रविवार, 27 मार्च 2011

देश में बदलाव का बिगुल फूंकेगा अन्ना हजारे का ये सत्याग्रह

बन्दे में है दम.. वन्दे मातरम !
ये संधि काल चल रहा है. यानि परिवर्तन का समय. एक ऐसा समय जब भारत में एक बड़ा और सकारात्मक परिवर्तन होने की उम्मीद है. ये उम्मीद यूँ ही नहीं जगी है. इसके पीछे कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारण हैं. आगामी वर्ष २०१२ को लेकर तरह-तरह के कयास पहले से ही लगाये जाते रहे हैं. कोई इसको विनाश का वर्ष बताता है तो किसी के लिए ये वर्ष आशाओं वाला है. लेकिन इतना तो तय है कि परिवर्तन अवश्यम्भावी है. स्वामी विवेकानंद ने भी २०१२ को भारत की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बताया था. अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक श्री राम शर्मा आचार्य ने भी अपने साहित्य में जगह जगह इशारा किया है कि २०११-१२ महत्त्वपूर्ण वर्ष होंगे. इस वर्ष उनकी जन्म शताब्दी भी मनाई जा रही है. गायत्री परिवार के समस्त अनुयायियों का दृढ विश्वास है कि गुरु जी का जन्म शताब्दी वर्ष देश और समाज के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है और आशा की किरण जगाने वाला है.

अगर प्रत्यक्ष तौर पर भी देखा जाए तो हर ओर बदलाव की चाह भी स्पष्ट दिख रही है. वो शहरयार की पंक्तियाँ हैं न "सीने में जलन आँखों में तूफां सा क्यों है , इस शहर में हर शख्स परेशां से क्यों है". आज देश का हर खासो-आम परेशान हो चुका है. ६३ साल की आज़ादी उसको कुछ खास दे नहीं पायी है, अब वो फिर से बदलाव चाहता है. ऐसी राजनीति का विकल्प चाहता है जो इस देश के लिए अंग्रेजों से भी ज्यादा घातक सिद्ध हुयी. बदलाव के लक्षण दिखने शुरू हो गए हैं. राजनितिक पार्टियों के सम्मेलनों में लगातार घटती भीड़ बताती है कि लोगों का विश्वास उठ चुका है. बड़े से बड़े नेता की रैली में संख्या बढ़ाने के लिए अब किराये की भीड़ जुटाई जा रही है. लोग नेताओं को मुंह पर गाली बक रहे हैं और उनका स्वागत जूतों से करने लगे हैं. मीडिया और कोर्ट के सक्रिय हो जाने से अब भ्रष्ट तंत्र में कुछ भी छिपा नहीं रह गया है. भ्रष्टाचारियों को सजा भले ही न मिल पा रही हो लेकिन इस देश की आवाम भली-भांति समझ गयी है कि हमाम में सब नंगे हैं.

