सोमवार, 11 मई 2015

चुनाव जो इतिहास रच गया (भाग-2): मोदी ने ठोका हर विवाद पर छक्का


16वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव के जब 16 मई 2014 को परिणाम सामने आए तो वे अविस्मरणीय और हतप्रभ करने वाले थे। 16 मई की तिथि इतिहास में इस तरह दर्ज हो गई कि जब-जब बदलाव पर चर्चा होगी तो इस तिथि का जिक्र आएगा। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर कांग्रेसी दल को बहुमत देकर भारतीय मतदाताओं ने अपने वोट की ताकत का अहसास करा दिया। मतदाताओं ने न केवल एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार दी बल्कि इन परिणामों के माध्यम से देश के राजनीतिज्ञों को कई छिपे हुए संदेश भी दे दिए। जिस सुंदर राष्ट्र का सपना सड़क से लेकर संविधान तक आम लोगों को दिखाया जाता रहा, अब जनता उसे हकीकत में तब्दील होते देखना चाहती है। इसी उम्मीद के साथ देश के जनमानस ने नरेंद्र मोदी में अपनी आस्था दिखाई और उनके हाथ में एक मजबूत सरकार की बागडोर सौंप दी। उस ऐतिहासिक चुनाव परिणाम की पहली वर्षगांठ पर एक पुनरावलोकलनः
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भाजपा नेता नरेंद्र मोदी कभी अपने कड़वे बोलों के लिए चर्चित रहते थे। 2009 के चुनाव में राहुल गांधी को जर्सी बछड़ा और सोनिया को जर्सी गाय कहकर वो मीडिया के निशाने पर आ गए थे। लेकिन वही मोदी जब 2014 के चुनावी मैदान में उतरे तो उनकी भाषा इतनी ज्यादा संयत थी कि 440 रैलियों में लंबे-लंबे भाषण देने के बावजूद उनकी जुबान ऐसी नहीं फिसली जिससे कोई विवाद खड़ा हो। राहुल गांधी के चुनावी करियर को तो उन्होंने केवल ‘शहजादे’ कह-कह कर ही हाशिए पर पहुंचा दिया। कुछ रैलियों में उनके भाषण में फैक्चुअल मिस्टेक जरूर हुईं, लेकिन वे ऐसी नहीं थीं कि उन पर विवाद खड़ा हो। उन गलतियों से ‘आज तक’ चैनल को अपने ‘सो साॅरी’ सीरीज का एक एपिसोड बनाने भर का मसाला मिला। पूरे चुनावी माहौल में मोदी विकास का माॅडल प्रस्तुत करते और कांग्रेस की खामियां गिनाते नजर आए। कहीं भी उन्होंने निजी हमले या कमर से नीचे वार नहीं किए और ये बात उनके पक्ष में जाती गई। चुनावी युद्ध पर गिद्ध की तरह नजरें गड़ाए बैठी मीडिया इसी फिराक में थी कि कब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार गलती करें और कब वो उस गलती का पोस्ट माॅर्टम करे, पर मोदी ने उस पद की पूरी गरिमा को बनाए रखा, जिसके वो उम्मीदवार थे।

