मेरा रेल से हमेशा लगाव रहा. यही कारण था कि मेरठ में पत्रकारिता के दौरान मैंने रेलवे बीट को सहर्ष स्वीकार किया जिसे कोई नहीं लेना चाहता था, क्योंकि स्टेशन शहर से बिलकुल बहार था. मुझे हमेशा लगता था कि रेल और रेल के आस-पास अनेक कहानियां बिखरी पड़ी हैं.
तिलक ब्रिज की ही बात है, एक दिन अपने नॉर्मल रुटीन में स्टेशन पर मैं ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था. बैठने की जगह कोई बची नहीं थी सो हाथ में बैग लिए प्लेटफ़ॉर्म पर टहल रहा था. तभी फ़ोन पर बात कर रहे एक लड़के की आवाज सुनकर मैं वहीँ ठिठक गया. उसकी दो-चार बातें सुनकर पूरी स्थिति साफ़ हो गयी. जनाब इश्क में थे और अपनी प्रेमिका से बतिया रहे थे. बातों से साफ़ था कि उनका इश्क आखिरी सांसें ले रहा है. लड़का बार-बार उस तरफ से आ रही पतली सी आवाज को समझाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन लड़की को कोई और मिल गया था और वो इन भाई साहब को अब घास नहीं डाल रही थी. लेकिन लड़का सीरियस था. जब लड़की ने एक न सुनी तो उसने झल्लाकर फ़ोन काटा और उसको फ़ोन लगाया जो इस लव ट्राईएंगल का तीसरा कोण था. उसने इस लड़के को सहानुभूति दी, लेकिन ये जनाब जानना चाहते थे कि आखिर इनमें क्या कमी थी.
खैर लम्बी बातचीत के बाद फ़ोन काट दिया गया. लड़का अपना सर पकड़कर बेंच पर ही बैठा रहा. बेंच की दूसरी तरफ एक अधेड़ व्यक्ति बैठा था, जो शर्तिया हरियाणा से ही था. वो भी मेरी तरह इस लड़के की बातें सुन रहा था. मैं तो बात सुन कर चुप ही रहा, लेकिन उससे न रुका गया, फट से बोला- 'देख भैया तेरी भलाई इसी में है कि उसको भूल जा और अपनी जिंदगी पर ध्यान दे. ये प्यार-व्यार का चक्कर बुरा है'. उसकी बात सुनकर लड़का झेंप गया और थोड़ी सी मुस्कराहट के साथ वहां से अपना बैग उठाकर आगे की तरफ चला गया. उसके जाने के बाद वह व्यक्ति अपने पास बैठे संगी से फिर बोला 'पता नहीं का हवा चल पड़ी है आज कल. इसका ज्यादा दिमाग ख़राब हुआ तो कहीं आत्महत्या न कर ले'. ये सुनकर मेरा दिमाग चल गया. मुझे उसकी बात में दम लगा. और ट्रेन से बढ़कर आत्महत्या का कोई साधन है भी नहीं. साधन और कारण दोनों मौजूद हैं, कहीं जोश जोश में प्लेटफ़ॉर्म से छलांग न लगा दे.
सो प्लेटफ़ॉर्म पर एकांत की तरफ कदम बढा रहे उस लड़के का मैंने पीछा करना शुरू किया. सोचा कि अगर अभी इसने कोई हरकत की तो दो थप्पड़ में प्यार का भूत उतार दिया जायेगा. लेकिन उसकी चाल ढाल से लगा नहीं कि वो इतना बड़ा कदम उठाएगा. एक दो फास्ट ट्रेनें भी वहां से गुजरीं लेकिन लड़के ने कोई हरकत नहीं की. अपन को लगा कि मामला सेंसिबिल है. वैसे मैं तो थोड़ी देर बाद अपनी लोकल पकड़ कर फरीदाबाद की तरफ लपक लिया. आगे का पता नहीं उसने कुछ किया कि नहीं.
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