शनिवार, 16 नवंबर 2013

सचिन-सचिन-सचिन

नजर-नजर में उतरना कमाल होता, नफस-नफस में बिखरना कमाल होता है,
बुलंदियों पर पहुंचना कोई कमाल नहीं, बुलंदियों पर ठहरना कमाल होता है।

सचिन तेंदुलकर देश के ऐसे सितारे हैं, जो ध्रुव तारे की तरह बुलंदी पर इस तरह स्थापित हुए कि अपना स्थान हमेशा-हमेशा के लिए पक्का कर लिया। ऐसा खेल खेला कि भारत में क्रिकेट नया धर्म बन गया और भारतीयों ने खुद उन्हीं को इस नए धर्म के भगवान बना दिया। धर्म भी ऐसा कि आज क्रिकेट सारे धर्मों के सिर चढ़कर बोलता है। इसीलिए जब आज मंुबई में क्रिकेट का भगवान विदाई ले रहा था तो भक्तों की आंखों में आंसू थे। सचिन अपने जीते-जी अपने भक्तों को रुला कर चले गए और पिच को नमन करते हुए खुद भी रोए।

लेकिन क्रिकेट के माध्यम से जो मुकाम भारत में सचिन ने हासिल किया वैसा मुकाम देश के किसी भी क्षेत्र में शायद ही किसी को मिला हो। एक ऐसा मुकाम जहां आज सचिन का कोई विरोधी नहीं, सिर्फ प्यार ही प्यार, सम्मान ही सम्मान। राजनीति, कला, विज्ञान, अध्यात्म, काॅर्पोरेट किसी भी क्षेत्र को उठा कर देख लें, कहीं कोई ऐसी शख्सियत नजर नहीं आती जिसका विरोध या आलोचना न हो। लेकिन सचिन एकमात्र ऐसे शख्स हैं जो निर्विरोध सर्वोच्च शिखर पर स्थापित हुए हैं।

संन्यास का दिन सचिन के लिए बेहद खास रहा। क्रिकेट में ऐसी विदाई किसी भी खिलाड़ी को नहीं मिली। या यूं कहें कि कपिल देव और गावस्कर के जमाने में इलेक्ट्राॅनिक मीडिया इतना सशक्त नहीं हुआ करता था, जिसने सचिन की विदाई को एक इंटरनेशनल इवेंट में तब्दील कर दिया। खचाखच भरे वानखेड़े स्टेडियम ने ‘सचिन-सचिन’ के घोष के बीच मास्टर-ब्लास्टर को जबरदस्त भावुक विदाई दी। मैच के तुरंत बाद भारत सरकार द्वारा भारत रत्न प्रदान करने की घोषणा ने सचिन की विदाई में चार चांद लगा दिये। एक साथ इतनी सारी खुशियां या तो फिल्मों में ही देखने को मिलती हैं या फिर परियों की कहानियों में लेकिन विदाई दिन फिर साबित कर दिया कि वो वास्तव में खास हैं। उनकी उपलब्धियां गिनती से आगे निकल गई हैं, किसी इंसान के लिए अपने जीवन में इतनी सारी उपलब्धियां जुटाना नामुमकिन लगता है, इसीलिए सचिन को भगवान का दर्जा दे दिया गया। उनके उपलब्धियों को देखकर कभी-कभी लगता है कि ये दर्जा उन्हें सही दिया गया है। 

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