैं। लिहाजा जानवर अब अंदाजा नहीं लगा पा रहे कि कब वो भटककर कंक्रीट के जंगल में पहुंच जाते हैं।
हस्तिनापुर वन्यक्षेत्र
मेरठ से सटा हस्तिनापुर वन्यक्षेत्र तमाम तरह की प्रजातियों का घर है। यहां तकरीबन 350 तरह की पक्षियों की प्रजातियां चिन्हित की जा चुकी हैं। इसके अलावा कई प्रकार के स्तनधारी, सांप, तितलियां, तेंदुए, हिरण, जंगली बिल्ली, गीदड़, लोमड़ी, जंगली सुअर, अजगर, घडि़याल और डाॅलफिन भी इस क्षेत्र में पाए जाते हैं। इस पूरे वन्यक्षेत्र पर इन समस्त प्रजातियों का प्रथम हक है और वही यहां की मालिक हैं। लेकिन इंसान ने तेजी से इनके इलाके में अतिक्रमण किया है। खुद वन विभाग की मिलीभगत से पेड़ों का अवैध कटान कर क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। गंगा नदी से सटे वेटलैंड पर आसपास के किसान जमकर पटान कर रहे हैं, जिससे वेटलैंड में पाए जाने वाली प्रजातियां नष्ट होने की कगार पर हैं।
विकास और संतुलन
विकास की अंधी दौड़ में हम प्रकृति का जमकर दोहन कर रहे हैं। विकास होना जरूरी है, लेकिन आंखें बंद करके नहीं होना चाहिए। अभी तक जिन भी क्षेत्रों में आधारभूत विकास को बढ़ावा दिया वहां इतना अंधाधुंध विकास कर दिया गया कि वहां की प्रकृति को छिन्न-भिन्न कर दिया गया। विकास का कोई चेक-डैम नहीं बनाया जाता। विकास आया, पैसा आया, पैसी की भूख आई और उस भूख के लिए प्रकृति तहस-नहस कर दी गई। अभी पिछले ही साल उत्तराखंड में प्रकृति ने भारी तबाही मचाकर पूरे क्षेत्र को साफ कर दिया। उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर पहाड़ों पर प्रकृति के साथ जबरदस्त छेड़छाड़ आज भी जारी है। और भविष्य के लिए खतरा जस का तस मुंह बाय खड़ा है। जबकि इन घटनाओं में सिर्फ एक ही संदेश छिपा होता है कि ‘चेत जाओ और भविष्य के लिए सबक लो’।
तेंदुआ आया और गया
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