Sunday, May 10, 2015

चुनाव जो इतिहास रच गया (भाग-1): चारों ओर नमो-नमो का शोर

16वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव के जब 16 मई 2014 को परिणाम सामने आए तो वे अविस्मरणीय और हतप्रभ करने वाले थे। 16 मई की तिथि इतिहास में इस तरह दर्ज हो गई कि जब-जब बदलाव पर चर्चा होगी तो इस तिथि का जिक्र आएगा। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर कांग्रेसी दल को बहुमत देकर भारतीय मतदाताओं ने अपने वोट की ताकत का अहसास करा दिया। मतदाताओं ने न केवल एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार दी बल्कि इन परिणामों के माध्यम से देश के राजनीतिज्ञों को कई छिपे हुए संदेश भी दे दिए। जिस सुंदर राष्ट्र का सपना सड़क से लेकर संविधान तक आम लोगों को दिखाया जाता रहा, अब जनता उसे हकीकत में तब्दील होते देखना चाहती है। इसी उम्मीद के साथ देश के जनमानस ने नरेंद्र मोदी में अपनी आस्था दिखाई और उनके हाथ में एक मजबूत सरकार की बागडोर सौंप दी। उस ऐतिहासिक चुनाव परिणाम की पहली वर्षगांठ पर एक पुनरावलोकलनः
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ब भारतीय जनता पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की नाराजगी मोल लेकर 10 जून 2013 को नरेंद्र मोदी को 2014-लोकसभा चुनाव के लिए अपना प्रचार प्रमुख चुना था तब शायद किसी को ये अंदाजा नहीं रहा होगा कि मोदी पार्टी के लिए ऐसा प्रचार करेंगे जो न किसी ने कभी देखा होगा और न सुना। मोदी ने देश का ऐसा तूफानी दौरा किया कि 32,87,590 वर्ग किलोमीटर में फैला ये विशाल राष्ट्र उनके हौसले के सामने एक छोटा सा गांव नजर आया। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी तीन लाख किलोमीटर से ज्यादा यात्रा कर कुल 440 रैली और 5827 अन्य कार्यक्रमों के सूत्रधार बने। भारत के चुनावी इतिहास में देश की जनता ने ऐसा जोशीला प्रचार कभी नहीं देखा था। चैनल से लेकर अखबारों तक, रेडियो से लेकर लाउडस्पीकरों तक, गली मोहल्लों से लेकर रैलियों तक, हर मोर्चे पर मोदी विपक्षी पार्टियों पर भारी और बहुत भारी पड़ते दिखे। चुनाव शुरू होने से पहले पोल पंडित ये तो कह रहे थे कि एनडीए की सरकार बनेगी, लेकिन कोई खुलकर ये कहने को तैयार नहीं था कि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलेगा। लेकिन नौ चरणों का मतदान खत्म होते-होते कई सर्वे यह कहने को मजबूर हो गए कि भाजपा पूर्ण बहुमत से आ रही है।

