शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

दिल्ली में रैली कराओ-सरकार झुकाओ

न काम से न आराम से और न किसी एटम बम के झाम से, दिल्ली को खतरा है तो केवल ट्रैफिक जाम से... वाह! वाह! वाह! मुझे शायरी आ गयी...

दिल्ली में फिर एक रैली हुई और फिर दिल्ली ठहर गयी. दिल्ली की सडकों पर धुएं, धुल, और धूप के कॉकटेल का शानदार आयोजन. और इस बार इस आयोजन की प्रायोजक थी भारतीय जनता पार्टी. 


बीजेपी वाले लम्बे समय से शिथिल पड़े थे. नए अध्यक्ष को अभी तक अपना हुनर दिखाने का कोई बड़ा अवसर भी तो नहीं मिला है. सो उन्होंने चिलचिलाती गर्मी में महगाई को मुद्दा बनाकर दिल्ली में एक रैली का आयोजन रख लिया. सॉरी, रैली नहीं महा रैली. हालाँकि ये गर्मी खुद बीजेपी अध्यक्ष के लिए भरी पड़ी. अध्यक्ष महोदय समस्त कार्यकर्ताओं के सामने गर्मी के चलते गश खाकर गिर पड़े. और इन मुए अख़बार वालों को तो देखो, इत्ती बड़ी रैली करी उसकी तो कोई तस्वीर न छापी, बेहोश अध्यक्ष महोदय की तस्वीर हर अखबार ने छाप दी वो भी फ्रंट पेज पे. इतनी मेहनत से भाषण तैयार किया,  हलक फाड़ फाड़ के चिल्लाये, लाखों का खर्चा हो गया, लेकिन इस सब पर अध्यक्ष का बेहोश हो जाना भारी पड़ा.

अजी ये सब छोडो, हमें तो दिल्ली की बात करनी है. तो जनाब पूरी दिल्ली बुधवार को दस घंटे तक जाम की चपेट में रही. पूरा का पूरा सरकारी अमला ध्वस्त. एक लाख लोगों (जैसा कि बीजेपी का दावा है) की  रैली और पूरी दिल्ली अपने घुटनों पे. ये है अपनी राजधानी की सुव्यवस्था. पिछली दफा अपनी यूपी के किसान लोग गन्ने ले ले के आ गए थे. उस समय भी दिल्ली की लाचारी देखने लायक थी. किसानों के सामने किसी  की एक न चली.  सरकार ने आनन् फानन अपने घुटने टेक दिए और किसानों की सभी मांगों को मोटे तौर पर मान लिया. अपने एक भाई भी इस रैली में भाग लेने के लिए मेरठ से आये थे. उन्होंने ट्रैफिक में फंसी एक मैडम की टिप्पणी सुनाई- "ओ माई गौड! इतने सारे देहाती". वो तो अभी बहन जी  ने अपनी कोई रैली दिल्ली  में नहीं की है. अगर उन्होंने कोई रैली दिल्ली में रख ली तो पूरी दिल्ली को पानी पिलाने वाला कोई न  होगा.  (वैसे सीबीआई वाले मुद्दे पे उनको दिल्ली में एक रैली रख लेनी चाहिए)


अब इससे सस्ता और टिकाऊ उपाय क्या हो सकता है भला. सरकार से कोई मांग मनवानी है तो दिल्ली में एक विशाल रैली का आयोजन रख लें, वो भो वोर्किंग-डे में. जहाँ आपके एक लाख कार्यकर्ता वाहनों के साथ दिल्ली में घुसे वहां सरकार ने अपने घुटने टेके. क्योंकि इत्ते लोगों को पिलाने के लिए न न तो दिल्ली के पास मुफ्त का पानी है और न खाना. ऐसे में दिल्ली को सबसे बड़ा खतरा रैलियों से है. सरकार को ब्लैक मेल करने का नायाब तरीका. रैली कराओ - सरकार झुकाओ, जय दिल्ली , जय विकास, जय राजनीति.... (पता नहीं कॉमनवेल्थ खेलों में क्या मुंह दिखायेंगे. भगवान् ही मालिक है.)

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