चाय वाला तंज
भारतीय राजनीति का पढ़ा-लिखा चेहरा समझे जाने वाले मणिशंकर अय्यर को न जाने क्या हुआ कि उन्होंने 18 जनवरी 2014 कोई हुई एआईसीसी की मीटिंग में नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगलते हुए कह दिया कि- 21वीं शताब्दी में मोदी इस देश के प्रधानमंत्री कभी नहीं बन सकते, हां अगर वो चाय बेचना चाहें तो उसके लिए जगह का इंतजाम कर दिया जाएगा। दून स्कूल से पढ़े-बढ़े मणिशंकर का ये तंज उनकी पार्टी के लिए इतना भारी पड़ेगा ये उन्होंने सोचा नहीं होगा। भाजपा कार्यकर्ता सचमुच चाय की केतली लेकर एआईसीसी की मीटिंग में पहुंच गए और मीडिया ने जबरदस्त कवरेज दी। इसके बाद मोदी ने हर रैली में अपनी पहचान बतानी शुरू कर दी। मोदी ने ‘चाय वाले’ की छवि को पूरे चुनाव प्रचार में इतना ज्यादा भुनाया कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी मोदी की काबिलियत के कायल हो गए। इतना ही नहीं उन्होंने अपने नामांकन में चाय वालों को अपना अनुमोदक भी बनाया। मोदी ने हर मंच से अपनी पुरजोर आवाज में बार-बार लोगों को बताया- ‘मैंने चाय बेची है, देश नहीं बेचा’। इस स्ट्रैटेजी को अपनाकर भाजपा ने मोदी के पक्ष में माहौल बनाने में असरदार मदद की।

बड़ौदा की सेल्फी 
अपनी संसदीय सीट बड़ौदा में वोट डालने के बाद मोदी ने जब कमल के फूल के निशान के साथ मीडिया के सामने सेल्फी खींची तो उन्हें अच्छी तरह पता होगा कि ये आचार संहिता का उल्लंघन है, बात बढ़ सकती है। लेकिन यही मोदी चाहते थे। दरअसल 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी की मीडिया में अधिकतम दिखने और चर्चित रहने की रणनीति साफ नजर आई। चाहे इसके लिए कोई छोटा-मोटा उल्लंखन ही क्यों न करना पड़े। सेल्फी लेने की पीछे उनकी यही मंशा थी। जैसे ही सेल्फी टीवी स्क्रीन पर दिखनी शुरू हुई, हंगामा खड़ा हो गया। चैनल और विपक्षी पार्टियां उल्लंघन-उल्लंघन चिल्लाने लगे। अपने चुनाव चिन्ह के साथ फोटो खिंचाना चुनाव आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन जरूर था पर ये इतना बड़ा अपराध कतई नहीं था कि मतदाता को नागवार गुजरे। इसलिए इस विवाद का भाजपा के अभियान पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा, पर मीडिया में हुई चर्चा के कारण मोदी ने कम से कम दो दिन तक सभी चैनलों का एयर टाइम अपने पक्ष में मोड़ लिया।

वाराणसी रैली पर प्रतिबंध
वाराणसी के जिलाधिकारी और रिटर्निंग आॅफिसर प्रांजल यादव द्वारा सुरक्षा का हवाला देकर शहर के बेनियाबाग इलाके में नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित रैली को इजाजत न देकर चुनावी माहौल में जबरदस्त उबाल ला दिया। भाजपा ने रैली की पूरी तैयारी कर ली थी, गुजरात की बहुत बड़ी टीम वाराणसी में डेरा डाले थी, कार्यकर्ताओं का जोश आसमान पर था, ऐसे में रैली की इजाजत न मिलने की खबर फैलते ही, मायूसी के साथ-साथ भावनात्मक उबाल भी देखने को मिला। जिलाधिकारी ने भले ही सुरक्षा और कानून व्यवस्था की बात कहकर रैली पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन आम लोग इस निर्णय के पीछे डीएम प्रांजल यादव और यूपी के मुखिया अखिलेश यादव के बीच यादव कनेक्शन की नजर से देखने लगे। खबरिया चैनलों पर इस प्रतिबंध का अलग-अलग एंगल से पोस्ट माॅर्टम होने लगा। एक बार फिर माहौल मोदी के पक्ष में जाता दिखा। मौका भांपकर भाजपा के रणनीतिज्ञों ने गर्म लोहे पर चोट की। नरेंद्र मोदी 8 मई को वाराणसी पहुंचे, पर रैली नहीं की, न माइक संभाला और न कोई बयान दिया। मोदी ने बस इतना किया कि वो बीएचयू गेट से अपनी गाड़ी में सवार होकर वाराणसी की सड़कों से गुजरते हुए भाजपा कार्यालय तक पहुंचे। पर ये कदम इतना छोटा नहीं था, जितना पढ़ने में लग रहा है। इस छोटे से सफर को तय करने में मोदी के काफिले को कई घंटे लगे। भारी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता और आम लोग उन्हें देखने के लिए सड़कों और घरों की छत पर निकल आए। मोदी खुद को एक ऐसी उम्मीदवार के तौर पर पेश करने में सफल रहे जिससे उसका बोलने का अधिकार छीना जा रहा है। मीडिया पल-पल की लाइव कवरेज दिखाता रहा और ये सब फिर एक बार नरेंद्र मोदी के पक्ष में चला गया।

