Friday, March 9, 2012

शब्दों के शेर!



विंस्टन चर्चिल ने जब ये बयान दिया होगा कि ‘वल्र्ड इज रूल्ड बाय वड्र्स’ तब उन्होंने भारत के बारे में नहीं सोचा होगा, जहां के नेताओं से बड़े ‘शब्द शेर’ शायद ही विश्व के किसी देश में पाए जाते हों। हमारे देश में ये प्रजाति बहुतायत में पाई जाती है। जिलास्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक, दक्षिणपंथियों से लेकर वामपंथियों तक, गांधीवादियों से लेकर समाजवादियों, दिल्ली से लेकर दादरा नागर हवेली तक एक से बढ़कर एक ‘शब्द शेर’ सड़कों पर घूमते फिरते हैं। ये प्रजाति इतनी तेजी से बढ़ रही है कि किसी भी प्रकार की नसबंदी से इसे रोका नहीं जा सकता।

चुनाव आयोग के सौजन्य से, जनता के हित में पंच राज्यीय चुनाव कार्यक्रम के तहत जो लीला आयोजित की गई उसमें तमाम पार्टियों के ‘शब्द शेर’ हमें अपने गलियों में घूमते दिखे। जनता के हित में उन्होंने ऐसे-ऐसे शब्दों का उच्चारण किया कि कोई भी शब्द भेदी बाण उन्हें नहीं भेद सकता। चुनावों के दौरान सभी राजनीतिक पार्टियों के ‘शब्द शेर’ ऐसे दावे करते हैं कि गधों को भी हंसी आ जाए और फिर चुनावों के बाद वही ‘शब्द शेर’ अपने कहे हुए शब्दों पर फिर से शब्दों की लीपापोती करते हैं। सबका दावा यही कि सरकार हमारी पार्टी कि बनेगी, मानो कई सरकारें एक साथ बनने वाली हों।

रही बात वादों की तो जुबान हिलाने में क्या जाता है। एक कहे कि मेरी पार्टी की सरकार बनी तो मैं भैंस दूंगा तो दूसरा बोले कि मैं भैंस के संग लवाड़ा भी दूंगा। कोई बोले साइकिल दूंगा तो कोई बोले मोटरसाइकिल दूंगा, वो भी तेल भरवाकर। अब समाजवादी पार्टी को ये उम्मीद नहीं रही होगी कि पब्लिक बावरी इत्ता बड़ा बहुमत दे देगी। अब पार्टी को सोचना पड़ रहा होगा कि 18 करोड़ जनसंख्या वाले प्रदेश में कैसे इत्ते सारे लैपटाॅप और आईपैड बांटेंगे। वैसे भी मायावती ने खजाने में कुछ छोड़ा नहीं है, अरबों का खर्च आएगा, सरकार की तो बधिया बैठ जाएगी।

चुनाव परिणामों के बाद इन शब्द शेरों के बयान में थोड़ा बदलाव तो होता है, लेकिन फिर भी बात को ऐसे घुमाफिराकर कहेंगे कि उनकी हार भी हार नहीं लगती। पता नहीं सीधे-सीधे हार स्वीकारने में क्या घिसता है। यूपी में चुनाव परिणामों के बाद आए पार्टियों और नेताओं के कुछ खास बयानों को देखिएः


अखिलेश यादवः

हमने शानदार जीत दर्ज की हैः जिसकी हमें भी उम्मीद नहीं थी।

कांग्रेस के साथ संबंध अच्छे रहेंगेः क्या करें बयान बदल नहीं सकते सुबह के वक्त लग रहा था कि उनके समर्थन की जरूरत पड़ेगी, पर शाम होते-होते..

हार जीत तो होती रहती हैः अगली बार हम हार जाएंगे, इसमें क्या बात है।

प्रदेश में पार्टी पदाधिकारियों को गुडई नहीं करने दी जाएगीः गुंडई तो शुरू हो भी गई।

 पार्टी अपने सभी वादे पूरे करेगीः कैसे करेगी ये मुझे भी नहीं पता।


भाजपाः

हमने गोवा में अच्छा प्रदर्शन किया हैः आप से सवाल यूपी के बारे में पूछा गया है।

यूपी के परिणाम से हम निराश नहीं हैं: इससे ज्यादा निराशाजनक और क्या देखना चाहते हैं?

हमारा जनाधार बढ़ा हैः पर सीटें तो घट गईं!

पार्टी द्वारा आत्ममंथन किया जाएगाः चुनावों से पहले क्यों नहीं किया?



सोनिया गांधीः

यूपी की जनता के पास सपा का ही विकल्प थाः तो आपकी पार्टी वहां क्या झुनझुना बजाने गई थी?

यूपी में हमारा संगठन कमजोर थाः ये बात आपको करोड़ों खर्च करके हारने के बाद क्यों पता चली?

अमेठी और रायबरेली के लोगों को हमारे उम्मीदवार पसंद नहीं आएः 2014 में आपको और राहुल को वहां से उम्मीदवारी करनी है, कृपया अभी से विचार कर लें।

पिछली बार से सीटें बढ़ी हैं, 22 से 28 हो गएः इस हिसाब से अगली बार 34 मिलेंगी।



मायावतीः

यूपी में गुंडाराज आ गया है यहां कि जनता जल्द ही मेरे (कु) शासन को याद करेगीः लेकिन आपको तो कम से कम पांच साल इंतजार करना ही होगा।

लोग मेरी सरकार से नाराज नहीं थे, वरना बसपा को 76 सीटें नहीं मिलतीं, मेरा भी हाल बिहार में लालू जैसा होताः दिल बहलाने को गालिब ख्याल अच्छा है...

मुझे भाजपा, कांग्रेस, मुस्लिम और मीडिया ने हरायाः तो क्या मैडम आपको लगता था कि भाजपा और कांग्रेस आपको जिताने के लिए चुनाव लड़ रही थीं।

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