चाट की दुनिया में गोलगप्पों का कोई तोड़ हो नहीं सकता। बिना कोई गरिष्ठता लिए, सीधा, सरल, प्यारा सा गोलगप्पा। दिखने में जितना गोलू-मोलू खाने में उतना की जायकेदार। बशर्ते उसका पानी जरा ठीक से बनाया गया हो। फिर बीच में चाहे आलू भरा हो या काला चना या फिर उबली मटर। मुंह में जाते ही खट्टे, मीठे, चटपटे स्वाद के साथ घुल जाता है। लेकिन अगर आप मुंह बड़ा करके नहीं खोल सकते तो इसे खाने से बचें या अकेले में ही खाएं।
चटपटा स्वाद, मजेदार नाम
इसका स्वाद जितना चटखारेदार है उतने ही रोचक इसके नाम हैं। भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे कई मजेदार नामों से पुकारा जाता है, जैसे दिल्ली में गोलगप्पा, पश्चिमी यूपी में पानी के बताशे, बंगाल में फुचका, हरियाणा और पंजाब में पानी के पताशे, महाराष्ट्र और गुजरात में पानी पूरी, उड़ीशा में गुपचुप, मध्यप्रदेश में फुल्की जैसे नामों से फेमस हैं। हाल ही में आई क्वीन फिल्म में हिरोइन कंगना राणावत ने भी इन नामों का जिक्र किया है। इसके चाहने वाले भी हर उम्र में मिलते हैं। छोटे बच्चे जरूर इसका तीखा स्वाद नहीं झेल पाते, लेकिन टीन-एज से लेकर ओल्ड-एज तक इसके कद्रदानों की तादाद बहुत बड़ी है। हालांकि कुछ लोग ऐसे भी आपको मिल सकते हैं जो कहेंगे कि गोलगप्पे भी कोई खाने की चीज है (फिलहाल उनसे बहस करने का कोई मूड नहीं है)।
गोलगप्पे और नफासत!
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सस्ता ही अच्छा
बात गोलगप्पे के दामों की करें तो ये इन दिनों दस रुपये प्लेट से लेकर साठ रुपये प्लेट तक मिलते हैं। लेकिन गोलगप्पा एक ऐसी चाट है जो महंगी नहीं जंचती। ये सस्ती और आम आदमी से जुड़ी हुई चीज है। आज के समय के हिसाब से दस रुपये से ज्यादा नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन दिल्ली के कुछ ब्रांडेड फूड चेन इस सस्ती चाट को भी 60 रुपये में बेचकर गोलगप्पे की सादगी और स्वाद का अपमान करते हैं। अपनी तो यही राय है कि ऐसी जगह गोलगप्पे कभी नहीं खाने चाहिए। जबकि मेरठ में अच्छे से अच्छे गोलगप्पे 10-20 रुपये में ही मिलते हैं। हालांकि गोलगप्पे के लिए 20 रुपये भी ज्यादा हैं। क्योंकि गोलगप्पे गिनकर प्लेट के हिसाब से खाने की चीज नहीं है। एक बार खाओ तो तब तक खाओ जब तक मन न भर जाए। दिल्ली में रहकर मैं मेरठ के गोलगप्पे मिस करता हूं। आबूलेन के टी प्वाइंट पर डेरावाल चाट भंडार के गोलगप्पों का जवाब नहीं साहब। खट्टे, मीठे और हींग के पानी की तीन वैरायटी के साथ, सस्ते और स्वादिष्ट।
ये स्वादिष्ट चाट हजारों लोगों को रोजगार भी मुहैया कराती है। शहर की गलियों में हजारों रेहड़ी-फेरी वाले गोलगप्पे बेचकर अपने घर की गुजर-बसर करते हैं। बेरोजगारी की स्थिति में कोई नया काम शुरू करने के लिए ये एक कम इन्वेस्टमेंट वाला बिजनेस आइडिया है। अगर आपके हाथ में स्वाद, जुबान पर मिठास और रेट लाजमी हों तो ग्राहक खोजना कोई बड़ी बात नहीं। एक दिन मेरठ में राकेश जी के साथ मैंने बैठे-बैठे हिसाब जोड़ा तो पता चला कि शहर में प्रतिदिन तकरीबन तीन लाख गोलगप्पों की खपत है। ये अंदाजा उस समय और पुख्ता हो गया जब कहीं से ये खबर मिली कि शहर में एक गोलगप्पे की फुल्की बनाने वाला प्लांट लगने जा रहा है, जो शहर के सभी मशहूर गोलगप्पे वालों को उचित रेट पर रेडीमेड फुल्कियां मुहैया कराएंगे।
गोलगप्पे का ठेला और पुलिस
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