गुरुवार, 17 मार्च 2011

बाबा रामदेव की हुंकार!!!!!

  २७ फरवरी को बाबा रामदेव के नेतृत्व में दिल्ली के रामलीला मैदान में भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के बैनर तले भ्रष्टाचार के खिलाफ आयोजित विशाल रैली देश की राजनीति को कई संदेश दे गई। विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों और मतों के लोग एक मंच पर थे और देश की नाकारा राजनीति को एक चेतावनी दे रहे थे। सभी राजनीतिक पार्टियों में खलबली है। सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी इसलिए डर रही है क्योंकि बिगुल भ्रष्टाचार के खिलाफ बजाया गया है और विपक्षी भाजपा इसलिए डर रही है कि बाबा ने सही मायने में धर्म को राजनीति से जोड़ दिया है। लोगों को लगने लगा है कि अब बातों और नारों की राजनीति नहीं होगी बल्कि धरातल की राजनीति का समय आ गया है। रामलीला मैदान का वो दृश्य देश की आवाम में आशा की किरण जगाने वाला था।

मेंढकों को तौल दिया
यूं तो भारत स्वाभिमान ट्रस्ट बाबा रामदेव के नेतृत्व में पिछले एक वर्ष से भारत स्वाभिमान यात्रा पर निकला हुआ था। दिल्ली के रामलीला मैदान में इस यात्रा की पूर्णाहुति थी। रामलीला मैदान के उस विशाल मंच से दिन तमाम समाजसेवी, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, कूटनीतिज्ञ और विभिन्न धर्मों के संतों ने संबोधित किया। ये वे लोग थे जिनको एकसाथ एक मंच पर लाना नामुमकिन था। अपने-अपने क्षेत्र में अपनी-अपनी तरह से सुधार के प्रयास कर रहे ये लोग शायद ही कभी एकसाथ आए हों। ये एक तरह से छोटी-छोटी नदियों द्वारा एक स्थान पर संगम होकर सागर रूप था। दरअसल अच्छाई के लिए अच्छा काम कर रहे लोगों और उनके संगठनों में एक बुराई आमतौर पर पाई जाती है और वह है- ''ईगो प्रॉब्लम''। अच्छे लोगों के अहम इस कदर टकराते हैं कि उनको एकसाथ जोड़ना नामुमकिन जैसा ही है। कहीं निजि हित आड े आते हैं तो कहीं मान-सम्मान। यही कारण है कि देश में सुधार के प्रयास तो हमेशा से ही किए जा रहे थे, लेकिन वे बिखरे हुए थे। लेकिन देश के हालातों से ईमानदार और सज्जन व्यक्ति त्रस्त है और था। सबके मन में एक चाह समान रूप से हिलोरे ले रही है कि देश की सूरत सुधरनी चाहिए। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट ने देश में सुधार के लिए काम कर रहे तमाम संगठनों और उनके नेताओं को एक मंच पर बुलाकर मेंढकों को तौलने जैसा काम किया है, जो अब से पहले कभी नहीं हुआ था। ये बाबा रामदेव के विनम्र प्रयासों का ही नतीजा था कि आर्यसमाज के स्वामी अग्निवेश और गांधीवादी अन्ना हजारे के साथ-साथ तमाम ऐसी विभूतियां रामलीला मैदान में जुटीं जो अलग-अलग क्षेत्रों में सुधार के लिए अलग-अलग प्रयास कर रही हैं। उनमें भारत स्वाभिमान आंदोलन के अगुआ और पूर्व भाजपा नेता केएन गोविंदाचार्य, प्रखयात अधिवक्ता रामजेठमलानी, किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, विजय कौशल जी महाराज, सुब्रमण्यम स्वामी, मौलाना मकसूद हसन, विश्वबंधु गुप्ता, कवि गजेंद्र सोलंकी और हरिओम पंवार जैसे लोग शामिल थे।
 