दूरदर्शन का इंटरव्यू 
बिना बात के विवाद कैसे खड़ा किया जाता है ये मोदी के आखिरी मास्टर स्ट्रोक में देखा जा सकता है। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने एक खास पैटर्न में सभी टीवी चैनलों को इंटरव्यू दिए। इंडिया टीवी की ’आपकी अदालत’ में रजत शर्मा को दिया गया इंटरव्यू तो लोगों में जबरदस्त हिट हुआ। चैनल ने इस इंटरव्यू को बार-बार दिखाकर खूब टीआरपी भी बटोरी। अंत में दूरदर्शन की बारी आई। वैसे तो चुनाव के दौरान दूरदर्शन चुनाव आयोग की आचार संहिता का सख्ती से पालन करता है, लेकिन फिर भी वह उस समय की यूपीए सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन था। किसी भी इंटरव्यू के बाद उसमें एडिटिंग होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। सभी चैनलों में ऐसा होता है, ये हर चैनल का विशेषाधिकार है। लेकिन डीडी न्यूज को नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू में काट-छांट बहुत भारी पड़ गई। डीडी-न्यूज द्वारा गुजरात जाकर मुख्यमंत्री आवास पर लिए गए इस इंटरव्यू के प्रसारित होते ही भाजपा ने दूरदर्शन पर हल्ला बोल दिया। भाजपा ने आरोप लगाया कि चैनल ने यूपीए सरकार के दबाव में इंटरव्यू का सबसे महत्वपूर्ण भाग काट दिया है। ये आरोप कुछ हद तक ठीक भी था, क्योंकि मोदी का इटरव्यू प्रसारित करने से पहले दूरदर्शन के आला अधिकारियों से लेकर कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा उसे देखा गया था। पर चैनल की समय सीमा में बांधने के लिए इंटरव्यू को काटना भी जरूरी था। कहीं न कहीं से तो इंटरव्यू को काटा ही जाना था। पर भाजपा दूरदर्शन को कोई मौका नहीं देना चाहती थी। पार्टी ने बेहद आक्रामक होकर दूरदर्शन पर आरोप लगाए। ये गुस्सा इसलिए भी था क्योंकि पूरे यूपीए काल में डीडी न्यूज ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का बायकाॅट करके रखा। गुजरात सरकार तो दूर वहां के विकास से जुड़ी खबरें भी बमुश्किल दिखाई गईं। पर मोदी ने एक ही मास्टर स्ट्रोक से दूरदर्शन से बदला भी ले लिया और अपना चुनावी मकसद भी पूरा कर लिया। ये मुद्दा कई दिनों तक मीडिया में छाया रहा, और मोदी को कवरेज मिलने का सिलसिला जारी रहा।

भाजपा की इस तरह की रणनीति का परिणाम ये निकला कि चुनाव प्रचार के दौरान चैनलों का अधिकांश एयर टाइम हो या अखबारों के फ्रंट पेज हर ओर मोदी ही मोदी छाए रहे। कोई दूसरा चेहरा चाहे वह अपनी पार्टी का हो या विपक्षी पार्टियों का, उनके आसपास भी नहीं भटका।
(To be continued...)

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