मंगलवार, 2 जुलाई 2024

निर्माण कार्यों की गुणवत्ता जांचने आया मानसून और कर्नल बड़ोग का स्वाभिमान


इस वर्ष मानसून की शुरुआत के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में पुलों, हवाई अड्डों और राजमार्गों के धंसने की खबरें सुर्खियां बटोरने लगी हैं। हाल ही में देश ने जब स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाया है, तब निर्माण कार्यों की संदेहास्पद गुणवत्ता आधुनिक डिग्री धारक इंजीनियर्स और निर्माण कार्य से जुड़े संस्थानों के लिए निश्चित रूप से गहन चिंता का विषय है। 

जिस ब्रिटिश शासन से हमने स्वतंत्रता प्राप्त की, उसके माथे पर भले ही अनेक संगीन आरोप हों, लेकिन उनके निर्माण कार्य आज भी अपनी गुणवत्ता की तस्दीक कर रहे हैं। नई दिल्ली का निर्माण हो या भारतीय रेल व्यवस्था की आधारशिला, यह सब कार्य अंग्रेजों ने भले ही अपने स्वार्थ के लिए किये, लेकिन उनके कार्य पर आज भी कोई संदेह नहीं करता। एक ही बारिश में धराशायी हो जाने वाले कागजी निर्माण करने वाले आधुनिक समय के काबिल इंजीनियर्स के लिए पुराने निर्माण कार्य निश्चित रूप से एक नज़ीर हैं। 

जब भी अखबारों में खराब निर्माण कार्य से जुड़ी खबरें प्रकाशित होती हैं, तब सहसा कर्नल बड़ोग (बरोग) का नाम सहसा ध्यान में आता है। वे ऐसा ही एक उदाहरण हैं, जिससे अपने काम के प्रति समर्पण, ईमानदारी और जिम्मेदारी का भाव सीखा जा सकता है। 

जब 20वीं सदी में जब कालका- शिमला रेलवे लाइन बिछाने का कार्य चल रहा था, तब पहाड़ी काटकर बड़ोग सुरंग (क्रमांक 33) बनाने का कार्य ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल बड़ोग के पास था। उस जमाने में कालका- शिमला के बीच पहाड़ों को काटकर 100 से अधिक सुरंगें बनाना अपने आप में एक विलक्षण कार्य था। बरोग सुरंग कर्नल बड़ोग के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गई। सुरंग बनाने के लिए कर्नल बड़ोग ने सबसे पहले पहाड़ का निरीक्षण किया। सुरंग बनाने के लिए दोनों छोर पर निशान लगाने के बाद मजदूरों को खोदने का ऑर्डर दिए। मजदूर दोनों छोर से एकसाथ खुदाई करने लगे। कर्नल बड़ोग इस बात से आश्वस्त थे कि खुदाई के दौरान दोनों सुरंगें बीच में आकर मिल जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंग्रेजी हुकूमत को यह पैसे की बर्बादी लगी और उन्होंने कर्नल बड़ोग पर एक रुपया जुर्माना लगा दिया। बड़ोग इस कार्रवाई से बहुत आहत हुए और उनके आत्मसम्मान को गहरी ठेस लगी। एक दिन वह अपने कुत्ते को लेकर सुबह टहलने निकले व सुरंग के नजदीक ही खुद को गोली मार ली। बड़ोग को वर्तमान सुरंग के पास ही दफनाया गया है। आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं, लेकिन यह कहानी उस इंजीनियर के स्वाभिमान की है। बाद में एक स्थानीय निवासी बाबा भलकू ने उस सुरंग को पूरा करने में मदद की थी, जिनके दिशा-निर्देशन में एक नई सुरंग बनाई गई। ब्रिटिश सरकार ने नई सुरंग का नाम इंजीनियर कर्नल बड़ोग के नाम पर ही रखा। यह इस मार्ग पर सबसे लंबी सुरंग है।

अपने कार्य के प्रति निष्ठा और समर्पण का कर्नल बड़ोग जैसा भाव ही ऐतिहासिक और पीढ़ियों तक चलने वाले निर्माण की नींव रखते हैं। वर्तमान भारत में निर्माण कार्यों से जुड़ी एजेंसियों और  अधिकारियों को यह कहानी नियमित पढ़ानी चाहिए, शायद कभी उनके अंदर अंतःप्रेरणा जागृत हो, ताकि एक मजबूत देश का निर्माण बन सके। हर विफलता का आरोप राजनीति पर लगा देना सबसे आसान मार्ग है। किसी भी तरह की राजनीति आपको तब तक मजबूर नहीं कर सकती, जब तक कमजोरी आपके स्वयं के अंदर न हो। कहीं न कहीं आपने भी बहती नदी में हाथ धोए होंगे, तब जाकर ये पुल धराशायी हुए होंगे।


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