मेरा नाई मुझसे खुश नहीं रहता। क्योंकि मैं उससे केवल बाल कटवाता हूं और दाढ़ी बनवाता हूं, फेशियल, फेस मसाज, स्क्रब, थ्रेडिंग, ब्लीच जैसे चोंचले नहीं करवाता। दरअसल बात ये है कि आजकल रेस्तरां और नाई की दुकान पर एक ट्रेंड जड़ जमाए जमाए हुए है कि रेस्तरां में अगर आप खाने के लिए दाल मांगते हो और नाई की दुकान पर केवल बाल या दाढ़ी बनवाते हो तो आपको ‘लो स्टैंडर्ड’ व्यक्ति समझा जाता हैं।
रेस्तरां के बैरे को कोई दाल आॅर्डर करे तो वो उसको हेय दृष्टि से देखेगा। वहीं आप अगर पनीर या मलाई कोफ्ता या जैसे व्यंजन आॅर्डर करते हो तो उसकी नजरों आपकी इज्जत खुद-ब-खुद बढ़ जाएगी। भले ही इस इज्जत के लिए आपको सिंथेटिक पनीर खाना पड़े जिसके ऊपर मिलावटी क्रीम तैर रही हो। इसी तरह नाई की दुकान पर आपकी शेव बनाने के बाद नाई बड़े प्यार से पूछता है, ‘सर मसाज कर दूं?’ अगर आपने मना कर दिया तो वो मन ही मन आपसे कुढ़ जाता। क्योंकि उसे आपकी शेव के 15 रुपये की भूख नहीं, बल्कि उसकी प्यास है बड़ी। और अगर आपने मसाज या फेशियल के लिए हां कर दी, फिर आपके चेहरे की शामत आ गई समझो। अच्छा नब्बे के दशक तक भारत में इस तरह के चोंचले हाई क्लास लड़कियों तक ही सीमित थे। लेकिन इसे ग्लोबलाइजेशन का असर कहें या देश की आर्थिक तरक्की का या फिर होई प्रोफाइल दिखने की होड़, कि देश का मिडिल क्लास भी इस तरह के चाोंचलों में अच्छी तरह फंसता जा रहा है।
नब्बे के दशक तक भारतीय मिडिल क्लास में सुंदर दिखने के उपाय लड़कियां ही किया करती थीं। लेकिन भला हो विज्ञापन और मार्केटिंग की दुनिया का कि इन्होंने लड़कों को भी इसकी चपेट में ले लिया। जो पसीना मेहनतकश इंसान की पहचान होता था, उस पसीने में धीरे धीरे सबको बदबू आने लगी और आज काॅलेज जाने वाले अधिकांश लड़के बगल में फुस्स-फुस्स लगाकर घर से निकलते हैं। गोरी चमड़ी के तो हम आज तक इतने कायल हैं कि अब लड़कों के लिए स्पेशल फेयरनेस क्रीम बाजार में हैं। शाहरुख खान और जाॅन अब्राहम विज्ञापन में अपनी सुंदरता का श्रेय इन फेयरनेस क्रीमों को ही देते हैं। मतलब उनके माता पिता के जींस का इसमें कोई योगदान नहीं. भारत में गोरेपन की होड़ किस हद तक है इसका अंदाजा आप जुलाई 2011 में छपी एक मार्केट रिसर्च से लगा सकते हैं जिसमें बताया गया कि भारत में 2200 करोड़ के काॅस्मेटिक बिजनेस में फेयरनेस क्रीम का बिजनेस 1800 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है और हर वर्ष 31 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।