प्रचीन शासन व्यवस्था
भारत की प्रचीन शासन व्यवस्था ऐसी ही थी जिसमें शासक संतों और मुनियों से मार्गदर्शन में प्रजापालन का कार्य करते थे। राम और वशिष्ठ से लेकर चंद्रगुप्त और चाणक्य तक सभी सफल शासन व्यवस्थाओं में संतों के मार्गदर्शन ने न्यायपूर्ण और खुशहाल प्रजापालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन हमने भारत में भारतीय दर्शन पर आधारित शासन व्यवस्था न अपनाकर विदेश से आयातित शासन व्यवस्था को अपनाया। हमने वो नहीं अपनाया जो हमारे लिए उपयुक्त था, बल्कि हमने वो अपनाया जो दूसरों के लिए उपयुक्त था। आजादी के ६५ साल बाद आज इसका परिणाम हमारे सामने है। देश में व्याप्त बुराइयों और समस्याओं का जिक्र करने की जरूरत नहीं है। आम लोगों का पैसा पिछले ६५ सालों से भ्रष्टाचार की बेदी पर बदस्तूर चढ़ रहा है। सबसे बड े लोकतंत्र में लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है। चोट्‌टों की फौज खड ी है उनमें से या तो उनको उसे चुनना है जो कम चोर है या फिर उसे चुनना है जो उनकी जाति और धर्म की बात करता है। २१वीं सदी में भी हम जाति और धर्म के आधार पर वोट डाल रहे हैं। आज ऐसा कोई नहीं जो देश की बात करे, जो भारत की बात करे। कोई मराठों की बात करता है, कोई तमिलों की, कोई बंगालियों तो कोई तेलंगाना की, कोई दलितों की बात करता है तो कोई ओबीसी। भारत और भारतीयों की बात करने वाला कोई नहीं। अंग्रेजों की डिवाईड एंड रूल का सिद्धांत जस का तस चला आ रहा है।
 
धार्मिक राजनीति बनाम राजनीतिक धर्म
कुछ राजनीतिज्ञ कह रहे हैं कि बाबाओं का राजनीति में आना ठीक नहीं है। जबकि प्राचीन भारतीय राज व्यवस्था के हिसाब से संतों ने सदा सत्ता का मार्गदर्शन किया। संतों का मार्गदर्शन इसलिए सर्वोच्च और सर्वमान्य था क्योंकि वे बिना किसी स्वार्थ और बिना किसी निजि हित को ध्यान में रखे प्रजा की भलाई के निर्देश देते थे। बाबा रामदेव ने अपना सफर समाज में योग की चिंगारी से किया, जो आज पूरे देश में ज्वाला बनकर जल रही है। गली मोहल्लों के पार्कों में लोग सुबह-सुबह योग करते दिख रहे हैं, स्कूलों ने योग की क्लास को अनिवार्य किया है। ये बाबा रामदेव ही थे जिन्होंने दवा कंपनियों के मकड़जाल से लोगों को छुड ाने के लिए देश को ''दवा मुक्त भारत'' का सपना दिखाया। जो लोग ये मानकर चलते थे कि दवा जीवन का अभिन्न अंग है उनको ये विश्वास दिलाया कि जीवन शैली बदलो और जीवनभर बिना दवा खाए जियो। लोगों ने अपने जीवन में उतारा और सीधा-सीधा लाभ उठाया। बाबा रामदेव ने अब भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना लोगों को दिखाया है। ये कोई धार्मिक उन्माद नहीं है। ये कोई धर्म की राजनीति नहीं है। उनको सभी धर्मों के लोगों को समर्थन प्राप्त है। उन्होंने किसी एक धर्म को दूसरे धर्म के प्रति उकसाया नहीं है। वे सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। यही कारण है कि धुर-विरोधी संगठन भी एक साथ उनके संग बैठे हैं। उनके साथ ब्यूरोक्रेसी भी है और टेक्नोक्रेसी भी, उनके साथ संत भी हैं और उनका सपना है अखंड भारत, संपन्न भारत और स्वस्थ भारत। और क्योंकि इस सपने को पूरा करने के लिए पॉवर सेंटर्स को हाथ में लेना जरूरी है इसलिए चुनाव लड ना एक मजबूरी है। लोगों को भारत स्वाभिमान से एक बड ी उम्मीद जगी है। भ्रष्ट पार्टियों की फौज में उनको अब एक विकल्प नजर आने लगा है। जो जाति और क्षेत्र की घटिया राजनीति नहीं करता।
 
