जो काम गांधी न कर पाए, जो काम संघ न कर पाया, अब वही काम बाबा रामदेव ने अपने हाथ में लिया है। देश को सही दिशा देने के लिए सत्ता का एक केंद्र स्थापित किया जाए और फिर उस केंद्र को पीछे से मार्गदर्शित किया जाए। एक राजनीतिक संगठन के पीछे नैतिक और चारित्रिक रूप से शक्तिशाली संगठन का मार्गदर्शन ताकि देश का सर्वांगीण विकास हो सके। महात्मा गांधी ने भी ये कोशिश की थी कि वे बिना किसी पद पर बैठे कांग्रेस को पीछे से मार्गदर्शित करते रहेंगे और कांग्रेस उनके सपनों का भारत खड ा करेगी। लेकिन सत्ता के दिन नजदीक आते-आते उनके चेलों में ऐसा झगड ा शुरू हुआ कि देश का बंटवारा और बंटाधार दोनों एक साथ हो गया। आजादी मिलने के बाद नेहरू ने गांधी की एक न मानी और अपने हिसाब से देश का विकास करना शुरू कर दिया। शहरों को विकास का केंद्र बना दिया गया और गांवों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। परिणाम स्वरूप शहर और गांव के बीच का फासला बढ ता चला गया। गांधी जो चाहते थे वो उनकी किताबों तक ही सीमित होकर रह गया। कांग्रेस ने गांधी का मुखौटा जरूर लगाया, लेकिन न तो गांधी को अपनाया और न उनकी मानी। बंटवारे के बाद मिली आजादी से गांधी इतने ज्यादा खिन्न थे कि उन्होंने १५ अगस्त १९४७ को आजादी जलसे में शामिल होना भी मुनासिब नहीं समझा। गांधी अच्छी तरह जान गए थे कि कांग्रेस भटक गई है। आजादी के बाद गांधी तकरीबन डेढ साल जीवित रहे, लेकिन इस दौरान उन्होंने देश की शासन व्यवस्था में कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई।
संघ और भाजपा
आरएसएस भी एक नैतिक और चारित्रिक संगठन के रूप में ही काम करना चाहता था, लेकिन पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने संघ को इस बात के लिए राजी कर लिया कि देश को सही दिशा और दशा प्रदान करने के लिए राजनीति में उतरना जरूरी है। और आरएसएस ने अपना पॉलिटिकल विंग खड़ा करने का रास्ता साफ कर दिया। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की पहली सरकार कम ही दिन रही पर उसने कई ठोस और नए कदम उठाए। लेकिन बाद में ये सरकार भी इंदिरा गांधी के बिछाए जाल में फंसकर पद लोलुपता की भेंट चढ गई। बाद में १९९८ में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार सात साल तक गठबंधन धर्म का रोना रोती रही और संघ के दिशानिर्देशों की अवहेलना करती रही। माना कि राम मंदिर का मुद्दा विवादित था, लेकिन भाजपा ने स्वदेशी से लेकर धारा ३७० और समान नागरिक कोड सबको भुला दिया। लोगों को भाजपा सरकार नई बोतल में पुरानी शराब की तरह लगनी शुरू हो गई। देश का आर्थिक विकास तो हुआ, लेकिन उसका मॉडल विदेशी की था। उसमें भारतीयता की बू कहीं नहीं थी। अगर एक परमाणु परीक्षण को छोड दिया जाए तो पूरे कार्यकाल के दौरान एक भी ठोस कदम नहीं उठाया गया। प्रधानमंत्री वाजपेयी के दिल में उमड ी नोबल पुरस्कार की चाह ने उन्हें बार-बार पाकिस्तान के सामने मजबूर किया। पार्टी के दिग्गज नेताओं का अहंकार इतना बढ ा कि उन्होंने आम जनता से कुछ ज्यादा ही दूरी बना ली। कांग्रेस से भी ज्यादा। जिस पॉलिटिकल विंग को खड ा करते वक्त संघ ने तरह-तरह के सपने संजोए थे, उसका वही संगठन उसको आंखें तरेरने लगा। हश्र सबके सामने है कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू बनकर रह गए हैं। भाजपा के दामन में भ्रष्टाचार के दाग भले ही न हों पर दोनों ही दलों में पद की लोलुपता सिर चढ कर बोल रही है।
अब बाबा रामदेव
