सोमवार, 31 अक्टूबर 2011

दिग्विजय सिंह और एडवर्टाइजिंग का सिद्धांत!!



एडवर्टाइजिंग के क्षेत्र में एक सिद्धांत प्रचलित है- ‘एक झूठ को अगर 100 बार कहा जाए तो  वो सच बन जाता है।’ कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह आजकल इसी सिद्धांत पर खेल रहे हैं। बाबा रामदेव और अन्ना के आंदोलन ने जब कांग्रेस की पूरे देश में थू-थू कराई तो कांग्रेस ने अपने सिपेहसालार दुर्मुख दिग्विजय के माध्यम से हमेशा की तरह संघ कार्ड चला दिया। पहले उन्होंने बाबा रामदेव के आंदोलन में संघ का हाथ बताकर मीडिया के सामने चिल्लाना शुरू किया और फिर बाद में अन्ना के अनशन की सफलता में भी संघ का हाथ-पांव बता दिया (वैसे मैडम ने तो उनसे कहा था कि ये भी बोल दें कि कांग्रेस के झंडे में जो हाथ है वो भी संघ का है)। दोनों ही आंदोलनों में जो कार्यकर्ता दिन-रात पसीना बहा रहे थे वे तमाम संगठनों से आए थे और उनमें संघ के कार्यकर्ता भी शामिल थे। तमाम काॅर्पोरेट हाउसों से लेकर देश के आम आदमी तक सभी इन आंदोलनों के समर्थन में थे। कांग्रेस के वे नेता जो देश में सुधार देखना चाहते हैं वे भी अपनी-अपनी तरह से इन आंदोलनों का समर्थन कर रहे थे। लेकिन केवल संघ का नाम लेकर आंदोलन के उद्देश्य से ध्यान हटाने की जो दिग्गी-कोशिश हो रही है वो एक कुंठाग्रस्त स्थिति को प्रदर्शित करती है। संघ विश्व का सबसे बड़ा संगठन है। देश का हर तीसरा-चैथा आदमी या तो उसका कार्यकर्ता है, या उसकी विचारधारा को मानने वाला है, या किसी न किसी रूप में उससे जुड़ा है। जब राष्ट्र निर्माण और चरित्र निर्माण की बात हो तो उसमें कहीं न कहीं संघ की उपस्थिति मिल ही जाएगी। तो इस दृष्टि से संघ की उपस्थिति को इन दोनों आंदोलनों में नजरंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन ये कहना कि पूरा आंदोलन ही संघ का था या रिमोट कंट्रोल संघ के हाथ में था ये बेहद बचकाना और मूर्खतापूर्ण है।

ये तो नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस महासचिव बौखलाहट में इस तरह के बयान जारी कर रहे हैं। मध्यप्रदेश से स्थाई देश निकाला मिलने के बाद दिग्विजय सिंह की मानसिक स्थिति में बहुत छटपटाहट तो है, उस पर केंद्र सरकार में उनको मंत्री भी नहीं बनाया गया, और फिर वो अभी इतने बूढ़े भी नहीं हुए हैं कि उनको कहीं का राज्यपाल नियुक्त कर दिया जाए। वैसे भी राज्यपाल तो बेहद धीर-गंभीर और कम बोलने वाले व्यक्तित्वों के लिए बना पद है, अब दिग्विजय तो उसमें कहीं फिट नहीं बैठते। वर्तमान में कांग्रेस के अंदर सबसे ऊट-पटांग बोलने वाली लीग के अग्रणी नेता दिग्विजय ही हैं। कांग्रेस ने सोच-समझकर उनको अपना मोहरा बनाया है, लेकिन दिग्विजय अपने बड़बोलेपन में ये नहीं देख रहे हैं कि वे अपना कितना निजी नुकसान कर रहे हैं। वे उन लोगों पर उंगलियां उठा रहे हैं जिनपर न केवल भारत के लोगों ने बल्कि विदेशी भारतीयों और विदेशी नागरिकों ने भी भरोसा जताया है। दिग्विजय चुन-चुनकर अन्ना, रामदेव और श्री श्री पर उंगलियां उठा रहे हैं (लेकिन कोई ये न कहे की वो किसी का सम्मान नहीं करते , वो आतंकियों का पूरा सम्मान करते हैं) । इन तीनों के अनुयाई पूरे विश्व में मौजूद हैं। और ये लोग कोई पाप तो नहीं कर रहे? जो काम देश की राजनीति को करना चाहिए था आज वो काम सामाजिक संगठनों को हाथ में लेना पड़ा है। आज भ्रष्टाचार के मसले पर देश में ऐसी जागरुकता है जैसी कभी नहीं थी। भारत गरीब देश नहीं है बल्कि उसको जानबूझकर गरीब बनाए रखा गया। और क्योंकि आजादी के 64 सालों में अधिकांश राज कांग्रेस का रहा है तो देश की वर्तमान पीड़ाओं के प्रति सबसे ज्यादा जवाबदेही कांग्रेस की ही बनती है। इसमें कांग्रेस को तिलमिलाने की कोई जरूरत नहीं है। अच्छा होता कि कीचड़ उछालने का खेल खेलने के बजाय कांग्रेस ने गंभीरता से स्थिति पर विचार किया होता। विदेश में जमा काला धन देश में वापस लाने या भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में केवल और केवल भारत की जनता की भलाई है। प्रत्येक भारतीय की भलाई है। न किसी जाति विशेष की और न ही किसी धर्म विशेष की। लेकिन कांग्रेस ने अन्ना को गिरफ्तार करके और बाबा पर लाठी भांजकर अपनी छवि को और भी ज्यादा मिट्टी में मिला दिया। इसका जवाब जनता समय आने पर जरुर देगी।

दरअसल कांग्रेस का संचालन उसके नीति निर्धारकों के साथ-साथ पब्लिक रिलेशन कंपनियां भी देख रही हैं। दिग्विजय सिंह को मोहरा बनाने की सलाह किसी पब्लिक रिलेशन फर्म की ही रही होगी। और संघ कार्ड खेलने की सलाह भी उन्ही की देन है, जो पूरी तरह एडवर्टाइजिंग के सिद्धांत पर आधारित है। पर न जाने ये लोग दिग्विजय से किस जन्म का बदला ले रहे हैं। पार्टी ने एक इंसान को छुट्टा बोलने की इजाजत दे रखी है और वो इंसान इतना ज्यादा बोल रहा है कि तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर मोस्ट हेटेड पर्सनेलिटी बन गया है। शायद दिग्गी राजा को ये अंदाजा भी नहीं होगा कि जिस दिन कांग्रेस सत्ता से हाथ धोएगी उस दिन उनका एक भी समर्थक नहीं बचेगा. जब कहीं बहस चलती है तो खुद दिग्गी के समर्थक भी उनका बचाव करने के लिए शब्द नहीं ढूंढ पाते हैं। लेकिन अभी दिग्गी के चेहरे पर सत्ता की चमक है। जिस दिन सत्ता हाथ से जाएगी तो उनका क्या भविष्य होगा कहा नहीं जा सकता!!

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