ये एक सकारात्मक बदलाव की चाह ही है कि लोग अब एकत्र हो रहे हैं. तमाम सामाजिक व धार्मिक संगठन एक साथ आने शुरू हो गए हैं. इन धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने अपनी-अपनी सात्विकता और शक्ति के अहम् में सालों तक अपनी एनर्जी एक-दूसरे की निंदा और टांग खिंचाई में लगायी. लेकिन उनको हासिल कुछ नहीं हुआ. अब सबको समझ आ रहा है कि अकेले बात बनने वाली नहीं है. अगर देश के लिए सचमुच कुछ करना है तो एकजुट होना ही पड़ेगा. भारत की दृष्टि से ये एक सकारात्मक बदलाव की किरण है. भ्रष्ट तंत्र इतना शक्तिशाली हो चुका है कि उसका मुकाबला मिलकर ही किया जा सकता है. देश में बदलाव देखने की चाह लोगों में किस तरह विद्यमान है इसका एक उदाहरण मुझे जनवरी में देखने को मिला. हरिद्वार में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय योग कांफ्रेंस में मेरी भारतीय मूल के अमरीकी व्यवसायी ब्रह्म रत्न अग्रवाल जी से एक संक्षिप्त मुलाकात हुयी. भारत में सुधर के लिए जितने में संगठन सच्चे मन से समाज सेवा के कार्य में जुटे हैं ब्रह्म अग्रवाल जी अपनी फ़ौंडेशन की ओर से तरीबन सभी को आर्थिक सहायता देते हैं. पतंजलि में आयोजित उस कांफ्रेंस में भी ब्रह्म जी ने बाबा राम देव द्वारा चलाये जा रहे कार्यों में मदद के लिए एक करोड़ रूपए देने की घोषणा की. भारत से सात समंदर दूर बैठे लोग भी चाहते हैं कि भारत में बदलाव आये. सबके मन में तीव्र उत्कंठा है कि भारत विश्व गुरु बने, उसका परचम विश्व में सबसे ऊंचा लहराए. लेकिन लोगों की उम्म्दें लगातार भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ती जा रही हैं.

इस भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ने के लिए अस्तित्व में आया एक और संगठन "इंडिया अगेंस्ट करप्शन" भी पूरी तन्यमयता के साथ सामने आया है. भ्रष्टाचारियों को उनके सही स्थान तक पहुँचाने के लिए इस संगठन ने "जन लोकपाल बिल" का मसौदा तैयार किया. संगठन की मांग है कि देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए इस बिल को पारित किया जाए. लेकिन भारत सरकार की हवा खिसकी हुयी है. भ्रष्टाचारियों की पनाहगार बन चुकी संसद से वैसे ये उम्मीद करनी भी नहीं चाहिए कि वो ये बिल वर्तमान रूप में पारित भी करेगी, क्योंकि बिल में भ्रष्टाचार के खिलाफ बेहद कड़े प्रावधान हैं. लेकिन फिर भी अगर इस देश की जनता थान ले तो ये बिल पास हो भी सकता है. इसी मुद्दे को लेकर विख्यात गांधीवादी "अन्ना हजारे" आगामी ५ अप्रैल से जंतर मंतर पर अनिश्चितकाल के लिए भूख हड़ताल पर बैठकर सत्याग्रह करने जा रहे हैं. ७८ साल के अन्ना जन लोकपाल बिल पारित कराने के लिए इस उम्र में ये हिम्मत दिखा रहे हैं. ये उनकी अपनी लड़ाई नहीं हैं, न ही इससे उनके परिवार को कोई लाभ होने वाला है क्योंकि उनका अपना तो कोई परिवार ही नहीं है. वो पूरे देश को अपना परिवार मानते हैं और देश के लिए ही वो अपनी जान खतरे में डालने जा रहे हैं. अन्ना का साथ देने के लिए देश के कोने-कोने से लोग और संगठन जुटते नज़र आ रहे हैं. अन्ना का ये सत्याग्रह देश में बदलाव का बिगुल बजाने जा रहा है. उनके सत्याग्रह से सरकार के कान पर अगर जूं रेंगती है तो ये देश के आवाम की सबसे बड़ी जीत होगी.

1 टिप्पणी:

  1. देश में जब तक लोक पाल विधेयक पारित नहीं किया जाएगा, भ्रष्‍टाचार पर अंकुश लगाना नामुमकिन है। मैंने यह बात आज से 12 वर्ष पूर्व उठायी थी और अपने ब्‍लाग पर भी हमेशा इसी बात को लिखती रही हूँ। अच्‍छा है किसी एक को तो समझ आया इस विधेयक की बात।

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कर्म फल

बहुत खुश हो रहा वो, यूरिया वाला दूध तैयार कर कम लागत से बना माल बेचेगा ऊंचे दाम में जेब भर बहुत संतुष्ट है वो, कि उसके बच्चों को यह नहीं पीन...