बाबा रामदेव भी अब इस पथ पर कदम बढ़ा रहे हैं। प्राचीन भारतीय राज व्यवस्था ऐसी ही थी, जहां संतों के मार्गदर्शन में राजा शासन किया करते थे। संत ऐसे सलाहकार की भूमिका निभाते थे, जो निःस्वार्थ भाव से प्रजा के हित में सलाह देते थे और उनकी राय सर्वोपरि होती थी। आज की सरकारें जितने भी सलाहकार नियुक्त करती हैं वे सभी पद और पैसे की चाह में हवा का रुख देखकर सलाह देते हैं। कोई सही सलाह देता भी है तो उसकी एक नहीं सुनी जाती। वर्तमान में सभी सरकारी सलाहकार महज शो-पीस मात्र बनकर रह गए हैं। बाबा रामदेव भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के माध्यम से यही चाहते हैं कि एक ऐसी राजनीतिक शक्ति का सृजन हो जो देश को संतों और समाजसेवियों के मार्गदर्शन में आगे ले जाए। जो उच्च स्तर के नैतिक मूल्यों की स्थापना करे, जो देश को लूटने और बांटने के बजाए पूरी ईमानदारी के साथ जोड े। इतना तो तय है कि बाबा खुद चुनाव नहीं लड ेंगे। लेकिन भारत स्वाभिमान के अंतर्गत उनके नुमाइंदे चुनावी दंगल में उतरेंगे और भ्रष्टाचारियों से मुकाबला करेंगे। देखना यही होगा कि २०१४ में जब बाबा की पार्टी मैदान में आएगी तो क्या गुल खिलाएगी। इससे पहले बाबा जय गुरुदेव भी एक पॉलिटिकल एक्सपेरिमेंट कर चुके हैं जो विफल रहा। हालांकि बाबा रामदेव का ये प्रयोग एकदम अलग किस्म का है और उम्मीद जगाने वाला है। उनके साथ हर वर्ग, हर जाति और हर धर्म के लोग जुड े हुए हैं। और फिलहाल सब जोश से भरे दिख रहे हैं। सत्ता हासिल करने तक ये जोश ठंडा भी नहीं होने वाला।
राजीव दीक्षित का नुकसान
राजीव दीक्षित के रूप में बाबा रामदेव को एक कुशल वक्ता और तेजस्वी व्यक्तित्व मिला था, जिसे काल ने असमय छीन लिया। उनके भाषण में एक अजीब सा सम्मोहन था। उनकी आवाज में गजब का आकर्षण था। तथ्यों की जानकारी ऐसी थी कि कंप्यूटर को भी मात दे दे। विषयों की पड़ताल ऐसी थी कि विशेषज्ञों से पानी भरवा ले। ये राजीव दीक्षित की कार्य कुशलता और नेतृत्व कुशलता ही थी कि उन्हें लोग भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देखने लगे थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। भारत स्वाभिमान यात्रा के दौरान ३० नवंबर को अचानक आए हार्ट अटैक ने बाबा रामदेव से उनका ये सिपेहसालार छीन लिया। ये बाबा रामदेव के लिए बहुत बड ा झटका था। भारत स्वाभिमान का सबसे मजबूत स्तंभ भरभराकर गिर गया। लेकिन बाबा ने हार नहीं मानी और न ही यात्रा को वापस लिया। भारत स्वाभिमान यात्रा यथावत चलती रही और २७ फरवरी को दिल्ली के रामलीला ग्राउंड में एक विशाल रैली करने के बाद राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपने के साथ संपन्न हुई। उस दिन भारत स्वाभिमान ट्रस्ट ने सत्ताधीशों को अपनी ताकत का अंदाजा भी करा दिया। अब भारत स्वाभिमान ट्रस्ट को राजीव दीक्षित के बिना राजनीतिक मोर्चा संभालना होगा।
हरिद्वार बना आध्यात्मिक राजधानी
जैसे मुंबई को भारत की कमर्शियल कैपिटल कहा जाता है, उसी तरह हरिद्वार आज भारत की स्प्रिचुअल कैपिटल कहलाए जाने योग्य है। पतंजलि योग पीठ, गायत्री शक्ति पीठ और गुरुकुल कांगड़ी सरीखे शक्तिशाली आध्यात्मिक संगठनों की बदौलत इस नगरी से आध्यात्म की बयार निकलकर न केवल पूरे देश में बल्कि विश्व के कोने-कोने में फैल रही है। राजनीति के पैरों में अगर धर्म की बेडि यां डाल दी जाएं तो वह भटक नहीं पाएगी। लेकिन इस बात का खयाल भी रखना है कि राजनीति धर्म से चले, पर धर्म की राजनीति न हो। राजनीति को उसका धर्म समझाना जरूरी है और ये काम संत ही कर सकते हैं, ऐसे संत जो धार्मिक उन्माद भड काकर देश को तोड ने के बजाए देश को जोड ने का काम करें। बाबा रामदेव ने विभिन्न धर्मों और मतों के लोगों को एक मंच पर लाकर जोड ने का काम किया है। आशा करें कि हरिद्वार आने वाले समय में देश का ऐसा मार्गदर्शन करे कि उसको सचमुच देश की आध्यात्मिक राजधानी घोषित कर दिया जाए।
baba ki jai......
जवाब देंहटाएंsadar.....
बाबा के राजनीति में आने से भारतीय राजनीति की गंदगी समाप्त होगी। बाबा का राजनीति से दूर रहना देश के लिये अभिशाप से कम न होगा। कांग्रेस कितनी भी चिल्लाए, बाबा राजनीति में अवश्य पदार्पण करें। अपने साथ हजारों-लाखों देशभक्त और कर्मठ और इमानदार लोगों को भी राजनीति में लाएँ। देश की दिशा बदलें। भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने का योग बताएँ।
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