चैनल बोले नमो-नमो
विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां धार्मिक विविधता सबसे ज्यादा है और शायद इसीलिए साम्प्रदायिक दंगे भारत में एक हकीकत हैं। ये दंगे न अंग्रेज रोक पाए और आजादी के बाद न कोई भारतीय सरकार रोक पाई। लेकिन भारतीय न्यूज चैनलों ने जितना पोस्ट माॅर्टम 2002 के गुजरात दंगों का किया और जितनी कीचड़ वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर उछाली गई वैसा सुलूक भारतीय इतिहास में न तो किसी सरकार और न ही किसी नेता के साथ किया गया। यूपीए के दस साल के शासन में भारतीय न्यूज चैनल तकरीबन हर रोज गुजरात दंगों का जिक्र कर मोदी को नीचा दिखाने का कोई न कोई प्रयास करते दिखते थे। बात साम्प्रदायिकता की हो रही हो, तो उसे जबरदस्ती मोड़कर गुजरात ले जाया जाता था। पर 2014 के लोकसभा चुनाव आते-आते उसी मीडिया के सुर बदलने लगे। 2002 के दंगों को लेकर पिछले 12 सालों से हाथ-पांव धोकर नरेंद्र मोदी के पीछे पड़ी भारत की सबसे तेज मीडिया, मोदी रंग में रंगती चली गई। यकायक मीडिया ने मोदी के खिलाफ जहर उगलना बंद कर दिया और ‘तटस्थ’ खबरें दिखाने लगी। ब्रांड मोदी ने मीडिया को टीआरपी भी खूब दिलाई। बताने वाले ये भी कहते हैं कि कुछ बड़े उद्योगपतियों के माध्यम से कुछ बड़े मीडिया घरानों में पैसा लगवाया गया और विचारधारा विशेष के लिए काम कर रहे कुछ जहरीले पत्रकारों की छुट्टी का रास्ता साफ हुआ। दिल्ली के प्रेस क्लब में हल्के-हल्के सुरूर में कुछ खबरनवीस दिन के उजाले में ये कहते हुए दिख जाएंगे कि सभी सिद्धांतवादी, सत्यवादी और सुपर फास्ट न्यूज चैनलों ने मोदी को व्यापक कवरेज देने के एवज में भाजपा से ‘ठीकठाक’ दोहन भी किया। वह भी कुछ इस तरह कि पेड न्यूज का हंटर भी उनकी कमर पर न पड़े।

नारे जो जमकर चले
भाजपा के विजय अभियान में ‘अबकी बार मोदी सरकार’ ऐसा नारा रहा जो बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया। इस नारे को भ्रष्टाचार, अत्याचार, दुराचार, आम का अचार और न जाने किस-किस चीज के साथ जोड़कर लगाकर चलाया गया। ये नारा जमकर चला और ऐसा चला कि 16 मई को आए परिणामों में सच्चाई में तब्दील हो गया।

इसके अलावा जब मोदी समर्थकों ने वाराणसी में उनकी एक रैली में ‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी’ का नारा लगाया तो ये भी लोगों ने हाथों-हाथ लिया। भगवान शिव के ‘हर-हर महादेव’ के जयकारे से उधार लेकर बनाया गया ये नारा उस समय विवादों में घिर गया जब द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई। वैसे स्वामी स्वरूपानंद जी का कांग्रेस प्रेम और संघ से टकराहट जगजाहिर है, फिर भी खुद नरेंद्र मोदी को सामने आकर ये नारा न लगाने की अपील करनी पड़ी। 

इसके अलावा भाजपा के विज्ञापन ‘अच्छे दिन आने वाले हैं' की संगीतमय धुन इतनी सहज, कर्णप्रिय और उम्मीद जगाने वाली थी कि लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया। पर पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा ताने, उलाहने ‘अच्छे दिन’ को लेकर ही सुनने पड़ रहे हैं।

हर वक्त कुछ नया करने की फिराक में रहने वाले नरेंद्र मोदी ने भाजपा का एंथम भी लांच किया। इस इलेक्शन एंथम में उन्होंने खुद अभिनय किया और अपनी आवाज भी दी। ‘मैं देश नहीं झुकने दूंगा’ के शब्द लोगों के बीच उतने चर्चित तो नहीं हो पाए, फिर भी नरेंद्र मोदी ने खुद इस गीत में अपनी आवाज देकर लोगों तक अपना संदेश पहुंचा दिया।

कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी
‘कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना’ किसे कहते हैं ये 2014 के भाजपा के प्रचार अभियान में देखा जा सकता है। चुनाव आते-आते ये बात लगभग साफ हो चुकी थी कि देश में जबरदस्त कांग्रेस विरोधी माहौल है और सत्ता बदलनी तय है। लेकिन मोदी इस माहौल को पूर्ण बहुमत में तब्दील करना चाहते थे। पर भाजपा के चुनावी इतिहास को देखते हुए पूर्ण बहुमत एक सपने जैसा ही था। इसलिए मोदी ने चाय पे चर्चा करने से लेकर थ्री-डी रैली तक, सेल्फी से लेकर सोशल मीडिया तक, हाई प्रोफाइल मंच से लेकर एलसीडी स्क्रीन तक हर वो माध्यम अपनाया जो जन-जन तक उनकी आवाज को पहुंचाए और तब तक पहुंचाए जब तक लोगों को ये विश्वास न हो जाए कि अगला पीएम बनने लायक अगर देश में कोई है तो वो हैं नरेंद्र मोदी। मोदी के इस हाई-टेक प्रचार अभियान के सामने सारे विपक्षी दल बेहद बौने नजर आए। हालांकि इस हाई टेक प्रचार में हुए खर्च पर उंगलियां उठती रहीं हैं।

रंग लाया ‘एक बूथ-एक बोलेरो’
मोदी की रैलियों में जबरदस्त भीड़ जुटाने के लिए ‘एक बूथ-एक बोलेरो’ का फाॅर्मूला खूब रंग लाया। मोदी ने देश भर में तकरीबन 440 रैलियों को संबोधित किया। इसके लिए भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं को हर बूथ से कम से कम आठ लोगों को लाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इसी फाॅर्मूले के दम पर मोदी की रैलियों में जनसैलाब देखने को मिला। मोदी खुद भी पूरी तैयारी के साथ हर रैली में पहुंचते थे। वे अपने हर भाषण में स्थानीय लोगों के साथ रिश्ता जोड़ने का प्रयास करते थे, स्थानीय समस्याओं पर चर्चा करते थे, जो लोगों के मन पर असर डालता था। भाषण में उस क्षेत्र के महापुरुषों का जिक्र करना भी मोदी नहीं भूलते थे। इससे लोगों में यह संदेश जाता था कि बंदे को हमारी समस्याओं के बारे में पता है। हर क्षेत्र की रैली में मोदी इसी तरह जनभावनाओं को समझकर अपने भाषण का मसौदा तैयार करके माइक संभालते थे।

एनआरआई योगदान
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जिस अप्रवासी भारतीय समुदाय की प्रशंसा करते नहीं थकते, उस समुदाय का भी चुनाव मोदी के प्रचार में कुछ कम योगदान नहीं रहा। विदेशों में बैठे भाजपा के सिम्पैथाइजर्स की एक बड़ी फौज कामधाम छोड़कर भारत पहुंची हुई थी और चुनाव प्रचार में सहयोग कर रही थी। कुछ लोगों ने वाॅल्यूंटीयर्स के समूह बनाकर इंटरनेट पर सोशल मीडिया और वेबसाइट्स पर भाजपा के समर्थन में माहौल बना रखा था। सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थक अपने विरोधियों पर बहुत भारी पड़े। एनआरआई समुदाय ने भाजपा को चुनाव लड़ने के लिए चंदा भी जमकर दिया। यही सब कारण हैं कि पीएम मोदी अप्रवासी भारतीयों के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं और पीएम बनने के बाद उन्होंने अप्रवासी भारतीयों को नागरिकता और वीजा संबंधी बहुत सी सहूलियतें और रियायतें भी दी हैं। अप्रवासी भारतीयों में अपने देश के लिए कुछ करने की एक जबरदस्त भूख है। मोदी को अमेरिका द्वारा वीजा देने से इंकार करना अप्रवासी भारतीयों के बीच नाक का सवाल बन गया था। यही कारण है कि पीएम बनने के बाद मोदी के पहले अमरीकी दौरे पर अप्रवासी भारतीयों ने उनका एक हीरो की तरह स्वागत किया और मैडिसन स्क्वायर में एक अभूतपूर्व कार्यक्रम का आयोजन किया।
(To be continued...)

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