Wednesday, August 14, 2013

ऐ पाकिस्तान बता तेरी रजा क्या है?


पाकिस्तान में आम चुनाव के बाद जिस दिन मियां नवाज शरीफ की पार्टी जीत की ओर बढ़ी, उन्होंने तपाक से बयान जारी कर दिया ‘वो भारत के साथ मजबूत और दोस्ताना रिश्ते बनाना चाहते हैं और बनाएंगे, चाहे भारत आग आए या न आए’। भारत के खबरिया चैनलों में बैठे अंग्रेजीदां पत्रकार इस बयान से इतने प्रेरित हुए कि उन्होंने मियां नवाज शरीफ का एक ‘मासूम गऊ’ चेहरा अपनी टीवी स्क्रीनों पर दिखाना शुरू कर दिया और तब तक दिखाते रहे जब तक हमारे ‘सिंह’ प्रधानमंत्री ने भी नहीं कह दिया कि वो भी पाकिस्तानी के नए गऊ प्रधानमंत्री से बतियाना चाहते हैं।

पाकिस्तान के मामले में अब तक के अनुभवों के बावजूद पता नहीं क्यों भारतीय मीडिया को उधर से दोस्ती की इतनी ज्यादा उम्मीद रहती है। किसी को उधर से अमन की आशा रहती है, कोई वहां के कलाकारों को मंच देने के लिए पलक बिछाए रहता है, तो कोई क्रिकेट डिप्लोमेसी की पैरोकारी करता है। भारतीय मीडिया के बीच पाए जाने वाले चंद जरूरत से ज्यादा ‘क्रिएटिव’ पत्रकार बार-बार ये बताने का प्रयास करते हैं कि वे जरा अलग ढंग से सोचते हैं, उनकी सोच परंपरागत नहीं है।

आप नई सोच रखें या परंपरागत पाकिस्तान अपनी करतूतों से आपकी हर सोच पर पानी फेरता रहा था, है और रहेगा। एक नई सोच के साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी बस में सवार होकर लाहौर गए थे। यही मियां नवाज शरीफ उस समय भी दोस्ती के राग अलाप रहे थे। पर हुआ क्या इधर वो लाहौर में बार-बार वाजपेयी से गले मिल रहे थे और उधर कारगिल में मुशर्रफ भारत की पीठ में छुरा घोंप रहे थे। कारगिल में धोखा खाने के बावजूद वाजपेयी ने तानाशाह मुशर्रफ को बातचीत के लिए आगरा बुलाया। लेकिन आगरा में भारत का नमक खाने के बाद भी मुशर्रफ ने क्या सिला दिया, वो सबके सामने है।

नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान जो इन दिनों कारस्तानियां कर रहा है, वो सोची समझी रणनीति लगती है। उधर मियां नवाज शरीफ अपनी शराफत का लबादा ओढ़े हुए हैं और विश्व को दिखा रहे हैं कि पाकिस्तान भारत के साथ शांति चाहता है, और इधर उनकी फौज भारत के साथ छिछोरी हरकतें कर रही है। पाकिस्तान ने इस बार अपनी आजादी के जलसे में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बानकी मून को न्यौतकर एक तरफ उनके समाने शांति का ढोंग रचा और दूसरी तरफ सीमा पर लगातार गोलीबारी करता रहा। पाकिस्तान कश्मीर के मसले पर विश्व समुदाय के सामने झूठ परोसकर बेहद धूर्त राजनीति करता आया है। लेकिन फिर भी न जाने क्यों भारत को पाकिस्तान के साथ दोस्ती की उम्मीदें बरकरार हैं।

मियां नवाज शरीफ भले ही देखने में शरीफ लगें, लेकिन वो भारत के साथ शराफत से कभी पेश नहीं आएंगे। भारत को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि शरीफ की पार्टी पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के समर्थन से ही सत्ता में आई है। लिहाजा अपने आकाओं के साथ दगा करके भारत के साथ वफा करने की गलती नवाज शरीफ कर ही नहीं सकते। फिर भी कुछ भारतीय पत्रकार सिर्फ इस बात से खुश हो जाते हैं कि पाकिस्तान के शीर्ष नेता उनको नाम से पहचानते हैं और तवज्जो देते हैं, लिहाजा वो हर वक्त अपने चैनलों पर उन पाकिस्तानी नेताओं का अहसान सा उतारते दिखते हैं।

ये बात किसी से भी छिपी नहीं है कि पाकिस्तान की पूरी राजनीति भारत के साथ घृणा पर टिकी है, सो वो अमन की बात कर ही नहीं सकता। यहां से न जाने कितनी बार दोस्ती के हाथ बढ़ाए गए, लेकिन हर बार उसने दोस्ती का सिला दुश्मनी से दिया। पाकिस्तान की ये ऐंठ तो तब है जब उसके आर्थिक हालात समुंद्र में गोते लगा रहे हैं। अगर छोटा सा भी युद्ध हुआ तो पाकिस्तान छेल नहीं पाएगा, लेकिन फिर भी भारत को उकसाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है। चाहे वो भारतीय जवानों का सिर कलम करने की दुस्साहस हो या फिर भारतीय चैकी पर हमला कर पांच जवानों की हत्या का मामला। भाड़े के आतंकियों के बलबूते पाकिस्तानी सेना हमेशा से कायराना और छिछोरा खेल खेलती आई है। इसी से भारत को समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान भारत का कभी हितैषी नहीं बन सकता।

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