हालांकि भारतीय घरों में लड़कियां बेसन, चंदन और मुल्तानी मिट्टी जैसे घरेलू नुस्खों से अपने चेहरे की रंगत निखारने के उपाय किया करती थीं, लेकिन अब पार्लर में जाकर केमिकल प्रोडक्ट्स लिपवाने का जमाना है। और इस पार्लरमेनिया में लड़के भी फंस गए। नाई की दुकान पर जितने भी क्रीम, पाउडर, ब्लीच के डिब्बे होते हैं, उन पर आपको फलों के चित्र छपे मिलेंगे। जो आपको ये बताने की कोशिश करते हैं कि ये प्रोडक्ट बिल्कुल नैचुरल व हर्बल है, केमिकल रहित है और उनसे आपके चेहरे को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। लेकिन उन फल-फूल के चित्रों के पीछे असलियत में केमिकल्स ही होते हैं। कुछ-कुछ भारत के संविधान की तरह जिसमें पहले ही पेज पर लिख दिया गया है कि देश धर्मनिर्पेक्ष है, सब नागरिक बराबर हैं, आजाद हैं, सबको न्याय का समान अधिकार है वगैराह, वगैराह, लेकिन असलियत में ऊपर से लेकर नीचे तक असमानता और अन्याय है।
नाई की दुकान पर एक-दो बार मेरे चेहरे की भी शामत आ चुकी है। हाल ही में मुरादाबाद गया था, तो मेरा चेहरा नाई के हाथों का शिकार बना। शेव बनाने के बाद नाई ने बड़े अदब के साथ बोला- ‘सर आपका चेहरा बड़ा रफ हो रहा है। मसाज कर देता हूं। हमारे यहां केमिकल्स वाले प्रोडक्ट यूज नहीं होते। ये देखिए ये स्क्रब इंडिया का नहीं है अरब का है। मैं 12 साल अरब में ही था। अब वापस मुरादाबाद आकर अपनी दुकान खोली है’। मैं बोला- यार मैं ये सब नहीं करवाता, तो जनाब ने कहा कि एक बार करवाकर देखिए। मैंने कहा- करवाकर देख चुका हूं, बमुश्किल 24 घंटे चेहरा चमकता है और फिर वैसा का वैसा। लेकिन उसने कुछ इतना अनुनय-विनय किया कि मैं उस अरबी स्क्रब के लिए तैयार हो गया। उसने झट से लड़कियों वाला हेयर बैंड मेरे बालों में जड़ दिया और लगा चेहरे को लेपने। उसके बाद पांच मिनट तक चेहरे को रगड़ता रहा। वो उस दानेदार स्क्रब को मेरे चेहरे पर रेगमाल की तरह रगड़ रहा था। इतने पर भी उसका जी नहीं भरा और उसने दराज में से एक मशीन निकाली। झनझनाहट मशीन, बोले तो वाइब्रेटर। उसको हाथ में पहना और पाॅवर स्विच आॅन कर दिया। अब उसके हाथ के दबाव से मेरा पूरा चेहरा झनझना रहा था। आंखें खोलूं तो हर चीज हिलती दिख रही थी, सो आंखें बंद ही कर लीं। चेहरा साफ करते-करते उसने उस झनझनाहट मशीन के साथ एक उंगली मेरे कान में घुसा दी। एक पल को ऐसा लगा मानो कोई कान में सुरंग खोद रहा हो। मैंने जोर से खोपड़ी हिलाकर मना किया। मेरी समझ में नहीं आया कि वो कान के अंदर कौनसी मसाज कर रहा था और न ही वो मुझे समझा पाया।
खैर, 15 मिनट के उस फिजिकल अत्याचार के बाद मैं नाई के चंगुल से आजाद था। चेहरा पहले से थोड़ा चमक तो रहा था, लेकिन इतना भी नहीं जितने वो मुझसे पैसे मांग रहा था। शेव$इंपोर्टेड स्क्रब के 150 रुपए मात्र। इलीट क्लास सोसायटी का एक अलिखित नियम है कि जब आपको कोई बार-बार ‘सर’ कहकर सम्मान दे तो आप उसके साथ पैसों के लिए ज्यादा झिकझिक नहीं कर सकते। आपको स्टाइल में अपना बटुआ खोलकर उसके हाथ पर पैसे रख देने होते हैं। खैर, मैं ऐसा करने वाला नहीं था, 150 की जगह 120 रुपए दिए। और उसने ये क्या सर, ये क्या सर कहते हुए पैसे दराज में रख लिए।
सारे ही व्यापार के चौंचले हैं।
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