सोमवार, 4 जनवरी 2010

New Year Resolution


आज किसी ने पूछा कि भाई तुमने न्यू इयर रेजोलूशन क्या लिया। मैंने कहा कुछ नहीं, उन्होंने पुछा कुछ तो, मैंने कहा कुछ भी नहीं।
इस न्यू इयर के चक्कर में न जाने कितने लोग गफलत का शिकार होते हैं, पता नहीं। खुद से बड़े बड़े वादे करते हैं। लेकिन सबसे मजेदार वादे होते हैं शराबियों के। वो हर नए साल पर खुद से और अपने परिवार से वादा करते हैं कि पीना छोड़ देंगे। खुद भी खुश, बीवी भी खुश, बच्चे भी खुश, माता पिता भी खुश। चलो कम से कम नया साल एक ख़ुशी तो लेकर आया।

समय बीतता है । कुछ पीने वाले जैसे तैसे जनवरी कि ठण्ड काट लेते हैं। तो कुछ इस ठण्ड को बर्दाश्त नहीं कर पाते और मित्रों कि मंडली में एक-दो पेग लगा लेते हैं। लेकिन उस दिन घर तो कतई नहीं जाते। आखिर घर वाले क्या कहेंगे कि एक महीना भी वादा नहीं निभा पाया। सो वह रात किसी दोस्त के घर पर ही बिताई जाती है। जो लोग जनवरी बिना पिए काट देते हैं उनका भी वादा होली आते आते टूट ही जाता है। अब बताओ होली है, इस पर नहीं पियेंगे तो कब पियेंगे, कौन सहेगा दोस्तों के उलाहने । होली पर तो चलेगी इस पर परिवार के लोग भी कुछ नहीं कहेंगे, आखिर तीन महीने तक बिना पिए रहा हूँ। घर वालों के लिए तो इतना ही बहुत है। इस तरह न्यू इयर पर लिए हुए संकल्प की टाय-टाय फिस्स हो जाती है। तो भला बताओ ऐसे संकल्प का क्या फायदा।

अपन ने भी पहले कई संकल्प लिए हैं। जैसे पढाई के दिनों के दौरान संकल्प लिया था कि रात ग्यारह बजे से पहले नहीं सोयेंगे और सुबह पांच बजे हर हालत में सो कर उठेंगे। एक महिना तो दूर ये संकल्प एक हफ्ते भी नहीं चल पाया। सो अपन ने अब ये न्यू इयर के चक्कर में पड़ना छोड़ दिया है। वैसे जिंदगी से ज्यादा पंगा नहीं लेना चाहिए। इश्वर ने कुछ सोचकर एक व्यवस्था के तहत लोगों कि मानसिकता का निर्माण किया है। किसी भी दो व्यक्तियों को एक सा नहीं बनाया। सबका माइंड सेट अलग अलग है। पीने वालों कि अलग दुनिया है न पीना वालों कि अलग। दोनों ही एक-दूसरे के समाज को बुरा भला कहते हैं। एक वर्ग है जो कहता है कि जिन्दगी एक बार ही मिली है, आगे का कुछ पता नहीं इसलिए जमकर जियो। दूसरा पक्ष कहता है कि जिन्दगी बड़े भाग्य से मिली है इसलिए अपने कर्मों पर नज़र रखो। ये बहस भी अनंत काल तक के लिए अनंत है। अपन भी वैसे दूसरी कटेगरी के आदमी हैं। कर्मों पर नज़र रखने में विश्वास रखते हैं। इसलिए अब अपना दिमाग ज्यादा लगाना बंद कर दिया है। अब तो बस ऊपर वाले के इशारों पर नाचना शुरू कर दिया है। इसलिए नो संकल्प।

1 टिप्पणी:

  1. नो संकल्प के साथ ही सही..नये साल का आगमन तो हुआ ही!!



    ’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

    -त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

    नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

    कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

    -सादर,
    समीर लाल ’समीर’

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कर्म फल

बहुत खुश हो रहा वो, यूरिया वाला दूध तैयार कर कम लागत से बना माल बेचेगा ऊंचे दाम में जेब भर बहुत संतुष्ट है वो, कि उसके बच्चों को यह नहीं पीन...