शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

राग दरबारी की स्वर्गयात्रा!!


आज जब हिंदी जगत के वरिष्ठ साहित्यकार श्री लाल शुक्ल की मृत्यु की खबर मिली तो अचानक मुझे अनुराग की बात याद हो आई जो उसने ‘राग दरबारी’ के बारे में कही थी। मेरठ में पत्रकारिता के दिनों में एडिशन छोड़ने के बाद रात के 12 बजे जो बैठकी जमती थी उसमें अक्सर राग दरबारी और श्री लाल शुक्ल की चर्चा उठती थी। राग दरबारी भले ही 1968 में लिखी गई हो लेकिन वो आज भी वर्तमान पत्रकारिता को आइना दिखा सकने की कुव्वत रखती है। अनुराग का कहना था कि राग दरबारी पढ़ते वक्त बार-बार ऐसे मौके आए जब वो ठठ्ठा मार कर हंस पड़ता था। घर वाले भी उसकी ओर हैरत से देखने लगते थे कि ऐसी कैसी किताब है कि अच्छे-खासे शांत इंसान को बार-बार हंसने पर मजबूर कर रही है। अनुराग की सभी पत्रकारों को राय थी कि हर एक पत्रकार को राग दरबारी अवश्य पढ़नी चाहिए वो भी मांगकर नहीं खरीदकर। मेरे कई साथी पत्रकारों के पास राग दरबारी थी, लेकिन मांगने पर किसी ने पढ़ने के लिए नहीं दी। क्योंकि गई हुई किताब के वापस लौटने के चांस न के बराबर होते हैं और राग दरबारी ऐसी किताब नहीं जिसको खो दिया जाए।

जब कंडवाल जी ने एक बार राग दरबारी का जिक्र किया जो उनके मुख से सीधे ये निकला कि जिस किताब के पहले ही पृष्ठ पर भारतीय सड़कों की दुर्दशा के बारे में इतना तगड़ा व्यंग्य लिखा हो कि ‘ट्रक का जन्म ही सड़कों का बलात्कार करने के लिए हुआ है’, तो अनायास ही उसको और भी ज्यादा पढ़ने की इच्छा जागृत हो जाती है। कंडवाल जी की इस प्रशंसा में उनका अपना दर्द भी छिपा था, क्योंकि दिन भर बाइक पर रिपोर्टिंग करने वाला रिपोर्टर जब अपनी खबरें पंच करके देर रात घर लौटता है तो उसके आगे-आगे सड़क की धूल उड़ाते ट्रकों का सबसे ज्यादा शिकार वही बनता है। श्री लाल शुक्ल का यही अंदाज था कि उनकी लेखनी हर इंसान के दिल की बात या दिल के दर्द को बयां करती थी। आप चाहे किसी भी क्षेत्र से जुड़े हुए हो आप उनकी रचनाओं में खुद को कहीं न कहीं फिट कर ही लोगे।

सबसे मजेदार बात ये कि शुक्ल जी ने एक खास पद पर रहते हुए आम आदमी की बात कही। सिविल सर्वेंट को भारतीय समाज में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है और शुक्ल जी जिस जमाने में सिविल सर्वेंट थे उस जमाने में तो सिविल सर्वेंट होने का मतलब आप समझ ही सकते हैं। प्रशासकों पर अक्सर ऐसे आरोप लगते हैं कि वे आम आदमी की भावनाओं को नहीं समझते, लेकिन शुक्ल जी ने न केवल आम आदमी की भावनाओं को समझा बल्कि उसको बखूबी अपनी लेखनी के दम पर किताबों में उतारा भी। रिटायर होने के बाद या रिटायरमेंट के आसपास प्रायः अधिकांश प्रशासक लेखक बन ही जाते हैं, लेकिन वो अलग किस्म का लेखन होता है, जिसको एक इलीट वर्ग ही समझ सकता है। लेकिन शुक्ल जी ने पद पर रहते हुए ऐसे व्यंग्य लिखे जो जनसाधारण के दिलों को छू गए, ये उनकी अपनी विशेषता थी। शुक्ल जी भले ही मृत्युलोक से स्वर्गलोक की यात्रा पर चले गए हैं, लेकिन इतना तय है कि उनका व्यंग्य राग सुनकर वहां विराजमान ब्रह्मदेव की भी हंसी छूट जाएगी।

3 टिप्‍पणियां:

  1. राग दरबारी के रचयिता श्रीलाल शुक्‍ल जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

    जवाब देंहटाएं
  2. उनकी अपनी विशेषता थी .. उन्‍हें हार्दिक श्रद्धांजलि !!

    जवाब देंहटाएं
  3. 'राग दरबारी' की दर्जन भर प्रतियाँ तो मेरे पास से भी गायब हुईं हैं। जो ले गया उसने लौटाई नहीं।

    अब मैं भी ढीठ हो कर मना कर देता हूँ

    रचयिता श्रीलाल शुक्‍ल जी को विनम्र श्रद्धांजलि

    जवाब देंहटाएं

कर्म फल

बहुत खुश हो रहा वो, यूरिया वाला दूध तैयार कर कम लागत से बना माल बेचेगा ऊंचे दाम में जेब भर बहुत संतुष्ट है वो, कि उसके बच्चों को यह नहीं पीन...