खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या सतही तौर पर भले बहुत गंभीर नहीं दिखती हो, लेकिन मिलावटखोरी का बाजार देश में गहराई तक फैला हुआ है। धन कमाने की दौड़ इस कदर आंख मूंद ली गई हैं कि बच्चों के दूध और आइस्क्रीम को भी नहीं बख्शा गया है। यह समस्या न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, बल्कि इसके सामाजिक दुष्परिणाम भी नजर आने लगे हैं।
भारतीय मसालों पर लगा प्रतिबंध
हाल ही में भारतीय मसालों के ब्रांडों पर कई देशों में प्रतिबंध लगाया गया है। इनमें मिले हानिकारक रसायनों की वजह से कुछ देशों ने यह कदम उठाया। बताया जा रहा है कि इन मसालों में एथलीन ऑक्साइड मिला है, जो कैंसरकारक होता है। एमडीएच और एवरेस्ट जैसे ब्रांड के मसाले दशकों से भारतीय रसोइयों में बड़े विश्वास से प्रयोग किये जाते रहे हैं। लेकिन इन प्रतिबंधों के बाद नामी कंपनियों के प्रति विश्वास कमजोर हुआ है। अपने पेड पीआर के माध्यम से ऐसी कंपनियां अपने कारनामों पर कितना भी पर्दा डालें, लेकिन इन्होंने न केवल अपने उपभोक्ताओं का विश्वास खोया है, बल्कि विदेश में भी भारत की छवि खराब की है।
मिलावट का व्यापक असर
इसी प्रकार पनीर, दूध, घी और मिठाइयों में भी भारी मिलावट की खबरें भी लगातार आती रहती हैं। थोड़ी लागत से मोटा पैसा बनाने की फिराक में मिलावट का यह बाजार छोटे-छोटे शहरों और गांव तक तक फैल चुका नजर आता है। सब्जियों में भी खरनाक रसायन पाए जा रहे हैं। खाद्य तेलों में भी यह समस्या गंभीर रूप से देखी जा सकती है। इसके अलावा पैकेट बंद खाद्यपदार्थों की एक अलग दुनिया है, जो महीनों तक खराब ही नहीं होते। ऐसे कौन से कारक उनमें प्रयोग किये जाते हैं, जो उन्हें महीनों तक प्रयोग करने योग्य बनाए रखते हैं। इन सब परिस्थितियों में आम जन के स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्परिणामों के बारे में आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।
खाद्य मिलावट से जुड़े आंकड़े
मिलावट के संदर्भ में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के आंकड़े डराने वाले हैं। एक संसदीय प्रश्न के उत्तर केन्द्रीय उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री द्वारा ये आंकड़े संसद के पटल पर रखे गए। इन आंकड़ों की मानें तो एफएसएसएआई द्वारा जांचे गए खाद्य पदार्थों में 20 से 25 प्रतिशत सैंपल मानकों पर खरे नहीं उतरे। गौर करने वाली बात यह है कि अनेक मामलों में सजा भी हुई, लेकिन 6 माह जैसी मामूली सजा ऐसे अपराध के लिए कम प्रतीत होती है, जिसके साथ देश का स्वास्थ्य जुड़ा हो। देश में तेजी से बढ़ रहीं कैंसर, डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, और दिल की बीमारियों के मामलों के पीछे मिलावटी खाद्य पदार्थ भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
Year |
No. of Samples Analysed |
No. of Samples found non-conforming |
Civil Cases |
Criminal Cases |
|||
No. of Cases launched |
No. of Convictions |
No.
of Cases Launched |
No.
of Convictions |
|
|||
2018-19 |
1,06,459 |
30,415 |
18,550 |
12,734 |
2,813 |
701 |
|
2019-20 |
1,18,775 |
29,589 |
27,412 |
17,345 |
4681 |
780 |
|
2020-21 |
1,07,829 |
28347 |
24,195 |
14,817 |
3869 |
506 |
|
2021-22 |
1,44,345 |
32,934 |
28,906 |
19,437 |
4,946 |
671 |
|
2022-23 |
1,72,687 |
44,421 |
38,053 |
27,053 |
4,817 |
1133 |
|
एक स्वस्थ समाज की दिशा
इस समस्या के समाधान के लिए अत्यंत जनजागरण की आवश्यकता है। पैकेट बंद खाद्य पदार्थों पर तेजी से बढ़ रही निर्भरता पर स्व-नियंत्रण करना होगा। बाजार के खाद्य पदार्थों पर आंख मूंदकर विश्वास करने की प्रवृत्ति बदलनी होगी। सदैव यह ध्यान रहे कि बाजार मुनाफे के लिए बना है, परोपकार के लिए नहीं और मुनाफा बढ़ाने के लिए बाजार में बैठी शक्तियां किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहती हैं।
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