सोमवार, 21 मई 2012

आईपीएल: समरथ को नहिं दोष गोसांई!

कहते हैं कि क्रिकेट पहले नवाबों का खेल था. कम ही लोग इसे खेलते और देखते थे. लेकिन जब कपिल देव की अगुवाई में भारतीय टीम ने विश्वकप झटका तो एकाएक क्रिकेट राष्ट्र का गौरव बन गया. दूरदर्शन पर लाइव टेलिकास्ट की बदौलत न केवल घर-घर में युवाओं की पसंद बना बल्कि मोहल्ले की गलियों से लेकर घर की छतों तक लघु रूप में खेला जाने लगा. फिर जब सचिन जैसे महान बल्लेबाज का क्रिकेट की पिच पर जन्म हुआ तो क्रिकेट उन बुजुर्गों और महिलाओं की भी पसंद बन गया जिन्होंने कभी बल्ला पकड़ के नहीं देखा था.

क्रिकेट के प्रति लोगों की बढ़ती दीवानगी को देखकर बाजार के मगरमच्छों को इसमें खेल से कुछ ज्यादा नजर आने लगा और खेल-खेल में क्रिकेट दौलत की एक बहती गंगा बन गया. नैतिकता के झंडाबरदारों को उस समय क्रिकेट का व्यवसायीकरण करना ठीक न लगा और उन्होंने नैतिकता के सवाल खड़े किए. पर वो सवाल कान पर जूं की तरह रेंगे और फिसल गए.

फिर क्रिकेट के सफर में तीसरा चरण आया. लाइव टेलिकास्ट में मिनट-मिनट पर विज्ञापन मिलने लगे. खिलाडिय़ों की क्रिकेट से कम और विज्ञापन करने से ज्यादा कमाई होने लगी. नैतिकता के पैरोकारों ने फिर से नाक-भौंह सिकोड़ी, लेकिन फिर से उनकी एक न सुनी गई.

इधर बाजार में बैठे मगरमच्छ इतने से संतुष्ट नहीं थे. वे क्रिकेट की दुधारू गाय को और दूहना चाहते थे कि उसमें दूध का एक भी कतरा न बचे. सो, उन्होंने क्रिकेट में ग्लैमर और टेक्नोलॉजी का तड़का लगा दिया और बन गया आईपीएल. क्रिकेट की मंडी सजाई गई और सात समंदर पार से खिलाड़ी अपनी बोली लगवाने आए. लंबे समय बाद लोगों ने इंसानों को नीलाम होते देखा, लेकिन मॉडर्न जमाने में सब चलता है टाइप बातें कहकर सबने इसे पचा लिया. क्रिकेटरों के हेलमेट, बल्ले, ट्राउजर, जर्सी सब कुछ बिकाऊ हो गया. किसी न किसी ब्रांड ने उनके हर अंग को खरीद लिया. नैतिकता के सिपाहियों ने फिर से हाथ-पांव उछाले पर वे उछलते रह गए और कारवां बढ़ता गया.

आईपीएल दिन दोगनी-रात चौगुनी तरक्की करने लगा. पैसे का गुरूर रह-रहकर बोलने लगा. क्रिकेट अब क्रिकेट न रहकर शराब, शबाब, ग्लैमर, टेक्नोलॉजी, सट्टेबाजी, सेक्स और ड्रग्स की भयानक कॉकटेल बन गया, जो सोना बनकर बरस रहा है. कमाने वाले अपनी थैलियां भर रहे हैं. नेता हों या अभिनेता, वर्तमान क्रिकेटर हों या पूर्व क्रिकेटर, चैनल हों या रेडियो एफएम, अखबार हों या मैग्जीन सबके मुंह में सोना भर दिया गया. तनाव की मारी जनता मैदानों में पहुंचकर और टीवी से चिपककर ये सबूत देती रही कि पब्लिक इसे पसंद करती है. कमाई करने वाले इसी बात की दुहाई देकर मलाई उतारते रहे.

क्रिकेट की इस भयंकर कॉकटेल को जो भी पिएगा तो उसके कदम थोड़े बहुत तो बहकेंगे ही न. क्या हुआ जो रईस शाहरुख ने गरीब गार्ड से बद्तमीजी की, गरीब की कैसी इज्जत. क्या हुआ जो रेव पार्टी में खिलाड़ी पकड़े गए, आखिर पैसा कमाया तो खर्च भी तो करना पड़ेगा. क्या हुआ जो एक मॉडल से माल्या के लड़के और अजीब से नाम वाले एक खिलाड़ी ने छेड़खानी की, नशे में छोटी-मोटी गलतियां हो ही जाती हैं. फिक्सिंग को तो गलत मानना ही नहीं चाहिए, आईपीएल में नहीं कमाएंगे तो कहां कमाएंगे.

मैं एक बार कपड़े की दुकान में गया तो वहां पर एक स्टिकर चिपका देखा, जिस पर लिखा था- "फैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा न करें". शायद यही बात आईपीएल पर भी लागू होती है कि- "पैसे की इस दौड़ में नैतिकता की इच्छा न करें".

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