सोमवार, 12 अप्रैल 2010

हमारी जेब में है पैसा, हमें किस बात की चिंता...

Heatwave sweeps North India, Bengal; Ganganagar hottest at 44.8 C (11.4.2010- TOI, indiatimes.com)

हाँ तो भाई लोग, कैसी कट रही है गर्मी में. क्या कहा, हाल बेहाल है. क्यूँ भई आपके घर में एसी है, कूलर है,  पंखा है, फ्रिज है, एसी लगी गाड़ी है, पहाड़ों की सैर करने के लिए पैसा है, फिर क्यों तकलीफ है. इतना सामान आखिर किस लिए जोड़ा था, इसी दिन के लिए न. इस्तेमाल करो और मज़े लो. क्या कहा, कोई मज़ा नहीं आ रहा. क्यों भाई, आप लोग ही कहते हो कि इन्सान के पास पैसा होना चाहिए, दुनिया के सारे सुख उसके पीछे-पीछे चलते हैं, अब बुला लो न सुख. ये ग्लोबल वार्मिंग का हो हल्ला क्यों मचाया हुआ है. इस ग्लोबल वार्मिंग के लिए न ग्लोब जिम्मेदार है और न वार्मिंग.

अरे भाई, शरीर को आराम देने और थोड़ी शान झाड़ने के चक्कर में आप संसाधन पर संसाधन जुटाने की रेस में शामिल हुए.  लेकिन ये रेस तो अंतहीन निकली. शरीर का आराम-वाराम तो गया  भाड़ में. आपने तो कमाने के चक्कर में न दिन देखा और  न रात.  शरीर को मशीन बना डाला. खुद बैल बन गए और अपने अधीनस्थों को भी बैल बना डाला. अपने चैन के चक्कर में दूसरों  का भी चैन छीन लिया. अब स्थिति ये है नींद की गोली लेकर सोते हैं. ताज़ा हवा के लिए किसी महंगे से पर्यावरण क्लब की सदस्यता लेनी पड़ती है या स्विटज़रलैंड जाना पड़ता है. क्योंकि विकास के विनाशी खेल में हमने अपनी नदियों और अपने वातावरण को तो किसी लायक छोड़ा नहीं.

हाँ वो बत्तियां बुझाने का भी तो एक खेल खेला था पीछे हम लोगों ने. ये खेल बढ़िया इजाद किया है भई. वो क्या कहते हैं कि "दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है". मतलब साल भर तो प्रकृति का बलात्कार करो और साल में एक दिन आधा घंटे के लिए बत्ती बुझा कर बोलो- "आई एम सॉरी!". चलो अगर सबको ऐसा ही लगता है कि इस तरह से सब ठीक हो जायेगा तो खुश हो लो. वैसे बाजारू ताकतों ने इस मुहिम को भी नहीं बख्शा था और इससे भी जमकर कमाया. सारे के सारे ऐसे दिखने की कोशिश कर रहे थे मानो उनसे ज्यादा प्रकृति की चिंता किसी को नहीं.

जब हमारी परम्पराएँ नदियों, पेड़ों, पहाड़ों आदि को पूजने का मार्ग दिखाती हैं तो सब हमपर हँसते हैं. कहते हैं कि हम गंवार हैं, हम अन्धविश्वासी हैं. भारत तो सपेरों का देश है और जाने क्या क्या. अगर वो गंवारपन अपनाया होता तो आज के शहरी बाबुओं को ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पेश नहीं आती. किसी फार्म हाउस पर जाकर किराये की ओक्सिजन नहीं लेनी पड़ती. घर की खिड़की खोलते ही मुफ्त की शुद्ध वायु आपके और आपके परिवार के फेफड़ों को तर कर देती. लेकिन नहीं, हमें तो सब कुछ कृत्रिम चाहिए. अगर में एसी नहीं लगाया तो लोग क्या कहेंगे. स्टेटस सिम्बल तो मेंटेन करने ही पड़ेंगे.

ओके जी, आप लोग जी भर के अपना स्टेटस मेंटेन करें. एक-दो महीने की ही तो बात है. फिर बरसात होगी, मोसम ठीक हो जायेगा. ज्यादा दिमाग लगाने से क्या फायदा. 

1 टिप्पणी:

  1. यार फोटो बहुत अच्छा लगाया है लिखा भाई बढ़िया है लेकिन ग्लोबल वार्मिन्ह्ग के नाम पर पचुरी जैसे लोग जो पैसे खा रहे हैं उन पर भी कुछ लिखो एसी रूम में बैठ कर एसी के किलाफ बाते बंद करनी चहिये सदा जीवन और उच्चा विचार ही इन सबसे बचने का रास्ता है

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कर्म फल

बहुत खुश हो रहा वो, यूरिया वाला दूध तैयार कर कम लागत से बना माल बेचेगा ऊंचे दाम में जेब भर बहुत संतुष्ट है वो, कि उसके बच्चों को यह नहीं पीन...