Sunday, March 21, 2010

दाल मुरादाबादी



आज अचानक पुष्पेश से बातचीत के दौरान मुरादाबादी दाल का जिक्र चल गया। दिल्ली कि दौड़ धूप में बहुत कम ही ऐसा होता है जब पुरानी यादों को ताज़ा किया जाये। सो साहब मन हुआ कि इस करामाती दाल के बारे में कुछ लिखा जाए। मैंने इन्टरनेट पर जब सर्च किया तो मुरादाबादी दाल के बारे में कुछ खास नहीं मिला। केवल एक फोटो और एक छोटा सा लेख। अरे जनाब ये दाल इससे जयादा तवज्जो चाहती है। तो आइये शुरू करते हैं मुरादाबाद कि सुबह से- मुरादाबाद में बसने वाला हर खास-ओ-आम मुरादाबाद की इस मूंग की दाल का मुरीद है। तमाम लोगों का सुबह का नाश्ता इसी मूंग की दाल से होता है। सुबह होते ही शहर की संकरी गलियों में ठेले वाले अपना ठेला सजा कर मुख्य मार्गों पर निकल पड़ते हैं। इसका प्रचलन इतना ज्यादा है कि लगभग पूरे मुरादाबाद में आपको जगह-जगह इस दाल के ठेले दिख जायेंगे। इस दाल को खाने का मज़ा केवल सुबह और शाम को ही है। यानी एक अल्पाहार के तौर पर। दोपहर में अगर आप खोजेंगे तो मुश्किल से ही कोई ठेला ढूंढ पाएंगे। मुरादाबाद के गुरहट्टी, चौमुखा पुल, अमरोहा गेट, टाउन हॉल, बुध बाज़ार, ताड़ीखाना, गुलज़ारिमल की धरमशाला, स्टेशन रोड, साईं मंदिर रोड जैसे इलाकों में इस दाल की तूती बोलती है। मुरादाबाद सुबह को काफी जल्दी उठता है, दिल्ली कि तरह नहीं है। गर्मियों में तो छः बजे ही हलवाइयों की भट्ठी से धुआं उठने लगता है। पहले तो गर्मियों में नौ बजते बजते ये दाल सड़क से साफ़ हो जाती थी। लेकिन अब कुछ-एक जगह पूरे दिन इसकी व्यवस्था रहती है। मुझे अच्छी तरह याद है जब हम रिक्शे से स्कूल जाते थे तो सात बजे एक ठेले वाला अपना ठेला घर से लेकर निकलता था, दाल का एक दौना चौराहों वाली माता के मंदिर में चढ़ाता था और फिर आगे बढ़ जाता था। पीछे रह जाता था उसकी भट्ठी से उठता धुआं और दाल की खुशबु। वैसे पुराने लोग कहते हैं कि मूंग की दाल बनियों का भोजन है, मुरादाबाद में बनियों की जनसँख्या भी काफी ज्यादा है ( हो सकता है कि यही कारण रहा हो इस दाल के प्रचलित होने का ) लेकिन आज तो मुरादाबाद का हर शख्स इस दाल को पसंद करता है। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी इस दाल का पूरा असर है।

इसका नाम मुरादाबादी दाल इसीलिए पड़ा कि मुरादाबाद में ही इस दाल का चलन सबसे पहले शुरू हुआ और ये वहां बेहद प्रचलित है। मेरठ और दिल्ली जैसे कुछ शहरों में भी एक-दो चाट वालों ने प्रयोग के तौर पर इसको शुरू किया लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है। शादियों और दूसरे समाहरोह में भी इस दाल ने जमकर अपनी पैठ बनाई है। मुरादाबाद के लोग जब दूसरे शहर से अपने बच्चों की शादी करते हैं तो खासतौर से ये फरमाइश रखते हैं की दावत में मुरादाबादी दाल का भी इंतजाम हो। दूसरी चाट की तरह पेट पर इस दाल का कोई बुरा असर नहीं और जेब पर भी भारी नहीं (वर्तमान रेट ५, ७ और 10 रूपए)। हर तरह से फायदा ही फायदा। बाबा रामदेव ने इस दाल के महत्व को समझा है और आप इस दाल का स्वाद उनके पतंजलि योगपीठ की कैंटीन में चख सकते हैं।

ये दाल बनाने में बेहद सरल है और खाने में पौष्टिक- मैं आपको थोडा से गाइड करने की कोशिश करता हूँ... मूंग की धुली दाल को नमक डाल कर प्रेशर कुकर में खूब गाढ़ा कर लीजिये। इतना गाढ़ा भी नहीं कि चम्मच से काटनी पड़े। मतलब नोर्मल डाल से गाढ़ी होनी चाहिए। फिर इस दाल को एक दौने या कटोरे में परोसिये। असली खेल इसमें मिलाये जाने वाली चीज़ों का है। अब इसमें एक चम्मच हरे धनिये या पोदीने की चटपटी चटनी मिलाइए, एक मक्खन की टिक्की डालिए, थोडा सा पनीर घिस कर डालिए, एक साबुत लाल मिर्च भूनने के बाद तोड़ कर डालिए, थोडा सा काला नमक और हींग-जीरे का भुना हुआ पावडर मिलाइए। चाहे तो मूली या गज़र भी घिस कर डाल सकते हैं। बस आपकी दाल तैयार है।

2 comments:

  1. वाह, यह तो कभी नहीं खाई। बनाने की कोशिश करनी होगी।
    घुघूती बासूती

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