गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

त्योहार और नेताओं की शुभकामनाएं!!!!


आप लोगों को पता है कि आप लोगों के त्योहार इतने मंगलमय और शुभ क्यों होते हैं? क्योंकि हमारे नेतागण हम सबको त्योहारों की हार्दिक शुभकामनाएं जो देते हैं। शहर में जिधर निकल जाओ उधर बोर्ड ही बोर्ड लगे हैं, जिन पर विभिन्न पार्टियों के छुटभैये नेता अपना फोटो लगाकर आपको त्योहारों की शुभकामनाएं दे रहे हैं वो भी थोक में। फ्लैक्स बोर्ड के आ जाने से इनको बड़ा आराम हो गया है। लेकिन बार-बार पैसा न खर्च करना पड़े तो एक ही बोर्ड पर भविष्य में आने वाले ढेर सारे त्योहारों की बधाई एक साथ दे देते हैं। आ तो रही है दीवाली पर गाजियाबाद से लेकर मेरठ तक लगे बैनर और बोर्ड चीख-चीख कर नववर्ष 2012 तक की शुभकामनाएं एडवांस में आपको दे रहे हैं। बोर्ड का रंग देखकर ही आपको उनकी पार्टी का पता चल जाएगा। कोई नीला, कोई भगवा, कोई तिरंगा तो कोई हरा। क्योंकि यूपी में चुनावी साल है, तो अपनी-अपनी पार्टी से ‘टिकटेच्छु’ नेता दिल खोलकर आपको अपनी शुभकामनाएं दे रहे हैं। बोर्ड पर शुभकामना के उस नेता का फोटो जिसके खर्च पर बोर्ड लगा है, उसके बगल में उसकी पार्टी के किसी बड़े नेता का फोटो, जिसके दम पर टिकट मिलने की उम्मीद है, और फिर सबसे नीचे कतार में कुछ छुटभैयों के फोटो। शहर की सड़कों पर लगे अपने फोटो देखकर इन महानुभावों के कलेजों को वैसी ही ठंडक पहुंचती है जैसी किसी नौजवान को कोकाकोला पीने के बाद मिलती है।

मैं तो यही सोचकर रह जाता हूं अगर हमारे ये शुभचिंतक और परमहितैषी नेतागण आम लोगों को त्योहारों की शुभकामनाएं न देते तो हमारे त्योहार शुभ कैसे होते? ये इन लोगों की शुभकामनाओं का ही नतीजा है कि आम जनमानस के त्योहार शुभ और मंगलमय होते हैं। बधाई और शुभकामनाएं देने में डिस्ट्रिक्ट लेवल के लीडरान बड़े आगे होते हैं। पार्टी के अध्यक्ष का बर्थडे हो या किसी मंत्री या मुख्यमंत्री का, पूरा शहर बधाइयों से पटा नजर आएगा। मजेदार बात ये कि एक आदमी जो जनप्रतिनिधि भी नहीं है, पूरे शहर की तरफ से बधाई दे देता है। खुद ही पूरे शहर की नुमाइंदगी करने लगता है और अगर नेता जी पर बोर्ड लगवाने के पैसे न हों तो शहर के किसी लाला जी को पकड़कर उनसे पैसा खर्च करवाता है और बोर्ड के नीचे छोटा-छोटा लिखवा देता है- सौजन्य से फलाने लाला जी झानझरोखा वाले।

इन होर्डिंग्स को देखकर ही शहर वालों को अंदाजा लग जाना चाहिए कि उनके नेता उनकी कितनी चिंता करते हैं। ये उनकी बधाइयों और शुभकामनाओं का ही नतीजा है कि उनके त्योहार इतने अच्छे बीतते हैं। साथ ही हर शहरवासी का यह कर्तव्य भी बनता है कि इन बधाइयों के पीछे छिपी नेताओं की इच्छाओं को भी पहचानें और उन इच्छाओं को पूरा भी करें। आखिर कोई आपके लिए इतने पैसे खर्च कर रहा है, आपके त्योहार की चिंता कर रहा है, तो आपका इतना तो फर्ज बनता ही है न कि आप उसकी इच्छाओं का भी ख्याल करो। ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम उस बोर्ड को ध्यान से पढ़ तो सकते ही हो जिस पर आपके के त्योहार के लिए शुभकामना लिखी है। अब ये मत बोलना कि महंगाई की वजह से त्योहार मनाना मुश्किल है। महंगाई और बधाई में कैसा रिश्ता? नेताओं का काम है शुभकामना देना। अब अगर आपके पास अपने बच्चों को त्योहार पर खुश करने लायक पैसे नहीं हैं तो ये आपकी परेशानी है इसमें महंगाई का क्या रोल है। इसलिए आम लोगों की तरह मत सोचो, हर समय महंगाई और पैसे का रोना मत रोओ। जैसे नेताओं ने एक बोर्ड लगाकर आपको कहा हैप्पी दीवाली आप भी वैसे ही घर में एक बोर्ड लगाकर अपने बच्चों को बोलो हैप्पी दीवाली!!!

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