शनिवार, 26 मई 2012

भारत और भारतीयों की बढ़ती शक्ति


मैंने अपने ब्लॉग पर क्लस्टर मैप लगा रखा है जो ब्लॉग पर आने वाले रीडर्स का लेखा-जोखा रखता है. खालिस हिंदी भाषा का मेरा ब्लॉग भारत के अलावा विश्व के कई देशों में पढ़ा जाता है. क्लस्टर मैप को मानें तो भारत के बाद सबसे ज्यादा रीडर्स अमेरिका से हैं, फिर तायवान, यूरोप और ऑस्ट्रिेलिया से. ऐसा नहीं है कि मैं बहुत बड़ा लिक्खाड़ हूं या कोई सेलिब्रिटी हूं. बल्कि सच ये है कि हिंदी के सभी ब्लॉग्स पूरे विश्व में पढ़े जाते हैं. हिंदी के लवर्स और ब्लॉगर्स केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में फैले हैं. ये हिंदी और हिंदुस्तानियों की बढ़ती शक्ति का प्रतीक है.

जिस तरह से इंडियन डायसपोरा अखिल विश्व में फैल हुआ है उसे देखकर मुझे भारत की बढ़ती जनसंख्या में अब समस्या नजर नहीं आती. अभावों में पैदा हुए भारतीयों ने अपने जिंदगियों को बेहतर बनाने के लिए कमरतोड़ मेहनत की और कर रहे हैं. विदेशों में भी भारतीयों ने अपना परचम लहराकर अपनी काबिलियत एक बार नहीं बार-बार सिद्ध की. चाहे राजनीति हो या उद्योग, आईटी हो या स्पेस टेक्नोलॉजी विदेशों में रह रहे भारतीय हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रहे हैं.

और ऐसा भी नहीं है कि अप्रवासी भारतीयों ने ये मुकाम यूं ही हासिल कर लिया. उन्होंने तमाम तरह के नस्लभेद और रंगभेद भी झेले हैं और झेल रहे हैं. लेकिन अपनी मजबूत एकजुटता के चलते वे अपना अस्तित्व बचाए हैं. जब भी किसी देश से भारतीयों पर हमले की खबर आती है तो भारत में रह रहे भारतीयों का खून खौल कर रह जाता है. इसलिए नहीं कि भारतीयों में बड़ा प्रेम है, बल्कि इसलिए कि भले ही आपस में एक दूसरे की गर्दन काटें, लेकिन किसी बाहरी ताकत का हमला होने पर हम भारतीय उसके हलक में हाथ डाल देते हैं. ये भारतीयों का नेचर है.

दूसरी चीज भारतीय भारत में भले ही एक-दूसरे की गर्दन काटने को आतुर रहते हों, लेकिन दूसरे देशों की धरती पर वे 'भयंकर' एकजुटता के साथ रहते हैं और एक-दूसरे को प्रोमोट करते हैं. भारत में भले ही वेस्टर्न कल्ट एडॉप्ट किया जा रहा हो, लेकिन अप्रवासी भारतीयों ने भारतीय संस्कृति को बखूबी संजो रखा है. चाहे संयुक्त परिवार संस्था हो या तीज-त्योहार अगर कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो मोटेतौर पर अप्रवासी भारतीय अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं. हम भले ही नमस्ते का अर्थ न जानते हों, लेकिन अप्रवासी भारतीयों ने विदेशियों को इसका मतलब बखूबी समझा दिया है. अप्रवासी भारतीय अपनी हर परंपरा, रीति-रिवाज और तीज-त्योहार के पीछे छिपे तर्कों को अच्छी तरह जानते हैं, क्योंकि वहां उन्हें हर चीज के पीछे प्रश्न झेलने पड़ते हैं कि आप बिंदी क्यों लगाते हैं, माथे पर टीका क्यों लगाते हैं, मांग में सिंदूर क्यों भरते हैं वगैराह-वगैराह. भारत में क्योंकि ये प्रचलन है इसलिए न कोई पूछता है और न कोई इस पर ध्यान देता है. लेकिन विदेशियों के सवालों पर अप्रवासी भारतीयों ने अपनी हर परंपरा के पीछे छिपे विज्ञान और तर्क को खोजकर उनका जवाब दिया है. ये एक अच्छा सिग्नल है.

मैंने अब तक जितने भी अप्रवासियों को जाना और पहचाना उससे महसूस हुआ कि अप्रवासी भारतीयों में भारत को शक्तिशाली, विकसित और सुंदर देश के रूप में देखने की तीव्र और सच्ची उत्कंठा है. भारतीयों और भारत सरकार की नजर भले ही अप्रवासियों के धन पर हो, लेकिन अप्रवासी सच्चे दिल से भारत को शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं. न केवल वे दोनों हाथ खोलकर भारतीय संस्थानों और सामाजिक संस्थाओं में दान देते हैं बल्कि विदेशों में भी वे भारत के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास करते हैं. 

स्वामी विवेकानंद ने 2012 को परिवर्तन का वर्ष बताया था कि इसी साल से भारत एक शक्ति बनकर उभरना शुरू होगा. अतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर जो माहौल बन रहा है उसको देखकर लगता भी है कि आने वाले दिनों में भारत विश्व में अहम भूमिका निभाने जा रहा है. और भारत को इस मुकाम पर पहुंचाने में निश्चित तौर पर अप्रवासी भारतीयों की अहम भूमिका होगी.

3 टिप्‍पणियां:

कर्म फल

बहुत खुश हो रहा वो, यूरिया वाला दूध तैयार कर कम लागत से बना माल बेचेगा ऊंचे दाम में जेब भर बहुत संतुष्ट है वो, कि उसके बच्चों को यह नहीं पीन...