लोकपाल और भ्रष्टाचार
पूरी रैली के दौरान भ्रष्टाचार और विदेश में जमा काले धन को वापस लाने का मुद्‌दा छाया रहा। भ्रष्टाचारियों की नाक में नकेल डालने के लिए ''इंडिया अगेंस्ट करप्शन'' द्वारा तैयार किया गया लोकपाल विधेयक पारित कराने के लिए भी पुरजोर मांग उठाई गई। हमारा सिस्टम ही कुछ ऐसा है कि आम जनता का करोड़ों डकारने के बावजूद भ्रष्ट लोग इस देश में खुले सांड की तरह पूरी ऐश से घूमते हैं। उनका बाल भी बांका नहीं होता। जबकि छोटा सा ट्रैफिक रूल तोड ने पर आम आदमी की हडि्‌डयां तक तोड दी जाती हैं। इस विधेयक का प्रारूप कुछ ऐसा है कि अगर ये पारित हुआ तो भ्रष्टाचारियों की नींद उड जाएगी। कोई भी भ्रष्ट आचरण करने से पहले सौ बार सोचेगा। इस विधेयक को पारित कराने के लिए गांधीवादी अन्ना हजारे ने अप्रैल के प्रथम सप्ताह में ''अनशन'' पर जाने की घोषणा की है। अगर भारत सरकार नहीं चेती तो वे आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे। आजादी के ६५ सालों में से ५५ साल तक केंद्र में एक ही पार्टी का राज रहा है। ये वही पार्टी है जिसके साथ महात्मा गांधी के सपने जुड े थे। लेकिन सत्ता महारानी मिलते ही गांधी के अनुयाइयों ने गांधी के विचारों का बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी। उन्होंने विश्व को दिखाने के लिए गांधी का मुखौटा लगा लिया। गांधी को ५०० के नोट पर चस्पा कर दिया, भाषण में बोलने के लिए गांधी की उक्तियां रट लीं, लेकिन गांधी के विचारों को न तो अपने जीवन में उतारा और न शासन व्यवस्था में। लोग यहां तक त्रस्त हैं कि ये भी कह दिया जाता है कि इससे तो हम गुलाम ही अच्छे थे। इससे दुखद स्थिति कुछ नहीं हो सकती।
 
अनुयायियों पर है जिम्मेदारी
बाबा रामदेव देश के लिए जो सपना लेकर चल रहे हैं, उसको पूरा करने में भारत स्वाभिमान ट्रस्ट और उनके अनुयायियों पर महत्वपूर्ण भूमिका है। जो शुद्ध भावना बाबा रामदेव लेकर चल रहे हैं, वही शुद्ध भाव उनके अनुयायियों को भी अपनाना होगा। अगर यहां भी पद का लोभ और चुनावी टिकट की लालसा हिलोरें मारने लगी तो यहां भी हाल वही होगा जो गांधी और कांग्रेस का हुआ। सभी के समक्ष केवल एक ध्येय होना चाहिए कि ''राष्ट्र प्रथम बाद में हम''। किसी भी महान विचार को सबसे ज्यादा नुकसान उसके विरोधी नहीं बल्कि उसके अनुयायी पहुंचाते हैं। चाहे वह गांधी का विचार हो या संघ का विचार। गांधी की कांग्रेस ने सत्ता मिलते ही गांधी के जीवन और उनके विचार को छोड़ दिया। भाजपा ने भी सत्ता मिलते ही संघ के भारतीय मॉडल को भुला दिया और फाइव स्टार कल्चर अपना लिया। सात साल के अंदर ही भाजपा घुटनों पर आ गई। अब वही भारतीय विचार बाबा रामदेव लेकर आए हैं। उनके लाखों-करोड ों अनुयायी हैं, लेकिन देखना ये होगा कि जब सही समय आएगा तब वे बाबा रामदेव के विचारों का खयाल रखते हैं कि नहीं।

एकला चलो
भारत स्वाभिमान को बस इतना खयाल रखना है कि किसी भी राजनीतिक दल से हाथ नहीं मिलाना है। क्योंकि सब के सब चोर हैं। कोई ज्यादा चोर है तो कोई कम चोर है और सबके सब घबराए हुए हैं। उनकी कोशिश भी रहेगी, कि भारत स्वाभिमान के साथ हाथ मिला लिया जाए। अगर देश को लूटने वाले इन दलों के साथ भारत स्वाभिमान ने हाथ मिला लिया गया तो फिर कोई फर्क नहीं रह जाएगा। केवल गुरुदेव की ''एकला चलो'' की नीति अपनानी होगी।

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